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पेट्रोल-डीजल में मामूली कटौती से नहीं जमेगी बात, लानी होगी कोई बड़ी राहत वाली योजना

दिवाली के मौके पर मोदी सरकार ने पेट्रोल डीजल के दाम में कमी करके जनता को कुछ सुकून देने का काम जरूर किया है. लेकिन महंगाई की मार झेल रहे लोग क्या इस थोड़ी सी कमी से संतुष्ट हो पाएंगे, या फिर लोगों को किसी बड़ी राहत की दरकार है. ये बिहार सरकार को भी समझना होगा.

पेट्रोल डीजल
पेट्रोल डीजल

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Published : Nov 4, 2021, 7:45 PM IST

पटनाःदेश में बढ़ती महंगाई (Rising Inflation In Country) ने राजनीतिक दलों के माथे पर बल इस आधार पर डाल दिया है कि अगर जनता नाराज हो गई तो क्या होगा. पूरे देश में हुए उपचुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन (BJP Performance In by-elections) को लेकर सवाल उठने लगा है और बीजेपी को यह लगने लगा कि शायद लगातार बढ़ रही महंगाई उनके लिए परेशानी का कारण बन रही है. तो ऐसे में एक राहत की राह निकाल दी जाए ताकि जनता को लगे कि सरकार उनके लिए भी कुछ करती है और यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने दीपावली से ठीक पहले पेट्रोल और डीजल के दाम गिरा दिए.

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नीतीश कुमार भी नरेंद्र मोदी की राह पर चलते हुए तुरंत एक्शन में आ गए और बिहार में भी डीजल 3.90 पैसे और पेट्रोल 3.20 पैसे इसलिए सस्ता हो गया क्योंकि सरकार ने वैट की दर को कम कर दिया. लेकिन यह राहत वाली राह कितनी दूर तक जाएगी इसे लेकर सवाल उठने लगा हैं, क्योंकि फौरी तौर पर जनता को यह जवाब तो दे दिया गया कि तेल के दाम कम कर दिए गए हैं. लेकिन जिस तरीके से तेल का दाम बढ़ रहा है, जिस टैक्स को कम किया गया है वह बढ़ते तेल के दाम पर कब अपने टैक्स की भरपाई कर लेगा या नहीं कहा जा सकता. क्योंकि बढ़ते दाम को रोकने का कोई काम किया नहीं गया है.


देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टैक्स में कटौती की तो तेल के दाम में 5 और 10 की कमी आ गई. माना यह जा रहा है कि बढ़ती महंगाई से बहुत बड़ी राहत देने की कोशिश की गई है. क्योंकि सामान की ढुलाई से लेकर आम आदमी की यात्रा तक इतनी महंगी हो गई है कि लोगों का जीवन ही दूभर हो गया है. जिस महंगाई के बदौलत कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंकने का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी देश की गद्दी पर बैठे थे यह उनके कार्यकाल में ही संभव हुआ है कि पेट्रोल 100 से ऊपर चला गया और अब कितना टैक्स लिया जा रहा है यह तो खुलकर के सामने भी आ गया है.

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उपचुनाव में जनता की नाराजगी साफ दिखी तो तेल के दाम में कटौती कर दी गई क्योंकि आने वाले 2022 में पांच राज्यों के चुनाव में इसी की परीक्षा होनी है की जनता महंगाई की आग में पिसती रहे और नेता अच्छे बातों से भाषण दे करके अपना पेट भरते रहें, क्योंकि नेताओं के लिए कुछ घटने वाला है नहीं. मुफ्त की बहुत कुछ चीजें मिलती हैं उसमें नरेंद्र मोदी भी शामिल है. कहीं अलग नहीं हैं. लेकिन जो कुछ अलग है वह देश की जनता है. जो हर दिन पैसे जोड़ कर तो जाती है कि आज पेट्रोल लेंगे लेकिन जितना पैसा लेकर जाती है उसमें कुछ रुपये बढ़ ही जाते हैं और मजबूरन उतने का ही तेल लेकर उसे लौटना पड़ता है जितना पैसा वह घर से लेकर जाते हैं.

देश के लिए यह भी एक दुर्भाग्य की ही बात है कि अब देश 1 लीटर का दाम 1 दिन पहले नहीं जानता. यह इसी नरेंद्र मोदी सरकार की देन है जो अब देश की जनता गुस्से के नजरिए से देखने लगी है नरेंद्र मोदी के एक मुख्यमंत्री ने कह दिया कि हमारी जो हालत हुई है उसमें बढ़ती महंगाई एक कारण है. लेकिन इसके दूसरे आंकड़ों पर अगर गौर कर लें तो हर दिन 35 पैसे और 30 पैसे के अनुसार तेल के दाम बढ़ रहे हैं. 5 रुपये दाम जो घटाया गया है, वह आने वाले समय में इसी 35 पैसे से पूरा कर लिया जाएगा.

