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... तो इस तरह खत्म हुआ PK का JDU अध्याय!

2014 में जब मोदी प्रचंड बहुमत से जीते तो कहा गया पूरा खेल तो प्रशांत किशोर का है. उनकी रणनीति ने जनता की नीति भांपी और मोदी प्रधानमंत्री बन गए. पर, वक्त बदला 2014 में वही नरेन्द्र मोदी जब पीएम बन गए तो प्रशांत किशोर साइड लाइन हो गए.

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Published : Jan 29, 2020, 12:02 AM IST

पटना:कहते हैं हर काम हर किसी के लिए नहीं होता है. जरूरी नहीं जो खिलाड़ी क्रिकेट के मैदान में चौके-छक्के लगाए वह एक अच्छा कोच भी बन जाए. कुछ यही हाल प्रशांत किशोर का भी दिखता है.

वो दौर याद कीजिए जब 2013 में नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय स्तर पर उभर रहे थे. उस वक्त प्रशांत किशोर ने रणनीतिकार के रूप में काम किया. नारा दिया 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी', यही नहीं लोगों में 'नमो' मंत्र भी उन्हीं की देन थी.

नरेंद्र मोदी को बनाया पीएम
2014 में जब मोदी प्रचंड बहुमत से जीते तो कहा गया पूरा खेल तो प्रशांत किशोर का है. उनकी रणनीति ने जनता की नीति भांपी और मोदी प्रधानमंत्री बन गए. पर, वक्त बदला 2014 में वही नरेन्द्र मोदी जब पीएम बन गए तो प्रशांत किशोर साइड लाइन हो गए.

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नीतीश कुमार के लिए दिया नारा
हालांकि, 2015 में जब बिहार विधानसभा का चुनाव होना था तब प्रशांत किशोर, लालू यादव और नीतीश कुमार के संपर्क में आए. नारा दिया, 'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है.' फिर नीतीश कुमार की बहार आयी और वह सीएम बन गए. बाद में आरजेडी से जेडीयू ने नाता तोड़ लिया. बीजेपी के साथ गठबंधन कर नई सरकार चलानी शुरू कर दी. हालांकि, कुछ दिनों के लिए प्रशांत किशोर फ्रेम से बाहर चले गए. तभी तो प्रशांत किशोर कहें या PK, अलग राह चुनने लगे. कभी उन्होंने अखिलेश यादव और राहुल गांधी के लिए काम किया तो कभी जगन मोहन रेड्डी और ममता बनर्जी के साथ जुड़े.

जेडीयू में शामिल हुए पीके
जेडीयू ने इसी बीच बड़ा फैसला लिया. अचानक प्रशांत किशोर पार्टी में शामिल हुए. कुछ दिन में ही उन्हें उपाध्यक्ष का तमगा भी मिल गया. वैसे इस फैसले से पार्टी के कई वरिष्ठ नेता सहमत नहीं थे. पर, नीतीश के आगे जेडीयू में किसकी चलती. खैर, वक्त बीतता गया लेकिन जिस सोच के साथ नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल किया था वैसा परिणाम नहीं मिला. उल्टे उन्हें नुकसान भरना पड़ रहा था.

सीएए को लेकर हमलावर हैं पीके

सीएए को लेकर जिस प्रकार प्रशांत किशोर मुखर हुए. सुशील मोदी से लेकर अमित शाह तक पर वार करते रहे, इससे पार्टी की फजीहत हो रही थी. विपक्ष लागातार वार कर रहा था. आखिरकार नीतीश कुमार ने स्टैंड लिया और कह दिया कि अगर आपको कहीं जाना है तो चले जाइए, रास्ता खुला है. तो इस तरह कहा जा सकता है कि राजनीति के तिकड़मबाज की राजनीति कुछ महीनों में ही सिमट गयी.

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