पटना: बिहार में 2010 और उसके बाद के सभी चुनाव पर नजर डालें तो यह साफ दिखता है कि राजद की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब हो रही है. चुनाव के दौरान चाहे लालू मैदान में रहे हों या फिर जेल में, राष्ट्रीय जनता दल की हालत पतली होती गई है. 2015 के विधानभा चुनाव को छोड़ दें तो सवाल उठते हैं कि जिस तरह के नतीजे आ रहे हैं. क्या ये नतीजे लालू के दौर खत्म होने की ओर इशारा कर रहे हैं?
किंग मेकर की भूमिका में थे एक वक्त में लालू यादव
2014 लोकसभा चुनाव में राजद का वोट शेयर 20.46 प्रतिशत था, जो 2019 लोकसभा चुनाव में घटकर 15.04 फीसदी रह गया. ये आंकड़े चीख-चीखकर बताते हैं कि किस तरह साल दर साल राजद के वोट बैंक में सेंध लग रही है. एक वक्त था जब लालू यादव किंग मेकर की भूमिका में थे. सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि केंद्र की राजनीति में भी लालू की बड़ी दखल होती थी. रेल मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण विभाग उनके पास होता था और वे केंद्र की सरकारों में अहम भूमिका निभाते थे. संसद में उनकी बात सुनने के लिए लोग बेचैन रहते थे. लालू की जनसभाओं में बड़ी भीड़ उमड़ती थी. चाहे वो गरीब रैली हो, गरीब महारैला हो या फिर चुनाव से जुड़ी कोई सभा हो.