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महान साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म शताब्दी वर्ष, करोड़ों दिलों पर आज भी असर डालती हैं कृतियां

पद्मश्री फणीश्वर नाथ रेणु का आज जन्मदिन है. ये साल उनका जन्म शताब्दी वर्ष है. इस मौके पर सीएम नीतीश कुमार सहित बिहार के कई नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजली दी और हिन्दी साहित्य में उनके दिए योगदान को याद किया.

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Published : Mar 4, 2021, 2:06 PM IST

फणीश्वर नाथ रेणु
फणीश्वर नाथ रेणु

पटना:हिन्दी साहित्य को अपनी लेखनी के जरिए सुशोभित करने वाले देश के प्रख्यात लेखक फणीश्वर नाथ रेणुका आज जन्मदिन है. खास बात ये है कि ये उनका जन्म शताब्दी वर्ष है. उनका जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गांव में हुआ था. इस मौके पर सीएम नीतीश कुमार ने ट्वीट कर उन्हें श्रद्धांजली दी है.

अपने ट्वीट में सीएम ने लिखा है- 'पद्मश्री फणीश्वर नाथ रेणु जी के जन्म शताब्दी के अवसर पर उन्हें शत-शत नमन. उन्होंने अपनी रचनाओं में आंचलिक जीवन के हर पहलू को शब्दों में बांधने की सफल कोशिश की है. उनकी रचनाएं समाज में कुरीतियों के उन्मूलन के लिए हमेशा प्रेरणा देती रहेंगी'

वहीं, विधानसभा में अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने भी फणीश्वर नाथ रेणु के जन्मदिन पर उन्हें श्रद्धांजली दी है.

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दिलों पर असर डालती हैं फणीश्वर की कृतियां
हिन्दी साहित्य में आंचलिक विधा को जन्म देने वाले फणीश्वरनाथ रेणु किसी परिचय के मोहताज नहीं है. उनके लेखनी की विशेषता ये है कि उनकी रचनाओं के केंद्र में गांव का जीवन और तत्कालीन परिस्थितियों का वर्णन लोगों को खुद से जोड़े रखने पर मजबूर करता है. उनकी साहित्यिक कृतियां आज भी लोगों के दिल पर असर डालती हैं.

उनके प्रमुख उपनयास और कहानियों में मैला आंचल, परती परिकथा, मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम), जूलूस, कितने चौराहे, पलटू बाबू रोड, एक आदिम रात्रि की महक, लाल पान की बेगम, अग्निखोर और अच्छे आदमी जैसी कई कृतियां शामिल हैं. अपने प्रथम उपन्यास 'मैला आंचल' के लिये उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.

फणीश्वर नाथ रेणु ( फाइल फोटो)

रचना 'मारे गये गुलफाम' पर बनी फिल्म
रेणु की रचना मारे गये गुलफाम पर 'तीसरी कसम' फिल्म भी बनी. निर्माता निर्देशक बासु भट्टाचार्य और गीतकार शैलेन्द्र ने राजकपूर और वहीदा रहमान को लेकर तीसरी कसम फिल्म का निर्माण किया था. यह फिल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है.

फणीश्वरनाथ रेणु की कृतियों में प्रेमचंद की छाप नजर आती है. कहना गलत ना होगा कि प्रेमचंद से प्रभावित होकर ही रेणु ने ग्रामीण जनजीवन को अपनी रचनाओं का आधार बनाया. फणीश्वरनाथ ने अपनी कहानियों में गांव की सुंदरता, प्रथाएं और दुरुह व्यवस्थाओं का वर्णन जिस तरह किया है उसमें प्रेमचंद की स्पष्ट छाप नजर आती है. फणीश्वर नाथ रेणु ने कल्पनाओं की बैसाखी सहारा नहीं लिया, बल्कि अपने चारों ओर जिन परिस्थितियों से दो-चार हुए या महसूस किया, वही लिखा. यही वजह है कि साहित्य कीदुनिया से लगाव रखने वाले करोड़ों लोग आज भी उनके प्रशंसक हैं.

घर से चोरी हो गईं कई महत्वपूर्ण पुस्तकें
यहां इस बात का वर्णन करना भी जरूरी हो जाता है कि इस महान साहित्यकार और लेखक की कई कृतियां भी बिहार में सुरक्षित नहीं रह सकी. सितंबर 2020 को फणीश्वर नाथ रेणु के पटना स्थित उनके घर में चोरी कर चोरों ने उनकी कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की मूल कॉपी उड़ा ली. यह चोरी फणीश्वर नाथ रेणु के कदमकुआं थाना क्षेत्र स्थित राजेंद्र नगर के घर से हुई. पुलिस ने मौके पर पहुंचकर मामले की छानबीन की लेकिन वह मूल कॉपियां आज तक नहीं मिली. इसे लेकर उनके परिजन काफी दुखी हैं.

चोरी की गई कृतियों के बाद छानबीन करती पुलिस

11 अप्रैल 1977 में दुनिया को अलविदा कहा
बिहार में 1974 में हुई संपूर्ण क्रांति के दौरान फणीश्वरनाथ रेणु की मुलाकात जयप्रकाश नारायण से हुई और उनसे उनका भावनात्मक संबंध बन गया था. वर्ष 1977 में 22 मार्च को आपातकाल खत्म हुआ, तो प्रसन्न मन से रेणु ने अपना एक ऑपरेशन कराया. जिसके बाद वो अचेतावस्था में चले गए. इसी हालात में 11 अप्रैल 1977 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

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