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15 साल बनाम 15 साल: ये है बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं का हाल, बेहतर होने को लोग कर रहे इंतजार

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Published : Sep 11, 2020, 6:28 PM IST

बिहार के स्वास्थ्य सेवाओं में बढ़ोतरी और विकास को दिखाने के लिए नीतीश सरकार लालू-राबड़ी राज का हवाला देती है. 15 साल बनाम 15 साल में भी बिहार स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के मामले में भी बहुत आगे नहीं बढ़ पाया है. पढ़ें पूरी खबर...

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पटना:बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का हाल किसी से छिपा नहीं है. बिहारवासी दशकों से स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति झेल रहे हैं. जनप्रतिनिधि और नेता विकास के नाम पर सालों से वोट से आम जनता का वोट ले रहे हैं. लेकिन बुनियादी सुविधाएं भी अब तक प्रदेश के हर निवासी को नसीब नहीं हुई है. ऐसे में इस साल एक बार फिर बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. कई मुद्दों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने सामने एक-दूसरे पर जुबानी हमला करते नजर आ रहे हैं.

हर चुनाव में कई कई अलग मुद्दे होते हैं और इस चुनाव में भी कई मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष तकरार कर रहा है. सत्ता पक्ष के नेता नीतीश के 15 साल बनाम लालू के 15 साल का नारा लगा रहे हैं. स्वास्थ्य सेवाओं में लालू-राबड़ी के 15 वर्षों में कुछ भी खास नहीं हुआ. यह कहना बिहार के मुखिया नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी का है.

'विपक्ष की कमी नहीं बल्कि खुद की खूबियां बताए सरकार'
चुनावी साल में बिहार के अहम मुद्दों पर कांग्रेस का मानना है कि जो सरकार 15 सालों तक सत्ता में लगातार रही है, उसे पिछले सरकार की कमियों को गिनाने का कोई औचित्य नहीं है. बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा कहते हैं कि सुशासन की सरकार के 15 साल शासन करने के बाद भी बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं का हाल किसी से छिपा नहीं है. भले ही नीतीश कुमार और सुशील मोदी लालू-राबड़ी के 15 साल पर इसका ठीकरा फोड़ रहे हैं लेकिन वर्तमान में कोरोना महामारी के बीच डॉक्टर किस तरह संसाधन विहीन होकर काम कर रहे हैं ये जनता जानती है. सरकार को विपक्ष की खामियां गिराने से बेहतर अपनी खूबियां गिनानी चाहिए.

मदन मोहन झा, बिहार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष

आरजेडी कर रही सरकार पर कटाक्ष
वहीं राजद विधायक विजय प्रकाश नीतीश और सुशील मोदी पर हमलावर होते हुए कहते हैं कि क्या अस्पतालों में मछलियों के तैरने के लिए लालू प्रसाद पानी डलवाते हैं? या जो अस्पतालों में कुत्ते घूमते हैं उसमें भी लालू प्रसाद का दोष है? 15 साल शासन करने के बावजूद स्वास्थ्य सेवा का जो दुर्दशा हो रखी है उसे राज्य की जनता हर दिन झेलती है. बिहार के वर्तमान सरकार पूरी तरह से निकम्मी और निरंकुश हो गई है.

स्वास्थ्य सेवाओं में बेहतर हुआ बिहार- बीजेपी
विपक्ष के तमाम आरोपों पर जेडीयू की सहयोगी पार्टी बीजेपी पलटवार करती नजर आई. बीजेपी ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि सत्ता पक्ष के नेता स्वास्थ्य सेवाओं में होने वाली उपलब्धियां गिनाते नहीं थकते हैं. बीजेपी नेता अजीत चौधरी कहते हैं कि एक ओर जहां लालू-राबड़ी राज में राज्य के मेडिकल कॉलेज की संख्या 3 थी. वहीं अब बढ़कर यह संख्या 15 हो गई है. दरभंगा में एम्स का निर्माण होना शुरू हो रहा है तो वहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालात काफी बेहतर हो गए हैं. केंद्र सरकार के आयुष्मान भारत योजना के तहत राज्य के गरीब लोगों को काफी मदद मिल रही है.

अजीत चौधरी, बीजेपी नेता

विशेषज्ञ बोले- 15 साल बनाम 15 साल का तुलना गलत
15 साल बनाम 15 साल की तुलना पर अनुग्रह नारायण सिन्हा शोध संस्थान के प्रोफेसर डीएम दिवाकर की अलग ही राय है. दिवाकर का मानना है कि स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति नीतीश मोदी के शासनकाल में बहुत बेहतर नहीं हुई है. सत्ता पक्ष जिस तरह से 15 साल बनाम 15 साल का नारा दे रहा है, वह सरासर गलत है. अगर नीतीश कुमार अपने प्रथम 5 साल का कार्यकाल से अपने दोनों 5 साल के कार्यकाल की तुलना करे तो उसी में कई मामलों में भी फिसड्डी साबित हो जाएंगे.

