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मोदी की 'नीति' पर नीतीश के सवाल, पूछा- '..तो कौन लोग कर रहे हैं काम?'

स्वास्थ्य व्यवस्था (Health System) को लेकर नीति आयोग (NITI Aayog) की रिपोर्ट में बिहार की रैंकिंग को लेकर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं. जिसके बाद सीएम नीतीश ने इस रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े कर दिए कि आखिर बंद कमरे में किन मानकों के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की गई है. डबल इंजन की सरकार में आखिर इस तरह का विभेद क्यों है. पढ़ें रिपोर्ट..

पटना
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Published : Oct 4, 2021, 11:05 PM IST

पटना:स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर पूरे देश के हालात पर नीति आयोग (NITI Aayog) की आई रिपोर्ट और उसमें बिहार की रैंकिंग को लेकर जो सवाल उठाया गया उस रिपोर्ट पर ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने सवाल उठा दिया है. नीतीश कुमार ने बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था पर हो रहे काम और उसके बदले हालात पर नीति आयोग की रिपोर्ट को लेकर अपनी नाराजगी जताते हुए यहां तक कह दिया कि नीति आयोग में कौन लोग काम कर रहे हैं और किनसे काम कराया जाता है अबकी बार दिल्ली जाऊंगा तो उन लोगों से पूछूंगा.

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नीति आयोग के कामकाज पर जिस तरीके से नीतीश कुमार ने सवाल उठाया है. उसके बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या नीति आयोग जिस उद्देश्य के लिए बनाई गई थी वह अपनी नीतियों पर काम कर रही है या फिर सिर्फ नाम की नीति आयोग बनकर रह गई है, क्योंकि नीतीश कुमार की यह टिप्पणी राजनीतिक रूप से गंभीर तो है साथ ही नरेंद्र मोदी के उस काम पर भी सवाल खड़ा कर रहा है जिसमें नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले योजना आयोग को ही खत्म करने की बात उन्होंने कह दी थी.

देश में आर्थिक संरचना की व्यवस्था और व्यवस्थाओं में मजबूत अर्थ तंत्र का समन्वय होता रहे इसके लिए एक स्वायत्त संस्था बनाई गई. जिसकी जरूरत आजाद भारत से पहले भी महसूस की गई थी और भारत की आजादी के बाद भी 1930 में ब्रिटिश हुकूमत ने भारत की आर्थिक संरचना की व्यवस्था की जांच पड़ताल करने के लिए आर्थिक योजना बोर्ड का गठन किया था और यह तय किया गया था कि यह बोर्ड देश की आर्थिक संरचना, औद्योगिक हालात, विज्ञान, प्रशासन और राजनीति को दिशा देने का काम करेगा.

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देश आजाद हुआ तो 15 मार्च 1950 को देश में योजना आयोग का गठन कर दिया गया. योजना आयोग देश के लिए नीतियां बनाएगा, राज्यों के साथ समन्वय करेगा और राज्यों में चल रही नीतियों को इतना मजबूत करेगा ताकि राज्य और केंद्र के बीच विकास की रफ्तार बनी रहे, लेकिन योजना आयोग के कामकाज को लेकर कई लोगों को बड़ा एतराज रहा और इसमें सबसे बड़ा एतराज वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री और उस समय गुजरात की सियासत में मुख्यमंत्री के तौर पर काम कर रहे नरेंद्र मोदी को था.

योजना आयोग की सिफारिशों को लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्री इस बात का आरोप लगाते रहते थे कि योजना आयोग बंद कमरे में नीतियां बनाता है. राज्यों के बारे में बहुत कुछ उन्हें पता नहीं होता है, हालांकि इस विषय में नीतीश कुमार भी कई बार इस चीज को कहते रहे हैं कि योजनाओं को बनाते समय राज्यों से परामर्श लेना जरूरी है, क्योंकि केंद्र सरकार राज्यों के लिए जो योजनाएं बनाती है, उनमें वह योजना उस राज्य के लिए सारगर्भित है या नहीं इसकी जानकारी जरूरी है.

लेकिन, इसका सबसे बड़ा विरोध नरेंद्र मोदी को था और नरेंद्र मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बने तो 13 अगस्त 2014 को योजना आयोग को भंग कर दिया गया. 15 अगस्त 2014 को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग के बंद हो जाने की जानकारी भी दे दी और बता भी दिया कि योजना आयोग में जो लोग काम करते थे, वह बंद कमरे से बाहर नहीं निकलते थे और उसके बाद नरेंद्र मोदी वाली सरकार ने देश के लिए नीति आयोग का गठन कर दिया.

योजना आयोग का सबसे बड़ा काम पंचवर्षीय योजना को बनाना था, हालांकि 1989-90 में जो राजनीतिक हालात बने थे, उसमें बहुत कुछ बेहतर तरीके से नहीं बन पाया था. 1990, 1991, 1992 की जो योजना बनी थी वह आज भी वार्षिक योजना के नाम से ही जानी गई. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह सभी काम जो कांग्रेस के समय में हुए थे, योजना आयोग को भंग करने के कारणों में डाले गए.

