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75% आरक्षण को नौवीं अनुसूची में डाले जाने को लेकर जद्दोजहद , जानिए क्या कहते हैं संविधान के जानकार?

Ninth Schedule of Constitution : बिहार में लोकसभा चुनाव से पहले आरक्षण का मुद्दा गरमा गया है. महागठबंधन सरकार ने आरक्षण की सीमा 75% बढ़कर मास्टर स्ट्रोक खेला है. साथ ही आरक्षण बढ़ोतरी को नौवीं अनुसूची में डाले जाने को लेकर केंद्र पर दबाव बढ़ा दिया है. भाजपा ने महागठबंधन सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए हैं. पढ़ें पूरी खबर..

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 17, 2023, 8:48 PM IST

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पटना : बिहार में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद बिहार सरकार ने आर्थिक सर्वे रिपोर्ट भी प्रकाशित कर दी. उसके बाद इस आधार पर आरक्षण की सीमा बढ़ाने का निर्णय लिया गया. दोनों सदनों से सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजे गए. सरकार नेआरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 75%कर दिया और प्रस्ताव को केंद्र के पास भेजा गया बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि आरक्षण पर राज्य सरकार द्वारा लिए गए फैसले को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाला जाए.

आरक्षण को नौवीं अनुसूची में डालने की मांग : आपको बता दें कि शीतकालीन सत्र के दौरान 9 नवंबर को दोनों सदनों में आरक्षण की सीमा 75% बढ़ाए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी. राज्यपाल ने भी रिजर्वेशन बिल 2023 पर मुहर लगा दी. बिहार सरकार ने प्रस्ताव केंद्र को भेज दिया और मामले को नौवीं अनुसूची में डालने का अनुरोध किया. महागठबंधन नेताओं का मानना है कि आरक्षण के मामले को अगर नौवीं अनुसूची में डाल दिया जाएगी तो इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी. इसी सोच के साथ 22 नवंबर को कैबिनेट ने प्रस्ताव पारित किया.

'आरक्षण देना नहीं चाहती बीजेपी' : प्रस्ताव के जरिए केंद्र से अनुरोध किया गया कि आरक्षण बनाए जाने के फैसले को नौवीं अनुसूची में शामिल कर लिया जाए. राष्ट्रीय जनता दल ने आरक्षण के मसले पर भाजपा पर हमला बोला पार्टी प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा कि "भारतीय जनता पार्टी आरक्षण देना नहीं चाहती है. इतने दिन हो गए लेकिन आरक्षण के मसले को नौवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया. महागठबंधन सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने का ऐतिहासिक फैसला लिया और राज्य के अंदर ईडब्ल्यूएस के लिए भी आरक्षण का प्रावधान किया गया."

"लालू प्रसाद यादव के समय ही पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगाई गई थी. राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड के नेता सिर्फ वोट बैंक की सियासत कर रहे हैं. नरेंद्र मोदी ने दलितों के कल्याण के लिए कार्य किया. साथ ही जरूरतमंदों को आरक्षण भी दिया."-योगेंद्र पासवान, प्रवक्ता, बीजेपी

'नौवीं अनुसूची के विषयों का भी हो सकता है रिव्यू' : पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और संविधान के जानकार प्रवीण कुमार ने बताया कि "यह जो परसेप्शन खड़ा किया जा रहा है कि नौवीं सूची में डाले जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट उस पर सुनवाई नहीं कर सकती. वह गलत है. अगर कोई मामला नौवीं अनुसूची में डाला जाए .फिर भी मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट कर सकती है. 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था और कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट का यह क्षेत्राधिकार है कि वह नौवीं अनुसूची के विषय को भी रिव्यू कर सकती है."

नौवीं अनुसूची में अब तक डाले जा चुके हैं 284 विषय : आपको बता दें कि किसी भी विषय को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने के लिए संविधान के धारा 368 के तहत संशोधन किया जाता है और फिर उसे नौवीं अनुसूची का हिस्सा बनाया जाता है. नौवीं अनुसूची में शुरुआती दौर में 13 विषय थे, लेकिन बाद में एक के बाद एक अमेंडमेंट के द्वारा 284 विषय डाले जा चुके हैं. 1973 से पहले नौवीं अनुसूची के विषय पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नहीं कर सकती थी, लेकिन 1973 के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने मामले को स्पष्ट कर दिया.

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