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हो जाइये सावधान! फूड चेन में आ चुका है माइक्रोप्लास्टिक, सेहत के लिए बजी खतरे की घंटी

माइक्रोप्लास्टिक का खतरा (Dangers Of Microplastics ) ऐसा है जिसका अंदाजा हम और आप नहीं लगा सकते. यह 400 सालों तक धरती से नष्ट नहीं होता. सबसे बड़ी चिंता की बात है कि मछली और सब्जियों के जरिए यह मनुष्य के ब्लड तक में यह पहुंच चुका है. ये बातें बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अध्यक्ष प्रोफेसर अशोक कुमार घोष ने कही है.

Dangers Of Microplastics
Dangers Of Microplastics

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Published : Jul 14, 2022, 8:25 PM IST

Updated : Jul 14, 2022, 8:31 PM IST

पटना:माइक्रोप्लास्टिक एक बहुत ही खतरनाक तत्व है और अब यह हमारे फूड चेन में भी घुस चुका है. यह कहना है बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष प्रोफेसर अशोक कुमार घोष (Bihar State Pollution Control Board Chairman) का. ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में प्रोफेसर अशोक कुमार घोष (Professor Ashok Kumar Ghosh) ने कहा कि सरकार ही नहीं लोग भी जागरूक हों तो इससे काफी हद तक निजात मिल सकती है. दरअसल बिहार के दो जिलों में खेतों एवं फसलों में माइक्रो-प्लास्टिक की मौजूदगी मिलने से पर्यावरणविदों की चिंताएं बढ़ गई हैं क्योंकि इनकी मौजूदगी कई बीमारियों को जन्म दे सकती है. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (बीएसपीसीबी) के अध्यक्ष अशोक कुमार घोष ने कहा कि हाल के अध्ययनों से बिहार के दो जिलों भागलपुर और बक्सर में खेतों के साथ-साथ फसलों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति का पता चला है. यह गंभीर चिंता का विषय है.

पढ़ें- अध्ययनः सीफ्लोर में मिला 14 मिलियन टन माइक्रोप्लास्टिक्स

'माइक्रोप्लास्टिक सदियों तक धरती पर रहता है':अशोक कुमार घोष ने बतया कि जल्द ही इन दोनों जिलों में कृषि भूमि में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति का आंकलन करने के लिए एक अध्ययन किया जाएगा. माइक्रोप्लास्टिक 5 मिलीमीटर से कम व्यास की प्लास्टिक सामग्री हैं जिन्हें पर्यावरण में प्लास्टिक प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है. पर्यावरण में जमा होने वाले प्लास्टिक कचडे को भौतिक, रासायनिक या जैविक क्रिया के तहत छोटे टुकड़ों और कणों में तोड़ दिया जाता है और धीरे-धीरे माइक्रोप्लास्टिक का निर्माण होता है. यह पूछे जाने पर कि माइक्रोप्लास्टिक कितना खतरनाक है? प्रोफेसर अशोक घोष ने कहा कि हर कोई जानता है कि प्लास्टिक नॉन बायोडिग्रेडेबल तत्व होता है. अगर उसे मिट्टी में या पानी में छोड़ दें तो वह घुलता या गलता नहीं है. प्लास्टिक को डिग्रेड होने में 400 साल तक लग सकता है लेकिन यह भी एक अनुमान है क्योंकि प्लास्टिक को बने हुए अभी 400 साल नहीं हुआ है.

क्या हैमाइक्रोप्लास्टिक?: प्रोफेसर घोष कहते हैं, 400 साल के बाद प्लास्टिक नष्ट हो जाएगा यह अनुमान है. वह बताते हैं कि प्लास्टिक का कोई भी तत्व या कैरी बैग अगर उसे हम जमीन में या पानी में छोड़ देते हैं तो उसका डिजॉल्वेशन नहीं होता है. समय के साथ वह छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटने लगता है. और माइक्रोंस में चला जाता है उसी को माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं.

