पटना:छठ महापर्व(Chhath Puja 2021 ) के दौरान व्रतियां कोसी (हाथी) भरने (Kosi Bharai ) की भी परंपरा निभाते हैं. खासकर जोड़े में कोसी भरने को बेहद शुभ माना गया है. मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता है, जिसके पूरे होने पर उसे कोसी भरना पड़ता है. सूर्य षष्ठी की शाम को सूर्य अर्घ्य के बाद घर के आंगन या छत पर कोसी पूजन करना बेहद शुभ और श्रेयकर माना गया है.
यह भी पढ़ें-शाम को खीर खाकर शुरू हो जाएगा छठ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास, कल पहला अर्घ्य
लोक आस्था का महापर्व छठ ही ऐसा पर्व है जिसमें कोसी (हाथी) भरने की परंपरा है. इसमें मिट्टी के बने हाथी पर दीये बने होते हैं. कोई हाथी 6 दीए का रहता है तो कोई 12 दीए का और कोई 24 दीए का. हाथी को लोग पहले अर्घ्य के बाद अपने घर के आंगन या छत में भरते हैं. फिर अगली सुबह दूसरे अर्घ्य के बाद मिट्टी के हाथी को जल में विसर्जित कर दिया जाता है.
यह भी पढ़ें- Chhath Puja 2021: छठ पूजा में भोजपुरी गीत सुनते ही झूम उठते हैं बिहारी
छठ में पहले अर्घ्य के बाद रात में घर में और अगले दिन सुबह भोर में घाट पर कोसी भरते हैं. ऐसे में जिन लोगों की मन्नतें पूरी हुई होती है या जिनके घर में कोई मांगलिक कार्य हुआ होता है, वह कोसी के साथ साथ हाथी भी भरते हैं. जिसकी जितनी मन्नत होती है, हिसाब से हाथी भरा जाता है.
यह भी पढ़ें- नहाय-खाय के साथ महापर्व छठ व्रत आज से शुरू
छठ के समय मिट्टी से बने हाथियों का अमूमन बाजार देखने को मिलता है. ऐसे में मिट्टी का बना हाथी अभी के समय में 300 रुपये से 800 रुपये के बीच में बिक रहा है. बाजार में मिट्टी के डिजाइनर हाथी भी उपलब्ध हैं. हाथी के ऊपर ढक्कन होता है, उसमें लोग तेल भरते हैं और मनोकामना पूरी करने के लिए छठी मईया और सूर्य देवता को अपना आभार जताते हैं.
यह भी पढ़ें-जानिए क्यों मनाया जाता है छठ महापर्व, क्या है इसका पौराणिक महत्व
बाजार में मिट्टी का हाथी, ढक्कन, कलश और दिया बेच रहे मोहन ने बताया कि मन्नत पूरी होने पर और मांगलिक कार्य होने पर घर में लोग छठ के दौरान कोसी भरने के समय हाथी भरते हैं.
यह भी पढ़ें- Chhath Puja 2021:छठ में चढ़ने वाले इन प्रसादों का है खास महत्व, मईया होती हैं प्रसन्न
"शादी- ब्याह के अलावा छठ में भी हाथी का इस्तेमाल होता है. हाथी लोग जोड़ा में भी भरते हैं. सिंगल हाथी की कीमत इस बार बाजार में 300 रुपये से 800 रुपये तक है. हाथी कई प्रकार के होते हैं. कोई 6 दीया का होता है, कोई 12 दीया और कोई 24 दीया."- मोहन, कुम्हार
यह भी पढ़ें- Chhath Geet: छठी मईया के गीतों से गूंजा पटना का गंगा घाट
बाजार में हाथी खरीद रही छठ व्रती स्मिता सिंह ने बताया कि उनके यहां रिवाज है कि अगर घर में कोई मांगलिक कार्य होता है, जैसे शादी होना या गृह प्रवेश होना या फिर कोई मन्नत पूरी होती है, तो कोसी भरा जाता है.
"घर इस बार शादी संपन्न हुई है इसलिए कोसी खरीद रहे हैं. पहले अर्घ्य के बाद घर में कोसी में तेल भरकर जलाया जाता है और फिर अगले दिन सुबह दूसरे अर्घ्य के समय कोसी जलाया जाता है और पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है."- स्मिता सिंह, छठ व्रती
यह भी पढ़ें-Chhath Puja 2021:आस्था के साथ-साथ छठ पूजा का है वैज्ञानिक महत्व, कारण जान हो जाएंगे हैरान
वहीं पंडित मधुसूदन त्रिवेदी ने बताया कि सूर्य की पूजा का अपना खास महत्व होता है. यह पर्व पुत्र, पति और परिवार जनों के सुख और समृद्धि के लिए की जाती है. इस पर्व में लोग मन्नत रखते हैं और मन्नत पूरी होने पर लोग पूजन सामग्री का वितरण करते हैं या फिर कोसी भरते हैं.
छठ पूजा से पहले कम से कम चार या सात गन्ने की मदद से एक छत्र बनाया जाता है. एक लाल कपड़े में ठेकुआ, फलों का अर्कपात, केराव आदि रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है. फिर छत्र के अंदर मिट्टी से बना हाथी रखा जाता है, जिसके ऊपर घड़ा रख दिया जाता है. मिट्टी से बने हाथी को सिंदूर लगाकर घड़े में मौसमी फल, ठेकुआ, अदरक, सुथनी आदि सामग्रियां रखी जाती है.
कोसी पर एक दीया जलाया जाता है, फिर कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामग्री से भरे सूप, डलिया, तांबे के पात्र और मिट्टी का ढक्कन रखकर दीप जलाए जाते हैं. अग्नि में धूप डालकर हवन करते हुए छठी मइया के सामने माथा टेककर आशीर्वाद लिया जाता है. अगली सुबह यही प्रक्रिया नदी के घाट पर दोहराई जाती है. यहां महिलाएं मन्नत पूरी होने की खुशी में मां के गीत गाते हुए छठी मां का आभार जताती हैं.
कोसी भरने वाला पूरा परिवार उस राज रतजगा भी करता है. घर की महिलाएं कोसी के सामने बैठ कर गीत गाती हैं, तो पुरुष भी इस कोसी की सेवा करते हैं. इसे 'कोसी सेवना' भी कहते हैं. जिस घर में कोसी की पूजा होती है, वहां रात भर उत्साह का माहौल होता है. काफी नियम और कायदे के साथ पहले अर्घ्य से दूसरे अर्घ्य तक कोसी की पूजा की जाती है और भगवान सूर्य का आभार व्यक्त किया जाता है.