जयपुरः11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन पूरी दुनिया में बच्चियों के मुकाम और उनके किए कामों की चर्चा की जा रही है, लेकिन राजस्थान में इस दिन हम इन बच्चियों के आयामों की बात करने से ज्यादा उनकी सुरक्षा की बात करेंगे.
वर्तमान में प्रदेश की बेटियों की सुरक्षा पर सुलगते सवालों के बीच विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ चुकी और पद्मश्री सम्मान से नवाजी जा चुकी कालबेलिया डांसर गुलाबो सपेरा ने कहा कि दोषियों को मौत की सजा दी जाए तो इन दरिंदों के मन मे भय बनेगा. सपेरा ने कहा कि बेटियों को आजादी देने का मतलब यह नहीं कि परिजन जिम्मेदारी से दूर हट जाए. माता-पिता को बच्चों के हर कदम की जानकारी रखनी चाहिए.
बालिकाओं को नहीं मिल रहा सम्मान...
ईटीवी भारत से खास बातचीत में कालबेलिया डांसर गुलाबो सपेरा ने कहा कि बालिकाओं के सम्मान और उनके अधिकारों की बात होती है, लेकिन उन्हें यह सम्मान नहीं मिल रहा है. बड़ा दुख होता है जब हाथरस जैसी घटनाएं सामने आती हैं या राजस्थान में थानागाजी जैसी घटनाओं के बारे में सुनते हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह की नापाक हरकत करने वाले दरिंदे यह नहीं सोचते कि वह भी एक भाई, एक बाप बनेंगे. लेकिन वह उन सभी रिश्तों को भूल कर ऐसे घिनौने कृत्य करते हैं, जिससे मानवता शर्मसार हो जाती है.
गुलाबो सपेरा का कहना है कि मैं उस समाज से आती हूं जिस समाज में बेटियों की सुरक्षा को लेकर माता-पिता और समाज को इस कदर चिंता होती थी कि वह उसे जन्म लेने के साथ ही जमीन में जिंदा गाड़ देते थे. मैं भी उनमें से एक थी, जिसे मेरे समाज की कुछ महिलाओं ने जमीन में गाड़ दिया था. आज जिस तरीके से बेटियों की सुरक्षा को लेकर पेरेंट्स को चिंता है, उसी तरह की चिंता उस समय हमारे समाज को भी थी.
'देश में बेटियां सिर्फ कहने के लिए सुरक्षित है'
कालबेलिया डांसर का कहना है कि इस तरह की घटनाएं आए दिन न केवल राजस्थान में बल्कि अन्य राज्यों से भी सुनने को मिलती है. उससे ऐसा लगता है कि मानों देश में बेटियां सिर्फ कहने के लिए सुरक्षित है. उन्हें कहने के लिए आजादी दी गई है, लेकिन आज भी वह एक डर और भय के साए में जीती हैं.
गुलाबो सपेरा का कहना है कि सरकार के साथ-साथ पेरेंट्स की भी जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों पर नजर रखें, उन्हें सही संस्कार दें और अच्छे बुरे की पहचान समय-समय पर सिखाते रहे. बच्चियों को आजादी देने का मतलब यह नहीं है कि हम उन पर नजर रखना बंद कर दें. वर्तमान में देखने को मिल रहा है कि बेटियों की आजादी के नाम पर पेरेंट्स उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं, लेकिन उस आजादी के बीच बच्चियां कई बार गलत राह पर चल पड़ती है. इसका खामियाजा परिवार और समाज को उठाना पड़ता है.