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ये दिल्ली वाले चाहते क्या हैं? मांझी को गले लगाया, नीतीश को देखने तक नहीं गए

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) आंख के इलाज के लिए आठ दिन दिल्ली में रहें. इस दौरान भाजपा के किसी नेता ने उनसे मुलाकात नहीं की. वहीं, जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) गए तो उनसे अमित शाह और जेपी नड्डा मिले. बीजेपी के इस बदले रुख को नीतीश कुमार के लिए संदेश कहा जा रहा है.

BJP ignores Nitish kumar
बीजेपी ने नीतीश कुमार की अनदेखी की

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Published : Jul 1, 2021, 9:00 PM IST

पटना:पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) से मुलाकात और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) से हाल-चाल तक नहीं पूछा. जी हां, जून के आखिरी सप्ताह में दिल्ली में मौजूद नीतीश कुमार से ना तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और ना ही BJP के किसी नेता ने मुलाकात की. जब मांझी पहुंचे तो उनसे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) की मुलाकात हुई.

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नहीं पूछा हालचाल
नीतीश कुमार आंख का इलाज कराने दिल्ली गए थे. 22 से 30 जून तक वे दिल्ली में रहे. दोनों आंखों का ऑपरेशन कराया. इस दौरान एक दिन भी ना तो प्रधानमंत्री और ना ही बीजेपी के किसी नेता ने उनसे मुलाकात की. हालचाल तक नहीं पूछा. चर्चा थी कि नीतीश केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार और अन्य मुद्दों पर बात करना चाहते थे. इस बीच जीतन राम मांझी दिल्ली गए तो ना सिर्फ उनकी और उनके बेटे संतोष मांझी की अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात हुई बल्कि कई मुद्दों पर चर्चा भी हुई. मांझी ने ट्वीट कर यह जानकारी दी कि अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात में निजी क्षेत्र में आरक्षण, न्यायपालिका में आरक्षण और अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई.

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भाजपा को रास नहीं आया नीतीश का दांव पेंच
बिहार में एनडीए (NDA) गठबंधन के मुखिया के तौर पर नीतीश कुमार बड़ी भूमिका में हैं. हालांकि विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी जदयू महज 43 सीटों पर सिमट गई थी. भाजपा ने अपने पूर्व घोषित वादे के मुताबिक उन्हें मुख्यमंत्री बनाया. मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी को मजबूत करने की कोशिश की. उन्होंने बसपा के विधायक को जदयू में शामिल कर लिया. इसके बाद उनके निशाने पर लोजपा के सांसद थे. लोजपा में बड़ी टूट हुई. चिराग अकेले रह गए और बाकी 5 सांसद अलग हो गए. हालांकि लोजपा पर अधिकार को लेकर फिलहाल संघर्ष जारी है.

सफल नहीं हुई नीतीश की योजना
राजद का आरोप है कि पशुपति पारस और अन्य लोगों को प्रलोभन देकर जदयू के जरिए केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कराने की नीतीश कुमार की योजना फिलहाल धरी की धरी रह गई.

"जदयू के तीसरे नंबर की पार्टी होते हुए भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री भले ही बन गए, लेकिन भाजपा ने उन्हें उनकी हैसियत में ला दिया. बिना बहुमत के जबरदस्ती मुख्यमंत्री बनने का यही नतीजा होता है."- भाई वीरेंद्र, विधायक, राजद

भाजपा ने दिखाई हैसियत
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार ने कहा, "नीतीश कुमार लगातार भाजपा के मुकाबले जदयू को मजबूत करने की कोशिश में लगे थे. इसे देखते हुए भाजपा ने नीतीश कुमार को उनकी हैसियत दिखाने की कोशिश की है."

"बीजेपी ने नीतीश कुमार को यह एहसास दिलाया है कि बिहार में अब बड़े भाई की भूमिका में भाजपा है. मांझी हाल के दिनों में लगातार नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर हमलावर रहे. आरोप है कि वह नीतीश के इशारे पर ऐसा कर रहे थे. इसलिए भाजपा नेताओं ने मांझी को विश्वास दिलाया है कि अगर वह भाजपा के साथ बने रहते हैं तो उनकी हर संभव मदद की जाएगी."- डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

एनडीए में नहीं है मतभेद
"प्रधानमंत्री से देश का कोई भी मुख्यमंत्री मिल सकता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सिर्फ आंखों का इलाज कराने गए थे. मांझी ने वक्त मांगा था तो गृह मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने उनसे मुलाकात की. बिहार में एनडीए की पार्टियों के बीच कोई मतभेद नहीं है."- संजय टाइगर, प्रवक्ता, भाजपा

भाजपा ने की है मैसेज देने की कोशिश
बता दें कि मांझी से मुलाकात और नीतीश को इग्नोर करके एक तरह से भाजपा ने नीतीश कुमार से फिलहाल दूरी बनाई है ताकि लोजपा विवाद को लेकर कोई कमिटमेंट ना करना पड़े. वहीं, मांझी को जिस तरह नीतीश कुमार हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे इसके चलते भी भाजपा ने नीतीश को मैसेज देने की कोशिश की है. कुल मिलाकर देखें तो बिहार में जिस तरह से नीतीश कुमार लगातार जदयू को मजबूत करने की कोशिश में लगे थे उसे देखते हुए भाजपा का यह स्टैंड नीतीश के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है.

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