पटना: 'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है'. यह टैग लाइन सूबे के हर जिले के गली-मुहल्ले में दिखने को मिल जाती है. लेकिन बहार का आलम यह है कि जिस विकास की बयार की बात नीतीश कुमार कर रहे हैं. उस विकास के पायदान में बिहार का स्थान सबसे नीचे है. बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था दम तोड़ती नजर आ रही है. इसकी एक बानगी बिहटा के रेफरल अस्पताल खुद बयान कर रहा है.
नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बने लगभग डेढ़ दशक बीत चुके हैं. सातवीं बार उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री की शपथ भी ग्रहण की है. लेकिन सुशासन बाबू के राज में जनता से जुड़े मूलभूत व्यवस्थाओं का हाल बिहार में आज भी बेहाल है. राज्य सरकार ने स्वास्थ्य विभाग के बजट को बढ़ाकर 10,000 करोड़ रुपये कर दिया है. जो कि 2005 में 278 करोड़ रुपये था. लेकिन बजट में इजाफा के बावजूद जब पटना से सटे इस रेफरल अस्पताल की हालत ठीक नहीं हो सकी तो बिहार के दूर-दराज इलाके के अस्पतालों का क्या हाल होगा. ये अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं. राजधानी से महज 32 किलोमीटर दूर बिहटा रेफरल अस्पताल की हालत यह है कि स्वास्थ्य कर्मी तक डर के साए में काम कर रहे हैं.
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स्वास्थ्यकर्मियों के मन में रहता है डर
अस्पताल का भवन काफी जर्जर हो चुका है. यहां के डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं. बिहटा प्रखंड के सभी 26 पंचायत के लोगों के लिए यह एक मात्र रेफरल अस्पताल है.
डर के साए में स्वास्थ्यकर्मी 'जान जोखिम में डालकर करते हैं काम'
रेफरल अस्पताल के लैब टेक्नीशियन मृत्युंजय कुमार ने बताया कि अस्पताल के ज्यादातर हिस्से की छत आए दिन गिरती रहती है. यहां काम करते हुए हमेशा डर बना रहता है. कई बार स्वास्थ्य कर्मी घायल हो चुके हैं.
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'कई बार की जा चुकी है संबंधित विभाग से शिकायत'
वहीं, जब इस संबंध में प्रखंड के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. कृष्ण कुमार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि रेफरल अस्पताल का भवन 1979 में ही बना था. जो अब काफी पुराना हो चुका है. कई बार इसकी शिकायत स्वास्थ्य और भवन निर्माण विभाग के साथ-साथ पीडब्ल्यूडी से भी की गई है, लेकिन भवन का मरम्मत कराकर छोड़ दिया जाता है. कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो जाता है.
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बिहार का हाल बेहाल
नीति आयोग की 'एसडीजी भारत सूचकांक' में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के क्षेत्र में राज्यों की प्रगति के आधार पर उनके प्रदर्शन को आंका जाता है. जिसमें केरल पहले पायदान पर है तो बिहार अंतिम पायदान पर काबिज है. यही नहीं बिहार की हालत पड़ोसी राज्य यूपी और झारखंड से भी खराब है. वहीं, यही हालत बिहार के स्वास्थ्य महकमे का भी है. 'स्वस्थ्य राज्य प्रगतिशील भारत’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में राज्यों की रैंकिंग से यह बात सामने आई है, कि बिहार की स्वास्थय व्यवस्था दम तोड़ चुकी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक इन्क्रीमेन्टल रैंकिंग यानी पिछली बार के मुकाबले सुधार के स्तर के मामले में 21 बड़े राज्यों की सूची में बिहार 21वें स्थान के साथ सबसे नीचे है.