डॉ. डीएम दिवाकर, विशेषज्ञ

'जितना काम होना चाहिए था, उतना नहीं हुआ'
डीएम दिवाकर यह भी कहते हैं कि नीतीश सरकार में कई काम जरूर हुए हैं. लेकिन 15 वर्षों में जितने काम होने चाहिए, उसमें काफी कुछ नहीं हो सका. जनता किसी सरकार को 5 साल के लिए चुनती है इसलिए तुलना 5 साल से ही करनी चाहिए. कोरोना महामारी में ही नीतीश सरकार के स्वास्थ्य व्यवस्था की पूरी तरह से पोल खुल गई. राज्य के सभी जिलों में वेंटिलेटर तक की व्यवस्था नहीं थी जो पुराना के समय में पूरा किया गया. जब राज्य के सभी जिला अस्पताल में वेंटिलेटर लगाने में 15 साल लग गए तो इस से ज्यादा कुछ भी कहने की जरूरत नहीं.

बिहार सचिवालय (फाइल फोटो)

देखें क्या कहते हैं स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े:

शिशु मृत्यु दर (प्रति 100 शिशु)
2005 में 61
2006 में 60
2007 में 58
2008 में 56
2009 में 52
2010 में 48
2011 में 44
2012 में 43
2013 में 42
2014 में 42
2015 में 42
2016 में 38
  • 5 वर्ष तक के बच्चे का मृत्यु दर ( प्रति 100 बच्चा)
2012 - 18
2013 - 14
2014 - 53
2015 - 48
  • मातृ मृत्यु दर
2004 - 06 में 312
2007 - 09 में 261
2010 -12 में 219
2012 - 13 में 208
2014- 18 में 197
  • कुल प्रजनन
2005 - 4.3
2006 - 4.2
2007 - 3.9
2008 - 3.9
2009 - 3.9
2010 - 3.7
2011 - 3.6
2012 - 3.5
2013 - 3.2
2014 - 3.2
2015 - 3.2
2016 - 3.3
  • सरकारी अस्पतालों में प्रसव (राज्य में जन्म लेने वाले कुल बच्चों की संख्या के अनुपात में)
2012 -13 में 14.69 %
2013- 14 में 16.48%
2014 - 2015 में 14.94%
2015 - 2016 में 15.33%
2016 - 2017 में 15.45%
  • सरकारी अस्पतालों में टीकाकरण
2005 -06 में 32.8%
2015 - 16 में 61.70%
कुल वृद्धि - 28.9%
  • स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या
2011- 11559
2011- 11559
2017 - 11848
  • सरकारी अस्पतालों में मरीज (प्रति माह)
2005 - 39
2012 - 9863
2013 - 10476
2014 - 9871
2015 - 9778
2016 - 10294
2017 - 10496

नीतीश कुमार के शासनकाल में स्वास्थ्य विभाग में हुए काम

  • राज्य में 11 हजार स्वास्थ्य उपकेंद्र खोले गये
  • राज्य में 5 नए मेडिकल कॉलेज खोले जा रहे
  • मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष 2009 से शुरू किया गया. इसके तहत गरीब और निर्धन मरीजों के गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए सहायता राशि दी जाती है.
  • कुपोषण की गंभीर समस्या को दूर करने के लिए बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण के लिए विशेष कार्यक्रम चल रहे हैं.
    देखें खास रिपोर्ट.
  • राज्य में टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए "मुस्कान एक अभियान" कार्यक्रम किया जा रहा.
  • मुख्यमंत्री कालाजार राहत योजना के तहत रोगी को मुफ्त इलाज के साथ पारिश्रमिक क्षतिपूर्ति सहायता राशि भी दी जाती है.
  • 2010 में बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इन्फ्राट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड (BMSICL) का निर्माण किया गया. राज्य में इसी के तहत सारी दवाइयां उपकरण की खरीद और सरकारी अस्पतालों और संस्थानों का निर्माण किया जाता है
  • नीतीश कुमार के शासनकाल में ही राज्य स्वास्थ समिति का भी गठन किया गया. जिसके तहत केंद्र आरा सरकार द्वारा स्वास्थ सेवाओं में चलाया जाए कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया जाता है.
  • एड्स के नियंत्रण के लिए बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति का भी गठन किया गया.

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