पटना:बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने तमाम अटकलों को झुठलाते हुए बिहार अध्यक्ष पद के लिए नए चेहरे पर दांव लगाया है. यह कदम उठाकर बीजेपी ने सबको चौंकाया है. हालांकि, बिहार राजनीति के जानकारों का कहना है कि डॉ. संजय जायसवाल को यह जिम्मेदारी सौंपकर बीजेपी ने एक साथ कई मोर्चों पर किलेबंदी की है.
बीजेपी की ओर से नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा के बाद यह माना जाने लगा है कि बीजेपी ने इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में पिछड़ा कार्ड खेलने की तैयारी कर ली है. नित्यानंद राय के केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री बनने के बाद उनकी जगह जिस डॉ. संजय जायसवाल को प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है, वह वैश्य वर्ग से आते हैं. बिहार में यह जाति बीजेपी का प्रमुख वोटबैंक मानी जाती है.
क्या कहते हैं राजनीतिक समीक्षक?
राजनीतिक समीक्षक सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि बीजेपी ने जायसवाल जैसे अच्छी छवि वाले नेता को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपकर पार्टी में गुटबंदी को समाप्त करने की कोशिश की है. वहीं, अपने पुराने वोटबैंक पर ही विश्वास जताते हुए उसे मजबूत करने के संकेत भी दिए हैं.
उन्होंने कहा, "बीजेपी ने पिछली बार यादव वर्ग से आने वाले नित्यानंद राय को अध्यक्ष बनाया था, लेकिन आरजेडी के वोटबैंक में बीजेपी सेंध नहीं लगा सकी थी. यही कारण माना जा सकता है कि इसबार बीजेपी ने वैश्य, बनिया वर्ग से आने वाले नेता को दायित्व सौंपा है."
जायसवाल के आने से सुमो का कद होगा छोटा?
ऐसा भी माना जा रहा है कि बीजेपी ने पार्टी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी के कद को छोटा करने के लिए उसी समाज से आने वाले नेता को अध्यक्ष बनाया. इसपर किशोर ने कहा, "मैं ऐसा नहीं मानता. बीजेपी में जो भी निर्णय लेना है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह लेते हैं. प्रधानमंत्री के नाम पर ही वोट मिलता है, इसलिए यह कोई मामला नहीं है. अध्यक्ष बनाना था, केंद्रीय नेतृत्व ने बना दिया."