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Diwali 2022: दीपावली में डायन दीया जलाने की पुरानी परंपरा, जानिये क्या है इसके पीछे की मान्यता

दीपावली को लेकर कई मान्यताएं और परंपरा हैं. ऐसे में आज भी गांवों में लोग मिट्टी के दीए जलाते हैं और डायन दीया जलाकर बुरी शक्तियों का नाश करते हैं. पढ़ें पूरी खबर...

दीपावली को लेकर कई मान्यताएं और परंपरा
दीपावली को लेकर कई मान्यताएं और परंपरा

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Published : Oct 22, 2022, 9:17 AM IST

पटना: रौशनी के त्योहार दीपावली (diwali celebration in patna ) को लेकर एक तरफ जहां हर घरों में जोर शोर से तैयारियां चल रही है. वहीं दीपावली को लेकर बाजारों में रौनक हैं. बाजार रंग-बिरंगे दीयों और रौशनी के सामानों से गुलजार है. ऐसे में दीपावली में डायन दीया की भी मांग बढ़ जाती है. इस दीये को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं भी हैं.

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क्यों जलाया जाता है डायन दीया:दीपावली को लेकर कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं (mythological stories and beliefs about Deepawali) हैं. डायन दीए के बारे में यह मान्यता है कि घरों में इसे जलाने से बुरी शक्तियों का नाश होता है. दीपावली की रात गांव में हर घर के बाहर चौखट पर डायन दीया जलाने की परंपरा है. जिससे बुरी शक्तियां घर के पास भी नहीं भटकती हैं. कुम्हारी कला के अनुसार डायन दीया में एक महिला की मूर्ति बनाई जाती है और उस पर पांच अन्य दीए रखे जाते हैं. उसे डायन का प्रतीक माना जाता है.

"गांव में ये परंपरा है कि दीपावली की रात घर की चौखट के बाहर डायन दीया जलाएं ताकि घर में बुरी शक्ति का वास नहीं हो सके. आज भी गांव में इस परंपरा को निर्वहन किया जाता है. शहरों में भले ही चकाचौंध रोशनी और चाइनीज बल्बों की भरमार होती हैं"- आशा देवी, बरनी गांव

धूमधाम से मनाया जाता है दिवाली: पटना में हर साल दीपावली का त्योंहार धूमधाम से मनाया जाता हैं. जिसे लेकर घरों में दस दिन पहले से लोग साफ-सफाई में लग जाते हैं. साथ ही दीपावली आते ही दीए और रंग-बिरंगे लाइटों से घरों को सजाते हैं. इसके पीछे भी कई मान्यताएं और पौराणिक कथाएं हैं. एक कथा के अनुसार भगवान श्री राम 14 वर्ष का वनवास कर जब अपने घर अयोध्या लौटे थें. तब पूरे अयोध्यावासी उनके स्वागत को लेकर पूरे अयोध्या को दीपो से सजा दिया था. लेकिन उस वक्त कई बुरी शक्तियां भी हावी हो रही थी. ऐसे में हर घर के लोग अपने घर के बाहर डायन दीया जलाते थें. ताकि घर में बुरी शक्तियों का प्रवेश नहीं हो सके. इस परंपरा को आज भी गांवों में मनाया जाता हैं.

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