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बिहार की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी, पैरोल पर अंडर ट्रायल कैदियों को छोड़ने का है आदेश - top patna news

कोरोना संकट के इस भीषण दौर में जेल की चाहरदीवारी भी अब सुरक्षित नहीं है. लेकिन बिहार की जेलों में अभी भी क्षमता से ज्यादा कैदी हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन बिहार में अब तक नहीं किया गया है. क्या है बिहार के जेलों की हकीकत और कैदियों का हाल जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर..

corona in jail
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Published : May 12, 2021, 9:46 PM IST

पटना:बिहार सहित पूरे देश में कोरोना का संक्रमणलगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में कोरोना का संक्रमण बिहार की जेलों तक भी पहुंच गया है. जेल प्रशासन द्वारा मिली जानकारी के अनुसार बिहार के विभिन्न जिलों में अब तक 50 कैदी और कुछ स्टाफ कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. हालांकि अब तक 30 कैदी रिकवर भी कर चुके हैं. लेकिन इन सबके बावजूद राज्य सरकार ने कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि जेलों में कैदियों की संख्या ज्यादा नहीं होनी चाहिए. पैरोल पर अंडर ट्रायल कैदियों को छोड़ने के आदेश भी हैं, लेकिन इन कैदियों को छोड़ने का फैसला लेना फिलहाल सरकार के लिए मुसीबत का सबब बना हुआ है.

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क्षमता से ज्यादा कैदी
बिहार में कुल 59 जेलों में 55,000 कैदी इस वक्त मौजूद हैं. इस कोरोना महामारी के दौरान क्षमता से 12,000 अधिक कैदी जेलों में रह रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा करोना के समय जेलों में भीड़ को रोकने के लिए गिरफ्तारी को सीमित करने का आह्वान किया गया है. बिहार के जेलों की जमीनी हकीकत की अगर बात करें तो बिहार के जिलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पा रहा है.

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अंडर ट्रायल कैदियों की संख्या ज्यादा
बिहार के जिलों में बंद 55,000 कैदियों में से लगभग 45,000 कैदी अंडर ट्रायल हैं. बचे 10,000 कैदी सजायाफ्ता हैं. ऐसे में अधिक संख्या में कैदी जो बिहार के जेलों में बंद हैं वह अंडर ट्रायल हैं. जिस वजह से अंडर ट्रायल कैदियों को पैरोल पर छोड़ना कहीं ना कहीं राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है.

'सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों को लेकर मामला राज्य सरकार के पास विचाराधीन है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद कैदियों को छोड़ना है या नहीं इस पर राज्य सरकार ने अब तक फैसला नहीं लिया गया है.'-मिथिलेश मिश्रा, जेल आईजी

'भारत के सभी जेलों में लगभग 400000 कैदी अंडर ट्रायल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि इस कोरोना महामारी के दौरान जब तक किसी व्यक्ति के खिलाफ साक्ष्य सबूत पर्याप्त नहीं हो तब तक आंख मूंदकर किसी की गिरफ्तारी नहीं करनी है. सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया है कि भारत की जेलों की स्थिति ऐसी है कि वहां पर कैदियों को सोशल डिस्टेंसिंग के तहत रख पाना मुमकिन नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को अंडर ट्रायल कैदियों को छोड़ने को लेकर कमेटी बनाने का निर्देश दिया है.'- दिनेश कुमार, सीनियर वकील, पटना हाईकोर्ट

दिनेश कुमार, सीनियर वकील, पटना हाईकोर्ट
पुलिस को निर्देश
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद बिहार पुलिस मुख्यालय द्वारा सभी जिले के पुलिस अधीक्षक और थानाध्यक्षों को निर्देश दिया गया है कि 7 साल से कम सजा वाले मामले में छोटे-मोटे अपराधियों को गिरफ्तार करने से बचा जाए. कोरोना के मद्देनजर थानों द्वारा गिरफ्तार किए जा रहे अपराधी को जेल भेजने से पहले उनका करोना जांच करवाना अनिवार्य कर दिया गया है ताकि जेलों तक करोना का संक्रमण ना पहुंच सके.कोरोना के खतरे के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद चुनिंदा कैदियों को 90 दिन के लिए पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया है. इससे जेल में बंद कैदियों की तादाद में कमी होगी. 90 दिन के बाद सभी कैदी जेल में वापस आ जाएंगे.
कमेटी का अहम रोल

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सभी राज्यों से एक कमेटी का गठन करने का कहा है. कमेटी तय करेगी कि किस कैदी को रिहा किया जाए और किस कैदी को नहीं. छोटे-मोटे मामले में जेल में बंद कैदियों को पैरोल पर छोड़ने को प्राथमिकता दी जाएगी. खास बात यह है कि बीते साल भी कई राज्यों में कुछ कैदियों को पैरोल पर इसी तरह रिहा किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार यह भी कहा गया था कि जिन कैदियों को पूर्व के आदेश पर पैरोल दी गई थी उन्हें भी महामारी पर लगाम लगाने की कोशिश के तहत फिर से 90 दिनों की अवधि के लिए पैरोल दिया जाए.

