बिहार में पलायन की पीड़ा पर राजनीति कब तक? पटना: तमिलनाडु में बिहार के मजदूरों की पिटाई का मामला इन दिनों चर्चा में है. इस पर राजनीतिक घमासान भी जारी है. दूसरे राज्यों में बिहार के प्रवासियों की पिटाई कोई नई बात नहीं है. पहले भी असम, महाराष्ट्र, कश्मीर सहित कई राज्यों में वारदात हुई है. उसके बाद इस पर सियासत भी खूब होती रही है. बिहार से हर साल लाखों की संख्या में लोग पलायन करते हैं.
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बिहार से क्यों होता है पलायन? : ऐसे तो बिहार सरकार के पास कोई भी आंकड़ा नहीं है कितने लोग पलायन करते हैं, लेकिन गैर सरकारी संगठनों के सर्वे होते रहते हैं और बिहार में हर साल 40 लाख से अधिक लोग जीविकोपार्जन के लिए पलायन करते हैं ऐसा दावा किया जाता रहा है. 2012 में नीतीश कुमार दावा करते रहे कि 2008 से 2012 के बीच पलायन में 35 से 40 फीसदी कमी आई है. पंजाब सरकार की ओर से पत्र भेजकर कहा गया है कि उनके यहां फसल कटनी के लिए बिहारी मजदूर नहीं मिल रहे हैं.
पलायन रोकने के लिए मुकम्मल रणनीति का अभाव: हालांकि इसी दौरान गैर सरकारी संगठनों की सर्वे रिपोर्ट में कहा गया कि पंजाब में पलायन कम होने का मतलब यह नहीं है कि लोग बाहर नहीं जा रहे हैं. पहले जहां लोग कृषि क्षेत्र में काम करने के लिए पंजाब जाया करते थे, वहीं औद्योगिक क्षेत्र में काम करने के लिए लोग गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य स्थानों पर जाने लगे. बिहार में फिर से पलायन पर सियासत शुरू है. जहां सत्ता पक्ष के नेता सरकार का बचाव कर रहे हैं, वहीं विरोधी कह रहे हैं कि बिना रोजगार दिए पलायन रोका नहीं जा सकता.
''जब तक इस मुद्दे पर बिना राजनीति किए हुए चर्चा नहीं होगी तब तक इसका हल नहीं है. इसके लिए केंद्र सरकार का आगे आना चाहिए. वैसे पूरा देश एक है, इसमें पलायन कहां है. कोई विदेश चला गया क्या? जिसको जहां रोजगार की संभावना होती वो जाता है.''- विनय चौधरी, जदयू विधायक
गरीब तबके में पलायन ज्यादा :बिहार से पलायन करने वालों में अधिकांश संख्या गरीबों की होती है. जो एससी/एसटी और ओबीसी वर्ग से आते हैं. गैर सरकारी सर्वे की रिपोर्ट की मानें तो 36% के आसपास इन वर्गों के लोग पलायन करते हैं. पलायन करने वालों में 58% प्रवासी गरीबी रेखा से नीचे के हैं. इनमें से 65 % के पास अपना जमीन नहीं है. सबसे अधिक पलायन करने वालों की उम्र 18 से 40 वर्ष के बीच होती है. इस वर्ग के लोगों की संख्या कुल पलायन करने वालों में 64% के आसपास है. 40 से 50 साल के 20% के करीब लोग दूसरे राज्यों में काम के लिए जाते हैं.
पलायन पर पॉलिटिक्स: तमिलनाडु में बिहार के लोगों के साथ मारपीट की घटना के बाद एक बार फिर से पलायन पर सियासत हो रही है. राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू है, जहां सत्ता पक्ष जदयू के नेता सरकार का बचाव कर रहे हैं. वहीं, विपक्षी बीजेपी सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रही है. यहां तक कि सरकार में सहयोगी सीपीआई भी कह रही है कि सरकार जब तक रोजगार नहीं देगी पलायन रुक नहीं सकता है.
कोरोना काल में लौटने को नहीं भूला देश: कोरोना के समय उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक बिहारी ही अपने घर लौटे थे. 1627 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से बिहार के 21 लाख से अधिक लोग वापस बिहार आए थे. हालांकि लौटने वालों की संख्या इससे कहीं अधिक थी. काम की तलाश में दूसरे राज्यों में जाने वाले बड़ी संख्या में प्रवासियों की मौत भी होती है. बड़ी-बड़ी घटनाओं में मरने वाले मजदूरों में अधिकांश बिहार के ही होते हैं. हालांकि अभी तक किसी चुनाव में पलायन कोई बड़ा मुद्दा नहीं बना है. लेकिन आने वाले दिनों में यह बड़ा मुद्दा बन सकता है.