पटना:नीतीश कुमार की राजनीति को समझना आसान नहीं है. जब तक उनके एक कदम की चर्चा होती रहती है उसी समय नीतीश कोई दूसरा कदम उठाकर लोगों को अचरज में डाल देते हैं. आरजेडी से बढ़ती दूरी की अटकलों के बीच नीतीश का इंडिया गठबंधन का संयोजक बनने से इनकार करना कई सवालों को जन्म दे रहा है.
चुनावी मोड में नीतीश कुमार!: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले दो महीने में एक के बाद एक कई बड़े फैसले लिए हैं. सबसे बड़ा फैसला 4 लाख नियोजित शिक्षकों को सरकारी शिक्षक बनाने का रहा है. इसके साथ ही आंगनबाड़ी सेविका और सहायिका के साथ पंचायत प्रतिनिधियों की ओर से मानदेय बढ़ाने की मांग भी लंबे समय से हो रही थी. मुख्यमंत्री ने पिछले कैबिनेट में ही इस पर फैसला ले लिया है.
एक के बाद एक बड़े फैसले: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले 17 -18 सालों से बिहार की सत्ता केंद्र में बने हुए हैं. जल्द ही लोकसभा चुनाव भी होना है और चर्चा है कि बिहार विधानसभा का चुनाव भी हो सकता है. इसलिए कि नीतीश कुमार एक तरफ पार्टी का कई कार्यक्रम चला रहे हैं तो वहीं सरकार के स्तर पर भी एक के बाद एक कई बड़े फैसले ले रहे हैं जो सीधे लोक लुभावना दिख रहा है. यह एक बड़े वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है.
वोट बैंक पर नीतीश की नजर:अति पिछड़ा और एससी एसटी की आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ाकर 65% करना, अति पिछड़ा 25% पिछड़ा 18% और एससी एसटी 22% किया गया है. बिहार में 13 करोड़ आबादी है और उसमें 36 प्रतिशत अति पिछड़ा की आबादी है. उसे अब 25% आरक्षण नीतीश सरकार ने दिया है. इससे वोट बैंक को रिझाने की कोशिश है.
बड़ी आबादी को खुश करने की कोशिश:इस तरह 4 लाख नियोजित शिक्षकों को सरकारी शिक्षक बनाने का फैसला भी लिया गया है. एक बड़ी आबादी को खुश करने की कोशिश नीतीश कुमार की तरफ से की गई है. 2 लाख से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति पत्र वितरित करना, दूसरे चरण की नियुक्ति तो केवल 2 महीने में ही कर दी गयी है. इसके साथ 234748 पंचायत प्रतिनिधियों का मासिक मानदेय दोगुना करने का भी बड़ा फैसला लिया गया है.
चुनावी मोड में नीतीश:एक बड़ी आबादी को सीधे लुभाने की कोशिश है. इसके अलावा 230000 सेविका और सहायिका का मासिक मानदेय भी बढ़ाने का फैसला लिया गया है. कुल मिलाकर देखें तो लाखों लोगों को मुख्यमंत्री अपने फैसले से प्रभावित कर रहे हैं. राजनीतिक विशेषज्ञ भी कह रहे हैं की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनावी मोड में है.
"जो भी फैसला ले रहे हैं चाहे शिक्षक नियुक्ति का हो या अन्य फैसला सभी का क्रेडिट खुद लेना चाह रहे हैं. एक बड़ा वोट बैंक उनके फैसले से प्रभावित हो सकता है."- रवि उपाध्याय, राजनीतिक विशेषज्ञ