क्या कहना है कैदी के परिजन का?
कोरोना महामारी के दौरान जेलों में बंद कैदियों के परिजन भी जेल प्रशासन और राज्य सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि इस कोरोना महामारी के दौरान उनके परिजनों को पैरोल पर छोड़ दिया जाए. राजधानी पटना के राजीव नगर निवासी चिंटू कुमार के छोटे भाई रोहित कुमार इस वक्त राजधानी पटना के बेउर जेल में बंद हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से टेलीफोन पर बातचीत के दौरान बताया कि कोरोना महामारी के दौरान जब लोग घर में सुरक्षित नहीं हैं तो ऐसे में जेल में कैसे कोई सुरक्षित रह सकता है.

'मेरा भाई एक साल पहले अपने ही मोहल्ले में पड़ोसी से मारपीट कर रहा था. इस मामले में पुलिस ने उसे पकड़ लिया और जेल में बंद कर दिया है. सरकार से हमारी अपील है कि छोटे-मोटे कांडों में बंद कैदियों को पैरोल पर छोड़ दिया जाए.'- चिंटू कुमार, कैदी के परिजन

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जेल प्रशासन का दावा
जेल प्रशासन द्वारा मिल रही जानकारी के अनुसार बिहार के जेलों में नए कैदियों को रखने के लिए अलग से क्वारंटाइन वार्ड बनाया गया है. साथ ही साथ अगर किसी कैदी में करोना के थोड़े से भी लक्षण पाए जाते हैं तो उन्हें अन्य कैदियों से अलग कर दिया जाता है. ऐसे कैदियों को हटाकर जेलों में अलग बने कोरोना वार्ड में शिफ्ट किया जाता है. जेलों में आने वाले नए कैदियों को सबसे पहले 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन में रहना पड़ता है. तभी उन्हें दूसरे कैदियों के साथ रखा जाता है.

'कोरोना महामारी के दौरान कैदियों की इम्युनिटी सिस्टम ठीक रखा जा सके इसको लेकर कैदियों को काढ़ा, गर्म पानी के साथ-साथ करोना से संबंधित पर्याप्त मात्रा में दवा, ऑक्सीजन सिलेंडर जेलों में उपलब्ध कराई गई है. यहां तक कि बिहार के जेलों में बंद 45 वर्ष के ऊपर के बंदियों को कोरोना वैक्सीनेशन दिलवाया जा रहा है. जेल प्रशासन के मुताबिक अब तक 10,000 कैदियों का रजिस्ट्रेशन करवाया गया है जिनमें से 7000 कैदियों को कोरोना वैक्सीनेशन का लाभ मिल पाया है.'-जितेंद्र कुमार, एडीजी, पुलिस मुख्यालय बिहार

जितेंद्र कुमार, एडीजी, पुलिस मुख्यालय बिहार

राज्य सरकार कर रही विचार
जेल प्रशासन से मिल रही जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश राज्य सरकार के पास विचाराधीन है. जल्द ही राज्य सरकार कुछ फैसला ले सकती है. हालांकि जेल प्रशासन ने यहां तक कह दिया है कि उम्मीद नहीं है कि बिहार में पैरोल पर एक भी कैदी को छोड़ा जाएगा. उन्होंने पिछले साल का हवाला देते हुए कहा कि पिछले साल एक भी कैदी बिहार में पैरोल पर नहीं छोड़ा गया था. हालांकि जब तक राज्य सरकार इस पर फैसला नहीं लेती, तब तक कुछ पाना मुश्किल है.

'मेरे पति पिछले 6 महीने से शराब पीने के मामले में पटना के फुलवारी जेल में बंद हैं. सरकार से अपील है कि महामारी के समय उन्हें छोड़ने की कृपा की जाए. सरकार ने शराबबंदी कानून लाकर काफी अच्छा कार्य किया है लेकिन इस महामारी के समय जो लोग भी जेल में बंद हैं उन्हें पैरोल पर छोड़ दिया जाए. मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं और जेल में जिस तरह से सोशल डिस्टेंसिंग के बिना ही कैदी रह रहे हैं, ऐसे में अगर मेरे पति को कुछ हो जाता है तो परिवार का भरण-पोषण कौन करेगा.'-शोभा देवी,कैदी की परिजन

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