पटना:बिहार की भूकंप (Earthquake In Bihar) की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर देखे तो सीस्मिक जोन 5 और 4 में यह आता है, जो भूकंप के लिहाज से अति संवेदनशील है. पटना घंटाघर, सचिवालय, पटना उच्च न्यायालय, पटना विश्वविद्यालय जैसे कई ऐसे महत्वपूर्ण भवन हैं, जिसकी चमक धमक पहले जैसी ही बरकरार है. लेकिन भूकंप की स्थिति में यहां भारी तबाही मच सकती है. क्योंकि ये सभी भवन मैसूरी स्ट्रक्चर में बनी है. जिसमें छत का वजन दीवार पर और दीवार का वजन जमीन पर डाला जाता है.
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भूकंप से जब मची थी तबाही:बीते एक शताब्दी में बिहार में 3 बड़े भूकंप आ चुके हैं. सबसे पहले 15 जनवरी 1934 में भूकंप आया था. उस समय 8.4 की तीव्रता थी और 10700 लोगों की मौत आधिकारिक रूप से दर्ज की गई थी. वहीं 1988 में 21 अगस्त को जब भूकंप आई थी, उसमें 6.7 की तीव्रता मापी गई और 1000 लोगों की मौत दर्ज की गई. हाल ही में 25 अप्रैल 2015 को 7.9 की तीव्रता का भूकंप आया. जिसमें 58 लोगों की मौत दर्ज की गई. इस लिहाज से भूकंप के दृष्टिकोण से बिहार अति संवेदनशील है.
रिट्रोफिटिंग तकनीक से मजबूत होंगे भवन: भूकंप की स्थिति में अधिक जानमाल की क्षति ना हो इसके लिए सरकार पुराने महत्वपूर्ण भवनों को रिट्रोफिटिंग तकनीक(Bihar Old Buildings Will Be Made Earthquake Resistant) के माध्यम से मजबूती प्रदान करने जा रही है. बिहार में 60 फ़ीसदी मकान अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे हैं जिसमें कंक्रीट के पिलर का प्रयोग नहीं किया गया है.इन सब भवनों को मजबूती देने के लिए सरकार की तरफ से युद्ध स्तर पर पूरे बिहार में राजमिस्त्री को रिट्रोफिटिंग तकनीक के बारे में प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
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लोगों को किया जा रहा जागरूक:भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है और ऐसे में बिहार दिवस के मौके पर बिहार के ऐतिहासिक गांधी मैदान में बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का जो पवेलियन तैयार किया गया है, उसमें रिट्रोफिटिंग तकनीक के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए एक स्टॉल लगाया गया है. इस स्टॉल पर मौजूद प्राधिकरण के मिशन ट्रेनर अश्विनी रंजन ने बताया कि रिट्रोफिटिंग वह तकनीक है जिसके माध्यम से पुराने भवनों को भूकंप रोधी बनाया जाता है और उसे मजबूती प्रदान की जाती है.
क्या है रिट्रोफिटिंग तकनीक: जिस मकान में ईंट का पिलर होता है उसकी जैकेटिंग की जाती है. जैकेटिंग की प्रक्रिया में उसे चारों तरफ से लोहे की छड़ से बांध दिया जाता है और फिर उसके ऊपर 1/3 के मसाला या फिर माइक्रो कंकरीट से ढाल दिया जाता है या फिर प्लास्टर कर दिया जाता है. इसके अलावा पिलर की जैकेटिंग डी लैंप विधि से भी कर सकते हैं. इस तकनीक के माध्यम से पिलर में 300mm की दूरी पर एक लोहे का छड़ आर पार किया जाता है और फिर उसे दोनों तरफ से नीचे या ऊपर की तरफ बेंड कर दिया जाता है. इससे पिलर मजबूत हो जाता है. इसके अलावा दरवाजे के ऊपर खिड़की के ऊपर जहां से दीवार ऊपर से ढहने की संभावना है. मकान के लिंटर लेवल पर लोहे की जाली से उसे बांध दिया जाता है. फिर ऊपर से 1/3 के मसाले से प्लास्टर या फिर ढाल दिया जाता है. इससे दीवार मजबूत हो जाती है और ऊपर से ढहने की संभावना कम हो जाती है.
मैसूरी स्ट्रक्चर पर बने हैं बिल्डिंग:वहीं बिहार राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के प्रमुख तकनीकी सलाहकार डॉ बालकृष्ण सहाय ने बताया कि रिट्रोफिटिंग वह तकनीक है जिसके माध्यम से वैसे पुराने भवनों को जिस में भूकंप को सहने की शक्ति नहीं है उसे भूकंप रोधी बनाया जाता है. बिहार में काफी संख्या में ऐसे महत्वपूर्ण भवन, अस्पताल, रेलवे स्टेशन और स्कूल के अलावा रिहायशी मकान है जो मैसूरी स्ट्रक्चर पर बने हैं. जिसमें कंक्रीट का पिलर नहीं होता और छत का वेट दीवार पर डाल दिया जाता है और दीवार का वेट जमीन में. कई बार किसी कारणवश कहीं से दीवार कमजोर पड़ती है तो मकान ढह जाता है.भूकंप के समय में यह सब मकान बेहद खतरनाक हैं.
