यहां कदम रखते ही शुरू हो जाते हैं डिप्टी सीएम के बुरे दिन पटना: बिहार की राजनीति में राजनेता मुहूर्त, वास्तु, संयोग का बड़ा ख्याल रखते हैं. किसी पद पर जाने के बाद कोई राजनेता यह नहीं चाहता कि उसके 'पद' के साथ कोई अनहोनी हो. लेकिन, कुछ ऐसे संयोग जरूर होते हैं, जिसे अनचाहे नेता अपनाना भी नहीं चाहते. ऐसा ही एक संयोग राजधानी पटना के पांच देशरत्न मार्ग बंगला है. इस बंगले के साथ एक यूनिक रिकॉर्ड जुड़ा हुआ है. जिसे भी यह बंगला आवंटित होता है, उसकी चिंताएं बढ़ जाती है.
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ये महज संयोग है या..? : दरअसल, इस बंगले के साथ कुछ ऐसे संयोग है, जिसे किसी भी राजनीतिक पार्टी का नेता ये नहीं चाहता है. लेकिन घटना क्रम के तार कुछ ऐसे हैं कि जिसे यह बंगला मिलता है. वह चिंता में आ जाता है. यह सोचकर कि क्या पता वह यह रिकॉर्ड तोड़ पाएगा या नहीं. दरअसल इस बंगले ने पिछले 5 साल ने तीन डिप्टी सीएम का कार्यकाल देखा है.
जो भी बंगले में रहा उसका कार्यकाल अधूरा: पटना में उपमुख्यमंत्री के लिए 5 देशरत्न मार्ग का बंगला आवंटित है. इस बंगले में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, पूर्व डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद और सुशील कुमार मोदी उप मुख्यमंत्री के रूप में रह चुके हैं. पिछले साल अगस्त में जब एनडीए की सरकार गिरी और नीतीश कुमार ने महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाई तो डिप्टी सीएम के रूप में तेजस्वी यादव ने शपथ ली. डिप्टी सीएम बन जाने के बाद तेजस्वी यादव पांच देशरत्न बंगला आवंटित किया गया. यह बंगला ही तेजस्वी यादव के साथ महागठबंधन सरकार के लिए एक चिंता है. ऐसा कहा जाता है कि जो भी इस मामले में अब तक उपमुख्यमंत्री रहे हैं, उनका कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया है.
'पद' पर 5 देशरत्न मार्ग बंगले की छाया: इस बंगले के साथ ये अजीब संयोग 2015 से जुड़ा हुआ है. 2015 में तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार के साथ मिलकर पहली बार चुनाव लड़े और पहली बार उप मुख्यमंत्री बने और इसी बंगले में रहे. लेकिन जुलाई 2017 में राजद को तब झटका लगा, जब नीतीश कुमार ने गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बना ली. हालांकि इस भव्य और आलीशान बंगले से तेजस्वी का मोह नहीं छूटा था और उन्होंने लंबे वक्त तक बंगले को खाली भी नहीं किया था. बंगले को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया था. जिस पर कोर्ट ने तेजस्वी पर वक्त बर्बाद करने की बात कह कर 50 हजार का जुर्माना भी लगाया था. जिसके बाद तेजस्वी यादव ने इस बंगले को खाली कर दिया था.
डिप्टी सीएम को देना पड़ा असमय इस्तीफा: 2017 में जब नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ सरकार बनाई तो यह बंगला उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को अलॉट किया गया. लेकिन कुछ ही महीने बाद बीजेपी ने सुशील कुमार मोदी को बिहार की राजनीति से दूर कर दिया. सुशील कुमार मोदी के बाद बीजेपी ने तार किशोर प्रसाद को उपमुख्यमंत्री बनाया. उप मुख्यमंत्री के रूप में तारकेश्वर प्रसाद इसी बंगले में रहे लेकिन पिछले साल अगस्त माह में नीतीश कुमार ने अचानक एक नाटकीय घटनाक्रम में एनडीए से अलग होने का फैसला किया. महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बना ली. इस कारण तारकेश्वर प्रसाद को यह बंगला खाली करना पड़ा.
तेजस्वी को दोबारा अलॉट हुआ बंगला: उप मुख्यमंत्री के रूप में तेजस्वी पहले ऐसे नेता हैं, जिनको यह बंगला दोबारा आवंटित किया गया है. तेजस्वी तो पहली बार नवंबर 2015 में यह बंगला अलॉट किया गया था और वह जुलाई 2017 तक उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत रहे. तेजस्वी ने एक साल और 48 दिन तक उपमुख्यमंत्री के पद को संभाला. जुलाई 2017 सुशील कुमार मोदी बिहार के उप मुख्यमंत्री बने और वह नवंबर 2020 तक उप मुख्यमंत्री पद पर बने रहे. उनका कार्यकाल 3 साल 112 दिन का रहा. इसके बाद नवंबर 2020 में तारकेश्वर प्रसाद उप मुख्यमंत्री बने और अगस्त 2022 में जब महागठबंधन की सरकार बनी तो उनको अपना पद छोड़ना पड़ा. तारकेश्वर प्रसाद कार्यकाल एक वर्ष 266 दिन का रहा.
इसलिए फिर उठने लगी चर्चा: अब तेजस्वी दोबारा उप मुख्यमंत्री बने और अगस्त 2022 से इस पद पर हैं. यानी इस बंगले में रहने वाले उपमुख्यमंत्री में सुशील कुमार मोदी ही ऐसे नेता हैं, जिन्होंने सबसे 3 साल से भी ज्यादा का वक्त गुजारा है. दरअसल राज्य में राजनीति की बयार कुछ इस कदर वह रही है कि इस बंगले को लेकर चर्चा का दौर फिर शुरू हो गया है. हालांकि, अगर वर्तमान सरकार अपने कार्यकाल को पूरा करती है तो इस बंगले के साथ जुड़ा यह मिथक जरूर टूट सकता है.