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शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर बोले- 'मैं तो भगवान राम का भक्त हूं', फतेह बहादुर के बयान का किया समर्थन - शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर

बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर अक्सर ही सुर्खियों में बने रहते हैं. रामचरित मानस को लेकर शुरू हुआ विवाद अबतक जारी है. इसी बीच उन्होंने कहा है कि वह भगवान राम के भक्त हैं. पढ़ें पूरी खबर.

Education Minister Chandrashekhar
Education Minister Chandrashekhar

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 9, 2024, 10:25 PM IST

शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर

पटना :बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर मंदिरों को लेकर दिए विवादित बयान के बाद अब बैकफुट पर आ गए हैं. उन्होंने पटना स्थित अपने आवास पर मंगलवार को प्रेस वार्ता कर कहा कि वह प्रभु श्री राम के भक्त हैं. लेकिन पूजा वह उस प्रभु श्री राम की करते हैं, जो पिछड़े तबके की आने वाली माता शबरी के जूठे बेर खाते हैं. उन्होंने कहा कि कई समाचार पत्रों और मीडिया चैनलों ने उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है, उसके खिलाफ वह मानहानि का मुकदमा करेंगे.

किस भगवान को पूजते हैं चंद्रशेखर? : हालांकि जब शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर से पूछा गया कि क्या आप अयोध्या श्री राम मंदिर जाएंगे? इस सवाल का उन्होंने जवाब नहीं दिया. प्रोफेसर चंद्रशेखर ने सिर्फ यही कहा कि वह भगवान श्री राम के इस रूप को पूजते हैं जिसमें वह माता शबरी के जूठे बेर खाते हैं. जिन मंदिरों में माता शबरी के वंशजों को प्रवेश नहीं दिया जाता है. उनके प्रवेश के बाद गंगाजल से उसे शुद्ध करने का दुस्साहस किया जाता है, ऐसे मंदिरों में वह नहीं जाते हैं. वह इसका विरोध करते हैं.

''मैं भगवान राम में आस्था रखता हूं. मेरे चेंबर में भी प्रभु श्री राम की पोस्टर है. भगवान शिव के मंदिर की तस्वीरें हैं. प्रभु राम की ही कृपा है कि मेरे मंत्री काल में वर्षों से लंबित पड़े 4.50 लाख नियोजित शिक्षकों के राज्य कर्मी बनने का रास्ता साफ हुआ है. मेरे कार्यकाल में सबसे पहले 1.20 लाख शिक्षकों की नियुक्ति की गई और अब एक बार फिर से 1.10 लाख शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया जारी है.''-प्रोफेसर चंद्रशेखर, शिक्षा मंत्री, बिहार

फतेह बहादुर के साथ चंद्रशेखर : इस दौरान शिक्षा मंत्री पार्टी के विधायक फतेह बहादुर सिंह के भी समर्थन में उतर आए. उन्होंने कहा कि विधायक ने कुछ गलत नहीं कहा था. सिर्फ माता सावित्रीबाई फुले की बातों को दोहराया था, कि मंदिर का रास्ता गुलामी की ओर ले जाता है और विद्यालय का रास्ता शिक्षा की ओर ले जाता है.

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