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योजना आयोग के अंतिम उपाध्यक्ष के तौर पर मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने काम किया और उसके बाद योजना आयोग भंग हो गया. विभेद भी था और सियासत भी लेकिन अब जब नीति आयोग के कामकाज पर नरेंद्र मोदी के साथ काम कर रहे नीतीश कुमार ने ही सवाल उठा दिया, तब एक बार प्रासंगिक फिर प्रासंगिक होता है कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि नीति आयोग के कामकाज पर सवाल उठ रहा है.

वास्तव में आर्थिक मोर्चे पर जिस तरीके से नरेंद्र मोदी सरकार की किरकिरी हुई है, वह देश में कई सवाल खड़ा कर रही है. नरेंद्र मोदी की सिफारिशों और बयानों में यह था कि देश में बहुत काला धन है अगर नोटबंदी कर दी जाती है तो देश का काला धन वापस आ जाएगा. नीति आयोग में इस बात की चर्चा भी खूब हुई थी, नोट बंद कर दिए गए. लेकिन, काला धन वापस नहीं आया.

नीतियों को जगह दी गई कहा गया कि नमामि गंगे योजना बनाई जाएगी, गंगा बचा ली जाएगी. लेकिन, गंगा में तैरती लाशों में नीति आयोग के उस नमामि गंगे योजना पर इतना बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया कि प्रधानमंत्री की सारी नीति ही भटकती दिखाई दी. देश के विकास के लिए नीति आयोग की जो नीतियां थी, वह कोरोना काल में कुछ इस कदर भटक गई कि उसे पटरी पर लाने में ही सब कुछ बे-पटरी हो गया है.

नीति आयोग के गठन के प्रारूप में ही रखा गया है कि राज्यों के साथ बेहतर संबंध में राज्यों के लिए नीतियां और राज्यों के लिए केंद्र से बेहतर संरचना खड़ा करने के लिए जिन भी चीजों की जरूरत होगी, उसकी जिम्मेदारी और उसकी व्यवस्था नीति आयोग तय करेगी. अब बिहार का सवाल यही है कि अगर बिहार में अस्पताल की व्यवस्था ठीक नहीं थी तो नीति आयोग ने बिहार की व्यवस्था को मजबूत करने के लिए काम क्यों नहीं किया. बिहार के लिए जो नीतियां बनाई गई उसमें अस्पताल की व्यवस्था सबसे ऊपर हो इसके लिए नीति क्यों नहीं बनाई गई और नीति आयोग ने इस पर काम क्यों नहीं किया.

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नीतीश कुमार का सवाल इसलिए भी लाजमी है कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर जितना काम किया गया और जितना काम किया जा रहा है उसकी सही ढंग से समीक्षा नीति आयोग द्वारा नहीं की गई. नीतीश कुमार का आरोप भी यही है कि नीति आयोग के लोगों ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि बिहार की भौगोलिक स्थिति क्या है, जनसंख्या घनत्व क्या है, प्रति व्यक्ति आय और प्रति वर्ग किलोमीटर में जनसंख्या का अनुपात क्या है, बंद कमरे में बैठकर सिर्फ कुछ आंकड़ों को लेकर नीति आयोग ने जिस रिपोर्ट को बना दिया इस पर पूरे तौर पर यही कहा जा सकता है कि नीति आयोग अब सही ढंग से काम नहीं कर रहा है.

नीतीश कुमार ने नीति आयोग पर जिस तरीके के सवाल खड़े किए उसके बाद एक सियासी चर्चा शुरू हो गई है कि नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार दोनों लोग विकास मॉडल की बड़ी तेजी से चर्चा करते थे. नरेंद्र मोदी के गुजरात का मॉडल और नीतीश कुमार के बिहार के विकास का मॉडल कभी देश में चर्चा का विषय हुआ करता था. नीतीश के विकास मॉडल की स्थिति यह थी कि पूरे देश में जीडीपी में बिहार आगे हुआ करता था.

लेकिन, नीति आयोग बनने के बाद जो नीतियां बिहार तक पहुंची और जिन नीतियों को बिहार तक पहुंचना था उसमें कहीं ना कहीं कोई कमी तो जरूर रह गई है. यही वजह है कि दो इंजन के साथ चल रही सरकार नरेंद्र मोदी की नीतियों को सही ढंग से बिहार तक नहीं पहुंचा पाई या फिर बिहार में चल रही नीतीश कुमार की सरकार नीति आयोग की नीतियों को जमीन पर नहीं उतर पाई. सवाल तो विपक्ष भी पूछेगा, सवाल बिहार भी पूछेगा क्योंकि सब कुछ बिहार ने इन्हीं दोनों नेताओं को दिया है तो फिर इनकी नीतियों में यह विभेद क्यों है.

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