पटनाः तमाम कोशिशों और केंद्र में किसान के साथ सरकार की हुई 6 बैठकों के बावजूद कृषि कानून की लड़ाई जहां से शुरू हुई थी. फिर वहीं आकर अटक गई है. कानून को लेकर किसानों का विरोध जो कल था वो आज भी है. अब किसान और सरकार आर-पार की लड़ाई पर उतर गए हैं.
किसान इस बात पर अड़े हैं कि कानून खत्म होने पर ही आंदोलन खत्म करेंगे. वहीं सरकार ने भी तय कर लिया है कि कानून को किसी भी हालत में वापस नहीं लिया जा सकता, ये किसानों की दशा और दिशा बदलने के लिए मील का पत्थर साबित होगा, विपक्ष किसानों का विकास नहीं चाहता. वहीं, विपक्ष जो किसानों के साथ खड़ा है उसका मानना है इसके दूरगामी परिणाम बेहतर नहीं होंगे.
बिहार में दलहन और मक्का के समर्थन मूल्य की मांग
बात अगर बिहार की करें तो यहां किसान आंदेलन करते हुए भले ही नजर नहीं आ रहें लेकिन धान खरीद में हो रही देरी, दलहन और मक्का के समर्थन मूल्य नहीं मिलने, सिंचाई की समस्या जैसी कई मुद्दों पर सरकार से गुहार लगा रहे हैं. अब तो बात ये भी उठने लगी है कि बिहार में बाजार समितियों को क्यों खत्म किया गया. यहां एफसीआई और एसएफसी को धान खरीदने की इजाजत क्यों नहीं है, सिर्फ पैक्स के जरिए किसानों का धान खरीदना संभव नहीं है.
मुख्य विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा कि क्यों सरकार पैक्स के साथ-साथ एसएफसी और एफसीआई को धान खरीद की इजाजत नहीं देती.
'जबकि सरकार का दावा है कि इस बार हम 45 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद करेंगे और मार्च के बजाय 31 जनवरी तक ही लक्ष्य को पूरा कर लिया जाएगा. इस बार लाभ किसानों को मिलेगा, बिचौलियों की भूमिका को सीमित किया जाएगा.
'इस बार हम 45 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद करेंगे और मार्च के बजाय 31 जनवरी तक ही लक्ष्य को पूरा कर लिया जाएगा. इस बार लाभ किसानों को मिलेगा बिचौलियों की भूमिका को सीमित किया जाएगा. 800 करोड़ रुपये हमने टैक्स को निर्गत किया है. मक्का और दाल की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर हो इसके लिए भी हम काम कर रहे हैं'-अमरेंद्र प्रताप सिंह, कृषि मंत्री
बिहार में किसानों को समझाने में जुटी सरकार
किसानों के साथ बैठक कर जब बात नहीं बनी तो बीजेपी ने देश भर में कृषि कानूनों पर जनसमर्थन जुटाने के लिए किसान सम्मेलन और चौपाल लगाना शुरू कर दिया. वहीं, विपक्ष ने किसानों के समर्थन में गांव-गांव पंचायत और जिला मुख्यालय पर धरना देने की कवायद शुरू की है. यानि नए कृषि कानून को लेकर लड़ाई अब तू डाल-डाल मैं पात-पात वाली हो गई है.
किसानों को कानून के बारे में समझाने और मनाने के लिए बिहार में बीजेपी के केंद्रीय मंत्रियों का दौरा शुरू हो गया है. बीजेपी के नेता जगह- जगह बैठक कर कृषि बिल के फायदे बताने में जुट गए हैं. प्रदेश भाजपा पूरे बिहार में 99 किसान सम्मेलन और 243 किसान चौपाल लगाएगी. इन सम्मेलनों के माध्यम से, कृषि बिल किस तरह से किसानों के फायदे के लिए है, यह बताया जाएगा.
किसान सम्मेलन की शुरुआत पटना के बख्तियारपुर से हुई. जहां केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि किसानों को पूरी आजादी मिलनी चाहिए कि उनकी फसल देश में कहीं भी जाए, उसे कोई रोकेगा नहीं.
'किसान आंदोलन में कूद गए गैर विपक्षी दल'
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि किसान आंदोलन में गैर विपक्षी दल भी कूद गए हैं. ये लगातार चुनाव हार रहे हैं, इसलिए सरकार के विरोध में खड़े हो जाते हैं और अपने अतीत को भूलते हुए अपने वादे भी भूल जाते हैं.
'राहुल गांधी ने 2013 में कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि किसान मंडियों को फ्री कर देना चाहिए. पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने APMC एक्ट से बदलने से लेकर किसान मंडियों को फ्री करने के लिए कई मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी थी.'- रविशंकर प्रसाद, केंद्रीय कानून मंत्री
वहीं, बीजेपी के राज्यसभा सदस्य प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लाया गया कृषि कानून श्वेत क्रांति की तरह ही कृषि क्रांति लाएगा.
बीजेपी के पूर्व मुख्य सचेतक अरुण सिन्हा ने कहा- वर्तमान में मोदी सरकार द्वारा लागू किया गया कृषि कानून देश के अन्नदाता किसानों के हित में है और 2022 तक प्रधानमंत्री मोदी का किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने वाला है. इस बिल के विरोध करने वाले सिर्फ बिचौलिये ही हैं. जो अराजकता का माहौल बना रहे हैं.