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... आखिर बिहार में क्यों कम हो रही है गदहों की संख्या? कहीं ये वजह तो नहीं

बिहार समेत देशभर में गधों की संख्या में भारी कमी चिंता का विषय है. यही रहा तो 2030 तक बिहार से गधे विलुप्त (Donkeys will be extinct species from Bihar) हो जाएंगे. एक्सपर्ट का मानना है कि इससे इकोसिस्टम पर असर पड़ेगा. गधों की कम होती संख्या की बड़ी वजह चीन में गदहों की तस्करी (Donkey smuggling in China) और मशीनीकरण है.

गधों की संख्या में भारी गिरावट
गधों की संख्या में भारी गिरावट

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Published : Feb 18, 2022, 9:00 PM IST

Updated : Feb 18, 2022, 10:05 PM IST

पटना: मशीनों पर बढ़ती निर्भरता और पशुओं की बढ़ती तस्करी का नतीजा है कि देश में गदहों की संख्या (Number Of Donkeys In India) में लगभग 67% तक की कमी आई है. पशुधन जनगणना 2019 के अनुसार देश में गधों की संख्या 1.12 लाख के करीब बच गई है. एक समय था जब सामान ढोने के लिए गधों का काफी इस्तेमाल किया जाता था. यातायात के संसाधनों में बढ़ोतरी की वजह से आलम यह है कि गधों की संख्या में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है.

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पशुओं के लिए काम करने वाली एनजीओ ब्रूक इंडिया ने जानकारी दी है कि 2012 की तुलना में 2019 में देशभर में गधों की संख्या में काफी तेजी से गिरावट हुई है. सर्वाधिक गिरावट उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में हुई है. 2012 की तुलना में 2019 में लगभग 72 फीसदी गधों की संख्या में कमी हुई है. वहीं इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार में गधों की संख्या (Number Of Donkeys In Bihar) में 47.31% की गिरावट आई है. 2012 की पशुधन जनगणना के अनुसार बिहार में गधों की संख्या 21 हजार थी जो 2019 में घटकर 11000 रह गई है. महाराष्ट्र जैसे राज्य में भी लगभग 40 फ़ीसदी गधों की संख्या में कमी आई है और अब 18000 ही गधे बच गए हैं.


विशेषज्ञों का मानना है कि स्थिति ऐसी ही रही तो 2030 तक बिहार से गधे विलुप्त हो जाएंगे. विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि मशीनों पर बढ़ती हुई निर्भरता एक तरफ जहां गधों की कमी का प्रमुख वजह है. वहीं दूसरे प्रमुख वजह भारत से नेपाल के रास्ते 'चीन में गधों की अवैध तस्करी' होना है. कई इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट के बारे तो चीन में गधों के मांस का प्रयोग और उनके चमड़े से दवाइयां बनाने के क्रम में प्रतिवर्ष 48 लाख से अधिक की संख्या में गधे काटे जाते हैं.

पटना के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ दिवाकर तेजस्वी ने बताया कि गधी के दूध की मेडिसिनल वैल्यू है और यह प्रूव्ड है. बहुत बार जब बहुत सारे दूधों के इनग्रेडिएंट से कंपेयर किया गया तो पाया गया कि ह्यूमन मिल्क के काफी करीब है गधी का मिल्क. इसके कई फायदेमंद रोल भी देखने को मिले हैं. गधी के दूध की हिपोक्रेट्स के समय से ही अहमियत रही है. दूसरा यह पहलू है कि चाइना में जब जानवर दूध देना बंद कर देता है तो उस जानवर को मारकर उसके मांस को खाने का प्रचलन है. इसके अलावा चाइनीज मेडिसिन का जो कवरिंग (कोटिंग) किया जाता है जिसे जिलेटिन कहते हैं उसके लिए गधे के चमड़े के खाल का प्रयोग किया जाता है. इसके अलावा चाइना और मिडिल ईस्ट के देशों में नपुंसकता दूर करने, सर्दी जुकाम ठीक करने, एंटी एजिंग इत्यादि कई प्रकार की बीमारियों में चमड़े का इस्तेमाल कर दवाएं तैयार की जाती हैं. हालांकि, यह अभी तक साइंटिफिकली प्रूव नहीं है.

