बिहार

bihar

ETV Bharat / state

Bihar Politics: बिहार में गद्दी के लिए ठेलमठेल? 'चाचा' की मर्जी से चलेगी सरकार या 'भतीजे' को बागडोर? - Chief Minister Nitish Kumar

बिहार में चाचा भतीजे की सरकार भले ही चल रही है लेकिन दोनों एक दूसरे से हमेशा असहज  रहते हैं. 2015 में महागठबंधन सरकार में चाचा भतीजे की जोडी की बात करें या इस बार की सरकार की, चाचा भतीजे के बीच बेमेल साथ और असहजता का भाव जारी है. इस भाव के परिणाम में दोनों तरफ से चाचा-भतीजा भले ही चुप्पी साध लेते हैं, लेकिन दोनों के दल के नेतओं का हमला जारी रहता है.

Etv Bharat
Etv Bharat

By

Published : Jan 30, 2023, 6:27 PM IST

पटना : 2015 में पहली बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन में आये और चाचा-भतीजे की जोड़ी बनी. करीब 17 साल साथ रहने के बाद नीतीश कुमार साल 2015 में लालू प्रसाद से हाथ मिलाकर महागठबंधन बना लिया. बिहार में महागठबंधन की बडी जीत से साथ चाचा-भतीजे की सरकार बनी. कुछ दिन सामान्य रूप से सरकार चली और इक्के-दुक्के बयानबाजियों के जरिये एक दूसरे पर हमला शुरू हो गया. कई बार जेडीयू और आरजेडी प्रवक्ताओं की जुबानी जंग तेज हो गयी. दोनों दल के प्रवक्ता एक दूसरे के खिलाफ आग उगलते रहे. इसी दौरान 2017 में लालू प्रसाद यादव के घर सीबीआई की छापेमारी हुई. नीतीश कुमार से पहली बार तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री दफ्तर बुलाकर जबाब तलब किया. तेजस्वी अपने ऊपर लगे आरोपों का जबाब नहीं दे सके और आखिरकार सरकार गिर गयी.


ये भी पढ़ें- Bihar Politics: 'मिट्टी में मिल जाएंगे, BJP के साथ नहीं जाएंगे' वाली शपथ का क्या हुआ नीतीश जी? सम्राट चौधरी का पलटवार

खूब चली चाचा-भतीजे में बयानबाजी: नतीश कुमार के नेतृत्व में बीजेपी के सहयोग से सरकार बनी और भतीजा विपक्ष में अपने चाचा पर हमलावार रहे. बतौर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी ने सड़क से सदन तक अपने चाचा यानी नीतीश कुमार को क्या-क्या नहीं कहा. सदन में चाचा-भतीजे की तीखी नोक झोंक हो या एक दूसरे के खिलाफ आग उगलने का वाकया, एक दूसरे के खिलाफ की गयी हर तल्ख टिप्पणी मिडिया के सुर्खियों में रही.

2020 के चुनाव में चाचा भतीजा आमने सामने: वर्ष 2020 के चुनावी घोषणा के साथ ही चाचा-भतीजे में तकरार और बढ़ गयी. हर चुनावी सभा में एक दूसरे खिलाफ चाचा और भतीजे ने खूब जहर उगला. चाचा एनडीए का हिस्सा रहे और भतीजे ने सात पार्टियों को मिला कर महागठबंधन बना लिया. दोनों गठबंधनों के बीच कड़ी टक्कर हुई. एनडीए की जीत तो हुई, लेकिन भतीजे की शक्ति में काफी बढोत्तरी हुई. 2020 के चुनाव में चाचा का कद घटा और जेडीयू 43 सीटों पर सिमट गयी. वहीं बीजेपी पिछले चुनाव की तुलना में अपनी ताकत बढ़ाने में कामयाब रही. चाचा कुछ दिनों तक नाराज रहे. नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक बार फिर एनडीए की सरकार बन गयी.

हारकर जीती आरजेडी : 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की जीत के बाद तेजस्वी यादव अपने चाचा यानी नीतीश कुमार पर पहले से ज्यादा हमलावार हो गये. उन्हें लगा कि वो बिहार के मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गये. इस बात को लेकर बार-बार चाचा को भतीजे के आरोपों और हमले से दो-चार होना पड़ा. तेजस्वी ने सदन से सड़क तक इस बात को लेकर अपने चाचा को कोसा और हमला किया कि 'नीतीश कुमार चुनाव जनाधार से नहीं बल्कि धांधली कर जीते हैं'. चाचा जबाब देते रहे और भतीजा हमला करते रहे.

जब दूसरे बार पलटे नीतीश: 2020 में जेडीयू की करारी हार से नीतीश कुमार तिलमिला गये थे. उन्हें लग रहा था कि कम सीटें मिलने की वजह से उनके बड़े भाई की भूमिका समाप्त हो गयी है. कई बार जेडीयू और बीजेपी के बीच बड़ा भाई कौन जैसे विवाद की वजह से खूब बयानबाजियां हुईं. धीरे-धीरे दोनों के बीच तल्खियां बढ़ी और आखिरकार ने नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़कर एक बार फिर अपने भतीजे को गले लगा लिया.