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कई अर्थशास्त्री इस बात को मानकर चल रहे हैं कि नरेंद्र मोदी की सरकार को तेल के दाम को ही स्थिर कर देना चाहिए था. बजाय इस चीज के की हर दिन तेल के दाम बढ़ते रहें और 5 या 10 रुपये तेल का दाम कम कर दिया जाए. लेकिन तेल के बढ़ते दाम को न रोका जाए. यह राजनीति का कौन सा हिस्सा है यह देश की जनता नहीं समझ पा रही है. लेकिन राजनीति को शायद लग रहा है कि 5 और 10 रुपये दाम कम करके देश की जनता को राहत की राह दे दी गई है.

अब बिहार लौट आते हैं. बिहार में डबल इंजन की सरकार है. केंद्र में मोदी है तो बिहार में नीतीश कुमार हैं. नरेंद्र मोदी ने तेल के दाम कम किए तो नीतीश कुमार को भी लगा कि तेल का दाम कम कर देना चाहिए. क्योंकि जनता की नाराजगी बेवजह मोल लेना इस आधार पर ठीक नहीं है कि बता तो दिया जाए कि तेल के दाम कम किए क्योंकि हर दिन बढ़ने वाले तेल के दाम से आने वाले समय में कम किए गए दाम की भरपाई हो जाएगी. इसे कम करने में गुरेज ही क्या है. जनता को भी लग गया कि दीपावली के दिन एक बेहतर तोहफा आ गया है.

बिहार सरकार ने 3.90 पैसे डीजल पर 3.20 पैसे पेट्रोल पर कम कर दिए. वैट में कमी कर दी लेकिन बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि बिहार की जनता जो एक सर्विस स्टेट के तौर पर और पूरे देश में सबसे कम आय वाले राज्य का कुपोषण में सबसे पीछे रहने वाले, शिक्षा व्यवस्था का नामोनिशान न होने वाला, बाढ़ में अपना सब कुछ गंवा देने वाला राज्य 100 से ऊपर का तेल खरीदेगा और 3. 90 पैसे और 3.20 पैसे सरकार की रहमत से फीलगुड महसूस करेगा.

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अब नीतीश कुमार की जल्दबाजी में लिया गया यह फैसला शायद यह कहा जा सकता है कि 2 सीटों पर मिली जीत नीतीश के काम के आधार पर है. लेकिन बढ़ती महंगाई एक बड़ी वजह है ना बन जाए, इस कारण से भी ऐसा करना जरूरी था. क्योंकि अगर उत्तर प्रदेश के चुनाव में जाते हैं तो बताने के लिए उसके पास रहेगा कि हमने अपने राज्य में तेल के दाम राज्य के टैक्स को कम करके कम कर दिया है. ऐसे में अगर उनकी कोई भूमिका भागीदारी उत्तर प्रदेश में होती है तो टैक्स में कमी कर तेल के दाम को कम करेंगे. लेकिन एक बात जो पूरी तौर पर दोनों राजनीतिक दलों को बेहतर तरीके से समझ में आ गया है और खासतौर से दिल्ली की गद्दी पर बैठी सरकार को कि राहत की जिस राह को उन्होंने 5 और 10 रुपये से जनता को देने की कोशिश की है अगर जनता ने भी इन राजनीतिक दलों के मुद्दे वाले दावे पर अठन्नी और चवन्नी वाली राजनीति का हिसाब किताब जोड़ना शुरू किया तो चुनाव में जो हाल बिहार को छोड़कर बाकी जगहों पर भाजपा का हुआ है शायद उत्तर प्रदेश उसका भी गवाह बन जाए.

एक बार सरकार को फिर से सोचना चाहिए कि जिस राहत की राह की बात वह कर रहे हैं, उसका जमीनी आधार इतना मजबूत नहीं है कि जनता उसे इतनी जगह दे दे कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में 5 और 10 की राजनीति जीत की डगर आसान कर दे. क्योंकि महंगाई की मार से आम जन हलकान है. इसमें दो राय नहीं है सिलेंडर के दाम सब्जियों के दाम और किचन में आने वाले हर वो सामान ने आम लोगों की जिंदगी को दूभर कर दिया है, इसे सिर्फ वह लोग नहीं जानते जिन्हें सरकार सबकुछ सब्सिडी पर देती है, सरकार में मंत्री और बहुत बड़े पद पर होने के बाद भी सब्सिडी वाली चाय ही पीते हैं तो उन्हें शायद यह समझ नहीं आ रहा है कि देश की जनता बहुत ज्यादा परेशानी में है और इस तरह की राहत उसे बहुत ज्यादा सुकून नहीं दे पाएगी. इसलिए महंगाई की आफत से बचाने के लिए कोई बड़ी राहत वाली योजना लानी पड़ेगी.

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