पटना:बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य में चुनावी सरगर्मी बढ़ी हुई है. इस बीच, दूसरे राज्यों की बड़ी पार्टियां भी यहां अपना जनाधार तलाशने में लगी रहती है. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा इन पार्टियों के नेता भी अपनी भागीदारी को महत्वपूर्ण मानते हैं. लेकिन इन दलों के नेता चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा पाते हैं. जिसके कारण इन्हें जनाधार नहीं मिल पाता और ये पार्टियां सिर्फ वोट काटने तक ही सीमित रह जाती है.
एसपी, BSP-NCP...बिहार में तलाशते रहे जगह
अगर बिहार की राजनीति में एनसीपी की भागीदारी की बात करें तो सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार का साथ देते हुए साल 1999 में तारिक अनवर ने कांग्रेस छोड़ दिया था. शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने मिलकर एनसीपी की नींव रखी थी. तारिक अनवर कटिहार से सांसद भी रहे. वहीं, 2018 में तारिक अनवर के एनसीपी छोड़ने के बाद बिहार में एनसीपी हाशिये पर चली गई. दूसरी ओर समाजवादी पार्टी और बीएसपी का भी हाल कुछ खास नहीं है.
2015 में इन पार्टियों को एक भी सीट नसीब नहीं
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी, ओवैसी की एआइएमआइएम, झारखंड की जेएमएम आदि पार्टियां ने चुनाव लड़ा था. लेकिन किसी भी पार्टी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई. जेएमएमए ने तो 32 सीटों पर और समाजवादी पार्टी ने 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल की छह सीटों पर अपनी दावेदारी रखी थी. इसके अलावा भी अन्य राज्यों की पार्टियों ने उम्मीदवार उतारे थे, जो 2015 के चुनाव में सफल नहीं हो सके.
यूपी की समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन
दूसरी तरफ, उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की बात करें तो 2005 से सपा का प्रदर्शन लगातार गिरता गया. साल 2005 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 142 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. इनमें चार सीटों पर पार्टी ने जीत हासिल की थी. लेकिन, 2010 और 2015 के चुनावों में सपा एक भी सीट जीत नहीं पायी.
जेएमएम ने किया निराश
बता करें पड़ोसी राज्य झारखंड की तो यहां जेएमएम को सिर्फ एक बार सफलता हाथ लगी. जेएमएम को 2010 के विधानसभा चुनाव में 41 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें पार्टी को एक सीट नसीब हुई थी. इसके बाद, 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने 32 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन किसी सीट पर भी सफलता नहीं मिली.
क्या ओवैसी डालेंगे असर?
एमआईएम के सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिमों के फायर ब्रांड नेता के रूप में उभर रहे हैं. ओवैसी की नजर बिहार के मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र सीमांचल पर है. 2015 में महज 6 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली एआइएमआइएमने इस बार के चुनाव में अभी तक 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का मन बनाया है.