''कुछ गलतफहमियों की वजह से ऐसा होता है. ये गलतफहमियां बीजेपी पैदा करती है. पिछले कार्यकाल में तेजस्वी के घर सीबीआई की छापेमारी गलतफहमी की सबसे बडी वजह थी. तेजस्वी जी से जबाब मांगा गया था लेकिन वो जबाब नहीं दे सके और सरकार चली गयी. जब बाद में नीतीश जी सही जानकारी मिल गयी तो सब ठीक हो गया. समाजवादियों का एक लक्ष्य है और उसी लक्ष्य को लेकर दोनों कार्य कर रहे हैं. अब सब कुछ ठीक है''- सुनील सिंह, प्रवक्ता, जेडीयू

बीजेपी के फॉर्मूले पर आरजेडी से गठबंधन: महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे भतीजे ने चाचा को मुख्यमंत्री तो मान लिया लेकिन इस बार कुछ शर्त्त के साथ समझौते की बात सामने आयी. सूत्रों की माने तो चाचा-भतीजे के समझौते के अनुसार एक निर्धारित समय के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी भतीजे को देकर, चाचा नीतीश को केंद्र की राजनीति में अगुवाई करने का करार था. इसके तहत नीतीश कुमार ने पहल की और यूपीए में शामिल कई दलों के बड़े नेताओं से न केवल सीधी बात की बल्कि कई नेताओं से मुलाकात भी हुई. एक माहौल बनने लगा था कि नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति करेंगे और बिहार की बागड़ोर तेजस्वी यादव सम्भालेंगे. इसी के तहत पूरा मामला आगे बढ़ रहा था. सब कुछ ठीक था और कई मौके पर नीतीश कुमार इशारों में तेजस्वी का नाम भी आगे करते हुए नजर आये. महागठबंधन को ऐसा लग रहा था मानो डील के अनुसार सब हो रहा है.

''एक ठग दूसरे ठग को ठगने का प्रयास करते हैं तो इस तरह की बयानबाजियां होती हैं. ये अवसरवादी राजनीति है और कुर्सी की चाहत में इस तरह का टकराव होता है.''- अरविन्द सिंह, प्रवक्ता, बीजेपी


जब बदलने लगे महागठबंधन में तेवर: हालात भांप कर तेवर पहले भतीजे का बदला. प्रतिक्रिया आरजेडी नेताओं की ओर से आना शुरू हो गयी. पहला बयान बतौर कृषि मंत्री सुधाकर सिंह का आया. उन्होंने अपनी सरकार पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगा कर सनसनी फैला दिया. बतौर कृषि मंत्री सुधाकर सिंह बयान देते रहे और नीतीश सरकार की किरकिरी होते रही. आखिरकार उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया, लेकिन विवाद नहीं थमा.

''समाजवादियों के साथ नीति सिद्धांतों को लेकर ऐसा होता है. आरोप प्रत्यारोप का दौर भी चलता है लेकिन समाजवादी जब भी रहेंगे एक साथ ही रहेंगे.''-मृत्युंजय तिवारी, प्रवक्ता आरजेडी

'लंगड़ी सरकार' : विधायक विजय मंडल, शिक्षा मंत्री प्रोफ्रेसर चंद्रशेखर और बाद में जगदानंद सिंह ने भी नीतीश कुमार को केंद्र की राजनीति में जाने का हवाला देकर तेजस्वी के पक्ष में बैटिंग की और पार्टी की फिल्डिंग भी सजा दी. इस दौरान जेडीयू के नेताओं ने भी आरजेडी नेताओं के विरोध में बयानबाजियां कीं, लेकिन चाचा-भतीजा चुप रहे. आखिरी बयान के रूप में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और आरजेडी नेता उदय नारायण चौधरी का आया है, जिसमें उन्होंने तेजस्वी यादव को मजबूर और 'लंगडी सरकार' में होने की वजह से विकास कार्य में अवरोध का हवाला दिया है.

चाचा-भतीजे में सबकुछ ठीक नहीं ! : इन तमाम बयानों से इतना तो साफ है कि चाचा-भतीजे में सब कुछ ठीक नहीं है. लेकिन दोनों की अपनी मजबूरी है बस सरकार चल रही है. हाल के दिनों में बीजेपी के नेताओं का नीतीश कुमार के प्रति नरम रवैये की वजह से ये कयास लगने लगा था कि नीतीश कुमार बीजेपी का दामन थाम सकते हैं, लेकिन दरभंगा में सुशील मोदी के उस बयान के बाद इन कयासों पर विराम लग गया कि- 'किसी भी कीमत पर नीतीश कुमार को बीजेपी का साथ नहीं मिलेगा' सुशील मोदी के इस बयान की प्रतिक्रिया यह हुआ कि अगले दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कह दिया कि 'जान दे देंगे लेकिन बीजेपी से हाथ नहीं मिलायेंगे'. आरजेडी और जेडीयू में तल्खियां बढ़ी हैं और इधर बीजेपी के भी तेवर सख्त हो गये हैं. ऐसे में चाचा-भतीजा को यह तय करना होगा कि बिहार की वर्तमान सरकार चाचा की मर्जी से चलेगी या भतीजे को बागडोर दिया जाएगा?

''चाचा-भतीजा दोनों अवसरवादी राजनीति करते हैं और दोनों अपने नीति सिद्धान्तों से भटक चुके हैं. यही वजह है कि बयान का लेवल इतना नीचे गिरा कि राजनीतिक बयानबाजियों के साथ पर्सनल हमले भी किये गये.''- अरुण पाण्डेय, वरिष्ठ पत्रकार

ABOUT THE AUTHOR

...view details