पटना:गुजरात में 30 अक्टूबर को मोरबी पुल ढहने (Gujarat Morbi Bridge Collapse) की घटना ने बिहार सहित कई राज्यों को गहरी नींद से झकझोर कर रख दिया. बिहार में भागलपुर, सहरसा और पटना के लोगों ने तीन बड़े पुलों को गिरते देखा है, हालांकि इससे जन धन का खास नुकसान नहीं हुआ था. हालांकि आज भी बिहार में कई ऐसे पुल है जो कि दशकों पुराने हैं और ये मरम्मती की राह (bihar old bridge in danger condition) देख रहे है. वहीं बिहार में आंधी-पानी से पुल ढहने की खबरें अक्सर सुर्खियां बटोरती रही हैं.
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सुल्तानगंज-खगड़िया से जोड़ने वाले सड़क पुल ढहा :29 अप्रैल को भागलपुर जिले के सुल्तानगंज को खगड़िया से जोड़ने वाले सड़क पुल का एक भाग ढह गया. बिहार सरकार के अधिकारियों ने पुल ढहने के लिए तेज हवा और कोहरे को कारण बताते हुए राज्य और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय को रिपोर्ट सौंप दी. केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने घटना का संज्ञान लेते हुए रिपोर्ट को गलत बताते हुए कहा कि निर्माण कंपनी ने कम लागत वाली सामग्री का इस्तेमाल किया, जिससे पुल ढह गया.
सहरसा में निर्माण के दौरान पुल का एक हिस्सा गिरा:9 मई को सहरसा जिले में निर्माण के दौरान पुल का एक हिस्सा गिरने से तीन मजदूर घायल हो गए थे. हादसा सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के कंडुमेर गांव में कोसी तटबंध के पूर्वी हिस्से में हुआ. एक अधिकारी के अनुसार पुल का कंक्रीटीकरण 8 मई को किया गया था. हालांकि विभाग के इंजीनियरों ने ठेकेदार को पुल के केंद्र बदलने के लिए कहा, लेकिन ठेकेदार ने इनकार कर दिया और कंक्रीटिंग के साथ आगे बढ़ गया.
पटना में 136 साल पुराना सड़क पुल दुर्घटनाग्रस्त :तीसरी घटना 20 मई को हुई, जब राज्य की राजधानी पटना में भारी बारिश के कारण 136 साल पुराना सड़क पुल दुर्घटनाग्रस्त हो गया. फतुहा उपनगर में स्थित यह पुल पटना से 25 किमी दूर था. इसे 1884 में ब्रिटिश काल में बनाया गया था. स्थानीय निवासियों का कहना है कि पुल का रखरखाव खराब था. दरअसल, यह घटना तब सामने आई जब निर्माण सामग्री से लदा एक ट्रक पुल को पार कर रहा था. हादसे में चालक व ठेकेदार घायल हो गए. पुल और सड़क निर्माण विभाग ने इसे खतरनाक घोषित करते हुए लगभग 25 साल पहले यहां से भारी वाहनों के गुजरने पर रोक लगा दी थी.
तीनों हादसे, बीजेपी-जेडीयू सरकार में हुई :तीनों घटनाएं राज्य में जेडीयू-बीजेपी की संयुक्त सरकार के दौरान हुईं और सड़क निर्माण मंत्री के रूप में नितिन नबीन थे. संपर्क किए जाने पर उन्होंने बताया, भागलपुर में पुल निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया, जबकि सहरसा में इंजीनियरिंग की खराबी के कारण पुल ढहा.