सीएम भी दे चुके हैं ये निर्देश: बिहार भूकंप के दृष्टिकोण से जोन 4 और जोन 5 में आता है. ऐसे में मुख्यमंत्री का भी निर्देश है कि कंस्ट्रक्शन का काम प्रदेश को भूकंप के जोन 5 में मानकर ही किया जाए और उसी अनुसार कंस्ट्रक्शन किया जाए. अधिक तीव्रता के भूकंप को भी आसानी से सह सके और जान-माल का नुकसान न हो निर्माण के समय इन बातों का ध्यान रखने को कहा गया है. उन्होंने बताया कि रिट्रोफिटिंग तकनीकी एक बेहतरीन तकनीक है और इसके माध्यम से पुराने भवनों को उसकी आकृति में बिना बदलाव किए मजबूती प्रदान किया जाता है. पुराने भवन को तोड़कर नया मजबूत भवन बनाने में जितना खर्च आएगा, उसके 20% से भी कम खर्च में पुराने भवन को नए जितना मजबूत बना दिया जाएगा. इस तकनीक में मकान के कॉर्नर पर क्लैंप लगाकर भी उसे मजबूती प्रदान की जाती है क्योंकि मकान सबसे पहले कॉर्नर से ही झड़ना शुरू करता है.
भूकंप रोधी बनाने के लिए कई भवनों का चयन: डॉ बालकृष्ण सहाय ने बताया कि सरकार प्रदेश के पुराने रेलवे स्टेशन, अस्पतालों और महत्वपूर्ण भवनों की सूची बनाकर आवश्यकतानुसार आने वाले भूकंप से उसे सुरक्षित करने के लिए चरणबद्ध तरीके से रिट्रोफिटिंग तकनीक के माध्यम से मजबूती प्रदान करने जा रही है. रिट्रोफिटिंग का काम कोई सामान्य राजमिस्त्री नहीं कर सकता इसलिए सरकार के निर्देशन पर बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण प्रदेशभर के राज मिस्त्री को चरणबद्ध तरीके से रिट्रोफिटिंग तकनीक का स्किल सिखा रही है. 20,000 से अधिक राजमिस्त्री प्रशिक्षित हो चुके हैं. उन्होंने बताया कि बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का हाल ही में पटना आईआईटी से एक के करार हुआ है जिसके तहत रैपिड विजुअल स्क्रीनिंग यानी कि मकान को बिना तोड़ फोड़ किए, उसे आंखों से देख कर और छूकर यह पता लगाया जा सके कि यह मकान आने वाले भूकंप को बर्दाश्त करेगा या नहीं करेगा.
इसके लिए प्राधिकरण ने एक फॉर्म भी विकसित किया है और सैकड़ों स्कूलों का प्राधिकरण के तरफ से रैपिड विजुअल स्क्रीनिंग कराया जा चुका है. इसके विस्तृत गाइडलाइन के लिए आईआईटी पटना के साथ पांच पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 5 भवनों का जिसमें मगध महिला कॉलेज पटना, अनुसूचित जाति छात्रावास महेंद्रु पटना, समहरणालय भवन मोतिहारी, समहरणालय भवन दरभंगा और आयुक्त कार्यालय भवन मुजफ्फरपुर को चयनित किया गया है. आईआईटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा इस पर शोध कार्य किया जा रहा है. तीन से चार महीने में इस पर गाइडलाइन आ जाने की संभावना है. जिसके बाद रिट्रोफिटिंग के काम में और गति आ जाएगी और काम में सुविधा और बढ़ जाएगी.
सिस्मिक जोन 4 में आता है पटना:भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर अगर ज्यादा रही तो राजधानी में भारी तबाही मच सकती है. पटना सचिवालय जहां से बिहार की सत्ता और शासन चलता है. इसका निर्माण 104 साल पहले हुआ था और आज भी उस की चमक धमक बरकरार है. पटना उच्च न्यायालय 105 साल पुराना है. ऐसे में भूकंप से यहां भारी तबाही मच सकती है.
क्या है सिस्मिक जोन:सिस्मिक जोन पांच भूकंप के लिहाज से देश का सबसे खतरनाक इलाका माना जाता है. इस जोन में भूकंप आने पर भारी तबाही होती है. इससे एक नीचे यानी सिस्मिक जोन चार के दायरे में पटना आता है. यहां सात से 7.9 तीव्रता तक भूकंप आ सकता है. इससे भी तबाही अधिक होने की संभावना है.
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