"जब माइक्रोप्लास्टिक बना तो इसका मतलब यह नहीं कि प्लास्टिक डिग्रेड हो गया, उसके कण छोटे हो गए. यह प्रोसेस शॉर्ट टाइम में हो जाता है. यह कन्वर्शन 4 या 5 साल में हो सकता है. इसका कण इतना छोटा है कि अगर वह वॉटर बॉडीज में चला गया है तो वहां से मछली के पेट में जा सकता है. मछली के जरिए फूड चेन में चला जा सकता है. अगर इरीगेशन फील्ड में है तो उसके जरिए पौधों में भी आसान से चला गया और अगर वह फूड चेन में चला गया तो अंत में उसे मनुष्य के शरीर में भी आना है."- प्रोफेसर अशोक कुमार घोष ,अध्यक्ष, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड



मनुष्य के ब्लड में पहुंच चुका है माइक्रोप्लास्टिक कण: प्रोफेसर घोष यह भी कहते हैं कि लैंग सेट में एक पेपर पब्लिश हो चुका है जिसमें यह कंफर्म किया गया है कि माइक्रोप्लास्टिक के कण मनुष्य के रक्त में भी आ चुके हैं. अगर मनुष्य के रक्त में वह आ सकता है तो यह कैंसर का कारण हो सकता है. प्लास्टिक से पहले से भी कई तरह की हानियां है लेकिन अब माइक्रोप्लास्टिक एक नया आयाम जुड़ गया है जिसे लेकर पूरी दुनिया में रिसर्च भी हो रहा है. इसकी मात्रा इतनी बढ़ती जा रही है कि यह बहुत घातक हो सकता है. अब समंदर के पानी में भी माइक्रोप्लास्टिक आने लगा है. हम जो प्लास्टिक जमीन पर फेंकते हैं, वह नदी नालों से होते हुए समंदर में जाता है. समंदर की तलहटी में लाखों-करोड़ों टन प्लास्टिक पड़े हुए हैं. सरकार ने जो सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाई है, वह वक्त पर लगाई है.

'फूड चेन में आ चुका है माइक्रोप्लास्टिक': यह पूछे जाने पर कि क्या खेत में माइक्रोप्लास्टिक के मिलने से फसल के उत्पादन पर असर पड़ सकता है? प्रोफेसर घोष बताते हैं कि यह अभी अर्ली स्टेज में है. हमने अभी क्वांटिफिकेशन नहीं किया है. अगले स्टेज में हम इसका क्वांटिफिकेशन भी करेंगे लेकिन तय बात है कि यह फूड चेन में आ चुका है. यह रिसर्च का नया क्षेत्र है जिस पर अभी और काम होगा. हम लोग जितने भी प्लास्टिक के यूजर हैं उन्हें यह समझना होगा कि यह कितना है घातक है. सरकार ने जो बैन लगाया है वह बिल्कुल वक्त पर लगाया है. हालांकि अभी सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगा है लेकिन फिर भी ठीक है. प्लास्टिक हमारे जीवन में इस कदर प्रवेश कर चुका है एक बार में हटा देना संभव नहीं है.



निदान और उपाय: यह पूछे जाने पर कि माइक्रोप्लास्टिक पर रोक लगाने के लिए क्या और निदान हो सकता है? प्रोफेसर घोष ने बताया कि प्लास्टिक की चीजों को हम लोग हटा दें, सड़क पर अगर कोई कचरा प्लास्टिक के रूप में मिले तो उसका प्रॉपर सैग्रीगेशन और डिग्रेडेशन दोनों हो. उसे मिट्टी में ना छोड़ें. वेस्ट मैनेजमेंट एक सिस्टमैटिक तरीके से होना चाहिए.

अशोक कुमार घोष ने कुछ रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि माइक्रोप्लास्टिक मानव शरीर की रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर सकते हैं जो अंग विषाक्तता और खराब उपापचय गतिविधियों का कारण बन सकता है जिससे कैंसर रोग हो सकते हैं. माइक्रोप्लास्टिक का सेवन बांझपन, मोटापा, कैंसर जैसी बीमारियों से भी नजदीकी से जुड़ा हुआ है.



Last Updated : Jul 14, 2022, 8:31 PM IST

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