''बिहार के सड़क निर्माण मंत्री के रूप में मैंने लगभग 6 हजार सड़क और रेल-सह-सड़क पुलों के लिए जीपीएस सिस्टम सहित कई उपाय किए. इनमें 24 से 36 घंटे पहले विभाग को टूट-फूट के बारे में सचेत करने की सुविधा है. यह मेरे कार्यकाल के दौरान तैयार की गई पुल रख-रखाव नीति का एक हिस्सा था. पुल रख रखाव नीति के कार्यान्वयन के लिए मैंने कई बार बिहार विधानसभा और बिहार विधान परिषद के पटल पर भी इंगित किया है.'' - नितिन नबीन, पूर्व सड़क निर्माण मंत्री
'नई सरकार से उम्मीद' :यह पूछे जाने पर कि क्या नई सरकार बिहार में पुल रखरखाव नीति लागू करेगी. नितिन नबीन ने कहा, मुझे उम्मीद है कि नई सरकार इसे लागू करेगी. वह (तेजस्वी यादव) एक युवा नेता हैं और निश्चित रूप से आम लोगों के कल्याण के लिए बनाए गए मसौदे का समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा, हमारे वैचारिक मतभेदों के बावजूद, कल्याणकारी नीतियों पर मेरा एक अलग तरह का ²ष्टिकोण है. मेरा दृढ़ विश्वास है कि कल्याणकारी नीतियों को राजनीति के साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए.
'मोरबी की तरह बिहार में शायद ही कोई झूला ब्रिज हो' : उधर, कई प्रयासों के बावजूद सड़क निर्माण विभाग के इंजीनियर-इन-चीफ हनुमान प्रसाद सिंह से संपर्क नहीं हो सका. विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि मोरबी की तरह बिहार में शायद ही कोई झूला ब्रिज हो. नाम न छापने की शर्त पर अधिकारी ने बताया कि राजगीर में एक ग्लास स्काई वॉकवे है. हम एक बार में यहां जाने के लिए दो से अधिक व्यक्तियों को अनुमति नहीं देते हैं. वॉकवे के निर्माण में एक अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किया गया है. यह मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट का एक हिस्सा है.
अधिकारी ने कहा, जहां तक अन्य पुलों का संबंध है, बिहार सरकार की नीति है कि निर्माण कंपनियों को पुलों और सड़कों में किसी भी तरह की टूट-फूट के लिए जवाबदेह बनाया जाए. बिहार सरकार ने कंपनियों को पुलों और सड़कों के निर्माण के साथ-साथ रखरखाव का भी आवंटन किया है. पुल रखरखाव नीति के संबंध में अधिकारी ने कहा कि इसे अभी लागू किया जाना है.
''राज्य के हर एक पुल की नियमित रूप से जांच की जाती है. बिहार में ऐसा कोई पुराना पुल नहीं है, जिसे खतरनाक माना जाता हो. अगर किसी पुल के खराब होने की सूचना मिलती है, तो हम यातायात संचालन तत्काल रोक देते हैं और प्राथमिकता के आधार पर इसकी मरम्मत करते हैं.'' - अमर नाथ पाठक, उत्तरी बिहार के मुख्य अभियंता
कब हुआ मोरबी पुल हादसा? :बता दें कि रविवार के दिन गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर बना केबिल ब्रिज भीड़ से खचाखच भरा था. आलम यह था कि 100 लोगों की क्षमता वाले इस पुल पर 300-400 लोग थे. कुछ लोग सेल्फियां लेने में व्यस्त थे, तो कुछ युवा इस झूलते ब्रिज को जानबूझकर हिला रहे थे. तभी अचानक पुल टूट गया. देखते ही देखते करीब 300 से 400 लोग नदी में गिर गए. कुछ लोगों ने ब्रिज के बाकी हिस्से तो कुछ लोगों ने रस्सियों पर लटकने की कोशिश की. इनमें से कुछ अपनी जान बचाने में सफल भी हुए. जबकि सैकड़ों लोग नदी में समा गए. इस हादसे में अब तक 134 लोगों की मौत हो गई.
मोरबी पुल हादसे पर बोले नीतीश कुमार:इस हादसे के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish on Morbi bridge collapse) ने कहा था कि ऐसी घटना शायद ही कहीं हुई हो जिसमें इतने लोगों की मौत हुई है. गुजरात सरकार और वहां के मुख्यमंत्री को देखना चाहिए था. हादसे का संज्ञान लें क्योंकि मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है.