बिहार

bihar

ETV Bharat / state

Bihar Diwas 2022 : ठेकुआ से लेकर छठ तक... विविधताओं से भरी है बिहार की संस्कृति - बिहुला पूर्वी बिहार का प्रमुख त्योहार

बिहार भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपनी विरासत और संस्कृति के लिए हमेशा प्रसिद्ध रहा है. बिहार भोजपुरी, मैथिली, मगही, तिरहुत तथा अंग संस्कृतियों का मिश्रण है. यहां लोग महापर्व छठ अपने क्षेत्रीय पर्वों को भी बड़े विधि-विधान से मनाते हैं. वास्तव में बिहार की संस्कृति (Culture of Bihar) विविधताओं से भरी है.

बिहार की संस्कृति
बिहार की संस्कृति

By

Published : Mar 22, 2022, 6:01 AM IST

Updated : Mar 22, 2022, 8:44 AM IST

पटना:आज बिहार दिवस (Bihar Diwas 2022) है. 22 मार्च 1912 को बिहार अस्तित्व में आया था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के दिशा-निर्देश पर इस बार भव्य अंदाज में तीन दिवसीय बिहार दिवस समारोह मनाया जा रहा है. कोरोना संकट के चलते दो साल बिहार दिवस समारोह बाधित हुआ. सीएम शाम साढ़े पांच बजे गांधी मैदान में इस समारोह का उद्घाटन करेंगे. वहीं, 24 मार्च को राज्यपाल फागू चौहान (Governor Phagu Chauhan) समारोह का समापन करेंगे. पूरे देश में बिहार की लोकप्रियता का अपना एक अलग ही कारण है. यहां के खान-पान से लेकर शादी विवाह तक सभी में बिहारी संस्कृति की जो चमक झलकती है, वही सभी में इसे खास बनाती है.

ये भी पढ़ें: बिहार दिवस पर गांधी मैदान में उड़ेंगे 400 से 500 ड्रोन, शिक्षा मंत्री बोले- 'जल जीवन हरियाली के थीम पर होगा आयोजन'

लोक आस्था का महापर्व छठ:4 दिवसीय महापर्व छठ बिहार का सबसे बड़ा पर्व है. सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व बिना किसी भेदभाव के मनाया जाता है. छठव्रती इस दिन भगवान सूर्य की उपासना करते हैं. यह कुल चार दिनों तक चलता है. इस पर्व में छठव्रतियों को पवित्र स्नान, निर्जला उपवास रख कर लंबे समय तक पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देना होता है.

आस्था का महापर्व छठ

मिथिलांचल में मधुश्रावणी पूजा: मिथिलांचल की परंपरा से जुड़ी मधुश्रावणी पूजा का अपना विशेष महत्व है. विवाह के बाद पहले सावन में इस पूजा को किया जाता है, जो 13 दिनों तक चलती है. पूजा शुरू होने से पहले दिन नाग-नागिन व उनके पांच बच्चे (बिसहारा) को मिंट्टी से गढ़ा जाता है. साथ ही हल्दी से गौरी बनाने की परंपरा है. इस पूजा में 13 दिनों तक हर सुबह नवविवाहिताएं फूल और शाम में पत्ते तोड़ने जाती हैं. सुहागिनें फूल-पत्ते तोड़ते समय और कथा सुनते वक्त एक ही साड़ी हर दिन पहनती हैं. पूजा स्थल पर रंगोली बनायी जाती है. फिर नाग-नागिन, बिसहारा पर फूल-पत्ते चढ़ाकर पूजा शुरू होती है. इस पूजा के लिए नवविवाहिताओं के लिए उनके ससुराल से श्रृंगार पेटी दी जाती है. जिसमें साड़ी, लहठी सिन्दूर, धान का लावा, जाही-जूही (फूल-पत्ती) होता है.

मिथिलांचल में मधुश्रावणी पूजा

बिहुला से विषारी:बिहुला पूर्वी बिहार का प्रमुख त्योहार है. खासकर यह बिहार के भागलपुर जिले में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. लोग इस दौरान अपने परिवार के कल्याण के लिए देवी मनसा से प्रार्थना करते हैं. कहा जाता है कि सती बिहुला ने अपने मृत पति के लिए कड़ी तपस्या की थी, जिसके बाद मां मनसा देवी ने द्रवित हो गईं और फिर बिहुला के पति को उन्हें जिंदा करना पड़ी. तभी से बेहुला का नाम अमर हो गया.

बिहुला पूर्वी बिहार का प्रमुख त्योहार

सोनपुर मेला :हर साल कार्तिक पूर्णिमा में बिहार से सोनपुर में सोनपुर मेला का आयोजन किया जाता है. यहां एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है. इसे 'हरिहर क्षेत्र मेला' के नाम से भी जाना जाता है जबकि स्थानीय लोग इसे छत्तर मेला के नाम से भी पुकारते हैं. ये मेला कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के बाद शुरू होता है. लोग गंगा में स्नान करने के बाद सीधे हरिहर नाथ मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करते हैं और फिर मेला घूमते हैं. इस मेले में लोगों के मनोरंजन के लिए पूरी व्यवस्था की जाती हैं. इस मेले में सूई से लेकर सभी बड़ी चीजें मिलती हैं. यहां थिएटर से लेकर मौत के कुंए की भी व्यवस्था होती है.

सोनपुर मेला

धान रोपाई:बिहार में धान की रोपनी एक पर्व के तरह मनाई जाती है. लोग अपनी खेतों में गीत गाकर धान की रोपाई करते हैं. ये समय अद्रा कहलाता है. इस दिन सभी घरों में खीर-पूड़ी और अन्य कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. घर की औरतें पुरूषों के साथ मिलकर पूरे विधि-विधान से धान की रोपाई करते हैं.

धान रोपाई

ये भी पढ़ें: बिहार दिवस को लेकर तैयारियां तेज, पटना के गांधी मैदान में होगा आयोजन

विश्वसनीय खबरों को देखने के लिए डाउनलोड करेंETV BHARAT APP


Last Updated : Mar 22, 2022, 8:44 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details