पटना:बिहार में लगातार बढ़ रहे अपराध, हत्या, लूट, अपहरण, दुष्कर्म जैसी वारदातों में हो रही वृद्धि के मद्देनजर बिहार को एक बार फिर 2005-10 वालीनीतीश सरकार की जरूरत महसूस हो रही है. साल 2005-10 वाले नीतीश सरकार को लोगों ने इतना पसंद किया था कि 2005-10 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को 206 सीटें मिली थी. हालांकि ढिलाई की वजह से 2020 में 125 सीटों पर सिमट कर रह गई है. हालांकि विगत वर्षों में विकास और कल्याण के क्षेत्र में राज्य में अभूतपूर्व काम हुआ है. लेकिन उसके साथ-साथ अपराध और भ्रष्टाचार में भी वृद्धि हुई है.
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अपराधिक वारदातों में आयी थी कमी
राज्य सरकार को पुलिस को और अधिक चुस्त बनाने की जरूरत है. आए दिन पुलिस के साथ वसूली की घटना को अंजाम दिया जा रहा है. कहीं ना कहीं पुलिस की साख गिर रही है. उसे फिर से संभालने की जरूरत है. भ्रष्टाचार अपराध का स्तर को घटाकर पहले के स्तर पर लाए जाने की जरूरत है. साल 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब पहली बार सरकार बनाए थे, तब उन्होंने जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई थी. जिसके तहत अपराधिक वारदातों में काफी कमी आई थी.
डीजीपी अभयानंद ने बनाई थी नीति
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लेवल से और मुख्यालय के पुलिस अधिकारियों के लेवल से समीक्षा बैठक के साथ-साथ फील्ड में भी मुख्यालय के अधिकारी जाया करते थे. हालांकि इन दिनों बढ़ रहे अपराध के मद्देनजर पुलिस मुख्यालय फिर से 2005 वाला पुलिस मॉडल अपनाने में जुट गई है. बिहार के तत्कालीन डीजीपी अभयानंद ने नीति बनाई थी कि किसी भी सूरत में अगर अपराधी के खिलाफ साक्ष्य मिलते हैं तो, चाहे वह कोई भी हो उसे बख्शा नहीं जाएगा. जिसके तहत ही अपराधियों में खौफ पैदा हुआ था और आपराधिक वारदातों में लगाम कहीं ना कहीं लग पाया था.
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तत्कालीन डीजीपी अभयानंद के समय में आदतन अपराधियों के बेल कैंसिलेशन पर भी जोर दिया गया था. फिर से पुलिस मुख्यालय द्वारा उस समय के पुलिस अधिकारियों द्वारा नीति को अपनाई जा रही है.
"क्राइम कंट्रोल का एक ही मॉडल है. कानून के प्रक्रिया के तहत अगर पुलिस अधिकारी कार्य करेंगे, तो आसानी से क्राइम कंट्रोल किया जा सकता है. आपको बता दें कि 2005 के पहले बढ़ रहे क्राइम के मद्देनजर गस्ती चाहे वह पैदल हो या वाहन से, उस पर जोर दिया गया था. फिर से पुलिस मुख्यालय द्वारा इस पर जोर दिया जा रहा है. साथ ही जिस जिले के थाना अंतर्गत बड़ी घटना को अंजाम दिया गया हो और केस अनुसंधान में लापरवाही बरती जा रही हो, या साक्ष्य नहीं मिल रहा हो, आईजी से लेकर पुलिस मुख्यालय के अधिकारी को भी समीक्षा करनी पड़ेगी. तभी जाकर नीचे के पुलिस अधिकारिभी एक्टिव रहेंगे"- अभयानंद, पूर्व डीजीपी