पटना: बिहार की राजनीति की चाणक्य कहे जाने वाले सूबे के सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की मुश्किलें अब बढ़ती जा रही हैं. दरअसल, विपक्षी पार्टियां हमेशा से आरोप लगाती रही हैं कि मुख्यमंत्री अफसरों (Bureaucrats) के भरोसे ही सरकार चला रहे हैं. सूबे में जनप्रतिनिधियों की पूछ नहीं है. गाहे-बगाहे बीजेपी के मंत्री भी इस मामले को हमेशा उठाते रहे हैं.
पिछले दिनों ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर यही बात जदयू कोटे के मंत्री मदन सहनी ने भी कहा था. अब हाल ही में जनता दल यूनाइटेड में शामिल होने के बाद अपनी बिहार यात्रा करने के दौरान उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने भी कबूल किया है कि अफसरशाही हावी है. सरकारी दफ्तरों में अधिकारियों का जो रवैया है, उससे लोगों में नाराजगी है.
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सूबे में अफसरशाही बेलगाम है. इस तरह की बात आम तौर पर विपक्ष करता रहा है. कभी-कभार बीजेपी के नेता और मंत्री भी इसे उठाते रहे हैं. यह भी सही है की अफसरशाही के कारण जदयू के भी कई मंत्री और विधायक परेशान रहते हैं. अभी हाल ही में मदन सहनी ने खुलकर अपनी बात कही थी. हालांकि बाद में नीतीश कुमार के हस्तक्षेप से मामला सुलझ गया था. जहां नीतीश कुमार की कुछ अफसरों पर अधिक मेहरबानी रहती है तो कुछ को उनकी नाराजगी का भी सामना करना पड़ता है. वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सुधीर कुमार जिस प्रकार से थाने पहुंचकर मुख्यमंत्री और सरकार के चुनिंदा अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर कराना चाहते थे, यह उसका सबसे बड़ा उदाहरण है.
वहीं विशेषज्ञ भी कहते हैं कि अफसरशाही इसलिए हावी हैं क्योंकि नीतीश कुमार उन पर ज्यादा विश्वास करते हैं. कई बार यही उनके लिए परेशानी पैदा करते हैं. वहीं जदयू के वरिष्ठ नेता और सांसद का कहना है कि नीतीश कुमार ब्यूरोक्रेसी को लेकर गंभीर भी रहे हैं. शिकायत मिलने पर बड़ी कार्रवाई भी करते रहे हैं. अभी बालू खनन मामले में की गई कार्रवाई उदाहरण है.