मोबाइल की गिरफ्त में मासूम पटना: हम लोग डिजिटल युग में जी रहे हैं. बदलते परिवेश में टेक्नोलॉजी जीवन का अंग बनता जा रहा है. जाने अनजाने में सभी लोग इसकी गिरफ्त में आ गए हैं. आजकल के बच्चे मोबाइल पर कार्टून, कॉमेडी और अपने प्रश्नों का उत्तर ढूंढने के लिए किताब संभालने के बजाय गूगल का सहारा लेते हैं. इसका प्रतिकूल असर भी बच्चों पर नजर आ रहा है.
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मोबाइल की गिरफ्त में मासूम: पटना के रहने वाले राजन कुमार का पुत्र पांच वर्ष का है. मोबाइल की ऐसी आदत लगी है कि खाना खाने के वक्त भी मोबाइल चलाता है. राजन कुमार का कहना है कि कई बार मोबाइल से दूर करने की कोशिश करते हैं ,लेकिन बिना मोबाइल के खाना नहीं खाता है. वहीं बच्चों के अपने तर्क हैं.
मैं मोबाइल पर गेम खेलता हूं, कार्टून देखता हूं. गर्मी के कारण बाहर खेलने नहीं जा सकता इसलिए मोबाइल पर ही खेलता हूं. सिलेबस से जुड़ी चीजों की जानकारी के लिए गूगल का यूज करता हूं.- हैप्पी उपाध्याय
6 महीने का बच्चा मोबाइल देखकर पीता है दूध: स्थानीय निवासी रोहन कुमार ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि मेरा बच्चा 6 महीने का है, लेकिन जब दूध पीता है तो मोबाइल पर कुछ कॉमेडी वीडियो लगा करके दिखाना पड़ता है, तब जाकर वह दूध पीता है.
मेरी पत्नी को कई बार मना कर चुके हैं लेकिन उनका मानना है कि जब तक मोबाइल नहीं देखता है बच्चा तब तक दूध नहीं पीता है. डिजिटल युग में ज्यादातर मोबाइल पर ही काम होता है. बच्चों को भी यही आदत लग जा रही है.- रोहन कुमार
"ज्यादा समय सर झुका कर मोबाइल चलाने से गर्दन में दर्द की समस्या उत्पन्न होती है. गेम खेलने या काम के दौरान कंप्यूटर पर बैठे रहने से पीठ की समस्या होती है. आंख पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है."-बिंदा सिंह, मनोचिकित्सक
क्या कहना है मनोचिकित्सक का: मनोचिकित्सक बिंदा सिंह ने कहा कि मोबाइल ज्यादा समय तक नहीं देखना चाहिए. मोबाइल के कारण हम अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं. मोबाइल का उपयोग करते वक्त अंदेशा लगा रहता है कि व्हाट्सएप पर कोई संदेश या कॉल करेगा उसका जवाब देना होगा.
"मोबाइल के ज्यादा प्रयोग से मानसिक तनाव उत्पन्न होता है. इसलिए बच्चों को बचपन से मोबाइल की लत नहीं लगाई जाए अन्यथा बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं और इसका घातक परिणाम होता है."-बिंदा सिंह, मनोचिकित्सक
कई तरह की बीमारी का शिकार होते हैं बच्चे: इन सबके अलावा भी बच्चों को कई तरह की परेशानी हो सकती है. मनोचिकित्स का कहना है कि ज्यादा फोन के इस्तेमाल से बच्चों को नींद कम आती है और वे चिड़चिड़े हो जाते हैं. इसके अलावा बच्चे थकावट महसूस करने लगते हैं. घर पर रहकर भी अपने पैरेंट्स से दूरी बन जाती है, जो बच्चों के भविष्य के लिए घातक साबित हो सकता है.
अभिभावकों को करना होगा ये काम :अगर आपका बच्चा मोबाइल का आदी हो चुका है तो आपका रोल अहम हो जाता है. बच्चे कोई भी आदत अपने माता-पिता से ही सीखते हैं. ऐसे में बच्चों को मोबाइल से दूर रखने के लिए अभिभावकों को खुद मोबाइल से दूर रहना होगा. साथ ही बच्चों के साथ खेलें, उनसे ज्यादा से ज्यादा बात करने की कोशिश करें.