पटना:यूं तो कानून के तहत देश में बाल श्रम निषेध है और 14 वर्ष तक के बच्चों से किसी प्रकार की भी कोई मजदूरी, कला और अभिनय के क्षेत्र को छोड़कर दंडनीय अपराध है. जो लोग बाल मजदूरी करवाते हैं उन्हें अनुच्छेद 24 के तहत 2 साल की सजा या ₹50000 जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है. लेकिन प्रदेश के सरकारी कार्यालयों में ही बाल मजदूरी के नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है. पटना के गर्दनीबाग स्थित जिला स्वास्थ्य समिति के कार्यालय में बुधवार को ऐसा ही दृश्य सामने आया.
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सरकारी कार्यालय में बाल मजदूरी: कार्यालय में 3 बाल मजदूर दवाइयों का कार्टन ढोत नजर आए. पहले बच्चों ने सिर पर दवाइयों का कार्टन उठाया और कुछ दूर तक ले कर गए. उसके बाद जब थक गए तो साइकिल के कैरियर पर रखकर दवा ढोना शुरू किया लेकिन दवा का बोझ इतना अधिक था कि कई बार साइकिल से पूरा कार्टन नीचे गिर रहा था.
जिला स्वास्थ समिति कार्यालय का मामला:बच्चों की उम्र 9 से 13 साल के बीच थी. एक बच्चे राहुल (बदला हुआ नाम) ने बताया 11:00 के करीब से दवाई ढो रहे हैं और लगभग 4:00 बजे तक जब तक गाड़ी पर की सभी दवाइयां उतर नहीं जाएंगी, काम चलेगा. इस काम के लिए तीनों को कुल ₹500 दिए जाएंगे. इसी दौरान एक वयस्क मजदूर आता है और सभी को भगाता है बोलता है मीडिया जब चला जाए तब काम करना.
"हम सभी स्थानीय बस्ती के रहने वाले हैं. स्कूल नहीं जाते हैं. जहां मजदूरी मिलती है वहीं काम कर लेते हैं."- राहुल(बदला हुआ नाम),बाल मजदूर
सिविल सर्जन ने दिए जांच के आदेश: इस घटना को लेकर जब हमने सिविल सर्जन से सवाल पूछा तो सिविल सर्जन डॉक्टर श्रवण कुमार ने कहा कि मीडिया के माध्यम से मामला हमारे संज्ञान में आया है. यह बेहद संगीन मामला है और वह इस मामले की जांच करेंगे.
"जो भी दोषी होंगे उन पर आवश्यक कार्रवाई करेंगे. स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय में इस प्रकार का बाल श्रम बहुत ही अनुचित कृत्य है. मामले को देख रहे हैं और जो संबंधित अधिकारी हैं उनसे जवाब मांगेंगे."- डॉक्टर श्रवण कुमार, सिविल सर्जन
बच्चों ने ढोया दवाइयों के कार्टन: बताते चलें कि बीएमएसआईसीएल से जिला औषधि भंडार को दवा उपलब्ध होता है और कई बार गाड़ी पर से दवा का स्टॉक जल्दी उतरवाकर दवा भंडार में रखने के लिए पिकअप वैन के ड्राइवर स्थानीय छोटे बच्चों को पकड़ लेते हैं और उन्हें चंद पैसों का लालच देकर बाल मजदूरी करवाते हैं. ऐसे में बाल मजदूरी की जो तस्वीरें सरकारी कार्यालय के अंदर से निकल कर सामने आती है वह खुलेआम बाल श्रम के कानूनों को मुंह चिढ़ाती है.
सारे संकल्प को भूल गए सरकारी कर्मचारी:गौरतलब है कि साल 2011 की जनगणना के तहत देश में 43.5 लाख बाल मजदूरों में 4.51 लाख बाल मजदूर यानी कि 10% बाल मजदूर से बिहार में मिले. हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है और सरकार और सरकारी कर्मचारी बाल मजदूरी के खिलाफ प्रण लेते हैं. यह भी संकल्प लेते हैं कि जहां भी उन्हें बाल मजदूरी करते बच्चे दिखेंगे, इसकी सूचना वह संबंधित अधिकारी को देकर बाल मजदूरी को बंद कराएंगे. लेकिन हकीकत में तस्वीरें कुछ और निकल कर सामने आती हैं.