पटना:बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था (HEALTH SYSTEM OF BIHAR) बदहाल स्थिति में है. ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य उप केंद्र तो कई खुले हैं, लेकिन सभी जर्जर अवस्था में हैं. इस बदहाली की वजह से ही बिहार के मरीजों के लिए एकमात्र आसरा पटना के चुनिंदा बड़े अस्पताल ही रह गए हैं. पटना जिले में फुलवारी के सकरैचा में स्वास्थ्य उप केंद्र के भवन निर्माण का शिलान्यास खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वर्ष 2017 में किया था, लेकिन यह भवन भी आधा अधूरा बनने के बाद यूं ही पड़ा है.
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सालों से बंद हैं स्वास्थ्य केंद्र
इसके अलावा मुजफ्फरपुर जिले के सरैया प्रखंड का रेफरल अस्पताल, गोपालगंज के थावे प्रखंड का स्वास्थ्य उप केंद्र या फिर भागलपुर के सबौर प्रखंड का ममलखा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सबकी कहानी कमोबेश एक जैसी ही है. कुछ ऐसी ही कहानी समस्तीपुर के ताजपुर प्रखंड के कोठिया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की भी है. मधुबनी के सकरी का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी सालों से बंद है.
पटना के दो अस्पतालों का ही सहारा
इन तमाम बातों से ये समझा जा सकता है कि अगर इन इलाकों के लोग बीमार पड़ते हैं, तो वह कहां जाएंगे. ऐसे मरीज या तो नजदीकी बड़े मेडिकल कॉलेज अस्पताल जाएंगे या फिर सीधे पटना, जहां पीएमसीएच और आईजीआईएमएस बिहार के तमाम मरीजों के लिए उम्मीद की आखिरी किरण हैं.
भगवान भरोसे ग्रामीणों का इलाज
बिहार सरकार पीएमसीएच में 5000 बेड का सुपर स्पेशलिटी बिल्डिंग तैयार कर रही है. इधर आईजीआईएमएस में भी बेड की संख्या बढ़ाई जा रही है. लेकिन इस बात का जवाब भी सरकार को देना चाहिए कि विभिन्न जिलों के ग्रामीण इलाकों में जो स्वास्थ्य उप केंद्र खुले हैं या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुले हैं, क्या उन जगहों की जिम्मेदारी किसी की नहीं है. क्या उन इलाकों में बीमार पड़ने वाले लोग भगवान भरोसे ही रहेंगे.
'ग्रामीण स्वास्थ्य को किया नजरअंदाज'
इस बारे में सामाजिक कार्यकर्ता विकास चंद्र उर्फ गुड्डू बाबा कहते हैं कि बिहार में पिछले कई सालों से ग्रामीण स्वास्थ्य को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया. ना तो स्वास्थ्य उप केंद्र और ग्रामीण इलाकों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टर की बहाली हुई और ना ही स्वास्थ्य कर्मियों की. जिसका नतीजा हुआ कि छोटी सी छोटी बीमारी के लिए भी लोग पटना के पीएमसीएच में पहुंच जाते हैं.