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चाइनीज ट्रेडिशनल मेडिसिन के तहत गधों के स्टूल को प्रोसेस कर कुछ बीमारियों के उपचार के लिए दवाइयां तैयार की जाती हैं. लेकिन, अभी तक ऐसी दवाइयों का बीमारियों के उपचार के लिए कारगरता के बारे में एविडेंस बेस्ड स्टडी नहीं आई है. इकोलॉजी के अंदर सभी जानवरों का एक बैलेंस होना जरूरी है. यदि कोई जानवर विलुप्त होता है या फिर किसी जानवर की संख्या बहुत तेजी से घट जाती है तो इसका दुष्प्रभाव इकोसिस्टम पर देखने को मिलता है. ऐसे में जिन जीवों की संख्या कम हो रही है उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है. गधा इकोनॉमिक सिस्टम के लिए भी काफी प्रोडक्टिव माना जाता है. दुर्गम स्थानों पर भी आसानी से भारी वजन ढोने के लिए जाना जाता है.

पटना के मशहूर एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के समाज वैज्ञानिक डॉ बीएन प्रसाद ने कहा कि- 'समाज में किसी भी प्रकार का जो परिवर्तन आता है वह सामाजिक विकास से जुड़ा हुआ होता है. हमारा जो परंपरागत समाज था उसमें जानवरों की महत्ता इसलिए अधिक थी क्योंकि उस समय यांत्रिकरण अधिक नहीं हुआ था. समाज में मशीन का इस्तेमाल कम होगा तो जानवरों का इस्तेमाल अधिक होगा. दो दशक पूर्व समाज में गधों की संख्या इसलिए अधिक थी क्योंकि उस समय उनकी आवश्यकता थी. आज समाज में मैकेनाइजेशन अधिक हुआ है ऐसे में गाड़ियों ने 'गधों' और अन्य जानवरों की जगह ले ली है. सामान ढोने के लिए और खासकर धोबी समाज अपने भारी भरकम कपड़ों की गठरी ढोने के लिए गधे पाला करते थे. लेकिन अब 'गधों' की जगह 'गाड़ियों' ने ले ली है. ऐसे में गधे पालने की संख्या कम हो गई है.'


डॉ बीएन प्रसाद ने बताया कि समाज में एक फूड चेन बना हुआ है. हर तत्व छोटे से बड़ा तक एक दूसरे से जुड़ा होता है. गधों की संख्या जिस प्रकार से कम हो रही है उससे समाज में इकोलॉजिकल सिस्टम में एक तरह की विकृति आएगी. इससे सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ेगा. उन्होंने कहा कि भारत में गधों के संख्या में कमी के पीछे एक वजह तस्करी भी है. भारत से नेपाल के रास्ते चीन में गधों की तस्करी (Donkey smuggling in China) होती है. चाइना में गधों के मांस का प्रयोग खाने के लिए किया जाता है, इसके अलावा चाइना का जो ट्रेडीशनल मेडिसिन है उसमें जानवरों के मांस, खून और चमड़े का विशेष महत्व होता है. गधों के चमड़े का इस्तेमाल दवाइयों को कोटिंग करने के काम में किया जाता है.

गधों की कमी का चाइना एक बहुत बड़ा कारण है. चाइना विभिन्न देशों से गधा आयात करता है और अफ्रीकन कंट्री में भी गधों की कमी के पीछे की वजह चीन ही है. उन्होंने कहा कि गधों की संख्या इतनी तेजी से घटने पर जो चिंता उभरती है वह यह है कि अगर पर्यावरण का संतुलन बिगड़ा तो आने वाली पीढ़ियों के लिए सांस लेना भी दूभर होगा. ऐसे में जरूरी है कि सरकार गधों के संरक्षण पर ध्यान देना शुरू करे और इसकी तस्करी करने वालों पर कार्रवाई करें.



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Last Updated : Feb 18, 2022, 10:05 PM IST

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