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बिहार विभूति अनुग्रह नारायण सिंह की जयंती, राज्यपाल और CM नीतीश ने किया नमन

आज सीएम नीतीश कुमार ने अनुग्रह नारायण सिंह को श्रद्धांजलि दी ( Nitish Kumar pays tribute to Anugrah Narayan Singh) है. वहीं, राज्यपाल फागू चौहान (Governor Phagu Chauhan) ने भी राजभवन स्थित अपने कार्यालय कक्ष में अनुग्रह उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण किया.

अनुग्रह नारायण सिंह की जयंती
अनुग्रह नारायण सिंह की जयंती

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Published : Jun 18, 2022, 1:47 PM IST

पटना: आज बिहार के पहले उप-मुख्यमंत्री डॉ. अनुग्रह नारायण सिंहकी जयंती (Anugrah Narayan Singh birth anniversary) है. इस मौके पर राज्यपाल फागू चौहान (Governor Phagu Chauhan) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार(CM Nitish Kumar) ने उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर नमन किया. इस मौके पर सूबे के शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी और जल संसाधन मंत्री संजय झा ने बिहार विभूति को नमन किया.

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सादगी थी उनकी पहचान: डॉ अनुग्रह नारायण सिंह बिहार के पहले उप-मुख्यमंत्री के अलावा वित्तमंत्री भी रहे थे, लेकिन दूसरे नेताओं से अलग उनकी पहचान सादगी से थी. वे देश के स्वाधीनता-संग्राम के उन महान नायकों में एक थे जो ना केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पद चिह्नों पर उनके प्रिय अनुयायी और प्रमुख सहयोगी बनकर जीवन पर्यन्त चले और साथ ही स्वतंत्रता के पश्चात अपने गृह राज्य को अपनी निष्ठा, अध्यवसाय, प्रतिभा एवं उत्कृष्ट प्रशासनिक क्षमता से आगे बढ़ाया.

आधुनिक बिहार निर्माण में भूमिका:जो भूमिका सरदार पटेल ने अखिल भारतीय स्तर के शासन में निभाई थी, वही भूमिका बिहार के प्रशासन और मंत्रिमंडल में अनुग्रह बाबू की थी. संयोग देखिये जहां पटेल गुजरात में गांधीजी द्वारा चलाये गये प्रथम सत्याग्रह के महत्वपूर्ण अंग थे, अनुग्रह बाबू ने 1917 के चम्पारण आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई थी जो हिंदुस्तान में अपने तरह का पहला सत्याग्रह था और जिसने गांधी जी को राष्ट्रीय पटल पर सुविख्यात किया. आज़ादी के बाद उन्होंने बिहार के प्रशासनिक ढांचा को तैयार करने का काम किया था.

बिहार विभूति के रूप में पहचान:औरंगाबाद जिले के पोईअवा गांव में 18 जून 1887 को जन्मे डॉ सिंह का बचपन ग्रामीण माहौल में बिल्कुल किसी आम बच्चे की तरह बीता लेकिन कॉलेज की पढ़ाई के दौरान वे अलग ही शख्सियत की तरह उभरे. पटना कॉलेज में पढ़ते हुए उन्होंने उस दौर के नेताओं के भाषण सुने. 5 जुलाई 1957 को जब पटना में उनका निधन हुआ तो शहरी-ग्रामीण हर आबादी में शोक छा गया. इस दौरान 7 दिनों का राजकीय शोक घोषित हुआ था. आज भी आधुनिक बिहार के निर्माण में उनका नाम सबसे पहले याद किया जाता है.

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