पटना:इन दिनों बिहार एनडीए में कोआर्डिनेशन कमेटी (Coordination Committee in NDA) की जरूरत महसूस होने लगी है. दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी के समय नेशनल डेमोक्रेटिक एलाइंस (NDA) में सभी दलों को साथ लेकर चलने के लिए कोआर्डिनेशन कमेटी बनाई गई थी. तब जेडीयू के वरिष्ठ नेता जॉर्ज फर्नांडिस को उसका संयोजक बनाया गया था, लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार में कोऑर्डिनेशन कमिटी का गठन नहीं किया गया. हालांकि जेडीयू की तरफ से इसको लेकर मांग होती रही. यही हाल बिहार का भी है. यहां भी शुरुआती दिनों में एनडीए में कोआर्डिनेशन कमेटी बनाई गई थी. नंदकिशोर यादव उसके संयोजक थे लेकिन बाद के दिनों में एनडीए में कोआर्डिनेशन कमेटी बनाने की बात भुला दी गई.
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बिहार में 2005 से नीतीश कुमार सत्ता में हैं और बीजेपी के साथ लंबे समय से गठबंधन है. विवादास्पद मुद्दों पर दोनों दलों के बीच सहमति बनी हुई थी लेकिन 2020 में जेडीयू को केवल 43 सीट मिली है. उसके बावजूद बीजेपी ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया है. नीतीश अंकगणित के लिहाज से कमजोर हुए हैं, यह भी एक बड़ा कारण हो सकता है कि गठबंधन के अंदर बयानबाजी होती रहती है. हालांकि केवल बीजेपी के नेता ही नहीं हम अध्यक्ष जीतनराम मांझी और वीआईपी चीफ मुकेश सहनी भी लगातार बयानों से सरकार की मुश्किलें बढ़ाते रहते हैं.
पिछले कुछ महीनों की बात करें तो बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census in Bihar), जनसंख्या नियंत्रण कानून, विशेष राज्य के दर्जे की मांग, शराबबंदी कानून की समीक्षा और अब सम्राट अशोक के मुद्दे पर जेडीयू और बीजेपी में तनातनी (Dispute Between JDU and BJP) बढ़ गई है. दोनों दलों के नेता एक-दूसरे के खिलाफ इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं, जितनी कि विपक्ष भी नहीं करता है.
विशेषज्ञ भी कहते हैं कि सरकार के अंदर शामिल दलों को सही मोर्चे पर ही बात रखनी चाहिए, क्योंकि खुलेआम बयानबाजी से जनता के बीच जो मैसेज आता है वह सही नहीं है. इसके लिए कोआर्डिनेशन कमेटी तो बननी ही चाहिए. अगर कोआर्डिनेशन कमेटी बनी होती तो शायद इस तरह की स्थिति पैदा नहीं होती. हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी महागठबंधन में जब थे, वहां भी कंडीशन कमेटी बनाने की मांग करते रहे और एनडीए में भी कोआर्डिनेशन कमेटी की मांग करते रहे हैं. एक बार फिर से उन्होंने इसकी मांग की है, ताकि विवादों का निपटारा किया जा सके.