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बिहार में 'चमकी' : 15 दिन, 186 बच्चों की मौत, क्यों बेबस है सरकार?

बिहार में एक बीमारी से बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. देश भर में इस बीमारी की चर्चा हो रही है. आखिर क्या है यह बीमारी? इस पर क्यों नहीं काबू पाया जा रहा है?

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Published : Jun 24, 2019, 3:53 PM IST

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पटना: बिहार में लगभग दो दशकों से गर्मियों के मौसम में अज्ञात बीमारी से बच्चों के मरने का सिलसिला इस वर्ष भी जारी है. परंतु सरकार अब तक इस बीमारी का नाम भी पता नहीं कर पाई है. राज्य में अबतक इस अज्ञात बीमारी से 20 जिलों में 152 बच्चों की मौत हो चुकी है. जबकि अपुष्ट खबरों के मुताबिक यह संख्या 186 है.

इस अज्ञात बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित मुजफ्फरपुर जिले में पिछले एक पखवारे में 100 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है. जिले के सिविल सर्जन डॉ. एसपी सिंह ने बताया, 'इस बीमारी से अब तक जिले के विभिन्न अस्पतालों में 130 बच्चों की मौत हो चुकी है. उन्होंने बताया कि इस दौरान चमकी बुखार से करीब 600 पीड़ित बच्चे विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराए गए हैं.'

बच्चों का इलाज करते डॉक्टर

इन जिलों में 'चमकी' से बच्चों की मौत
राज्य के स्वस्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया, 'इस बीमारी से प्रभावित जिलों में मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, वैशाली, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, औरंगाबाद, बांका, बेगूसराय, भागलपुर, भोजपुर, दरभंगा, गया, जहानाबाद, किशनगंज, नालंदा, पश्चिमी चंपारण, पटना, पूर्णिया, शिवहर, सुपौल शामिल हैं. मुजफ्फरपुर जिले के बाद पूर्वी चंपारण जिला सर्वाधिक प्रभावित हुआ है, जहां 21 बच्चों की मौत हुई है.'

चमकी पीड़ित बच्चे

मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेमोरियल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) के शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष, डॉ जी एस सहनी ने कहा, 'इस साल एक्यूट इंसेफेलाइटस सिंड्रोम (एईएस) से पीड़ित 450 मरीजों में से 90 प्रतिशत हाइपोग्लाइकेमिया (रक्त में शुगर की कमी) के मामले हैं। पिछले वर्षो में भी ऐसे 60-70 प्रतिशत मामले आए थे.'

पीड़ित बच्चों में सोडियम पोटैसियम असंतुलन के मामले
उन्होंने कहा, 'पहले भी कमोबेश इसी तरह के मामले सामने आते थे. इसके अलावा पीड़ित बच्चों में सोडियम पोटैसियम असंतुलन के मामले सामने आए हैं. एईएस से ग्रसित बच्चों को पहले तेज बुखार और शरीर में ऐंठन होता है और फिर वे बेहोश हो जाते हैं. इनमें हाइपोग्लाइकेमिया और सोडियम पोटैसियम का भी असंतुलन सामान्य कारण है.'

दो दिनों से एईएस से पीड़ित मरीजों की संख्या में कमी
सिविल सर्जन सिंह ने कहा कि पिछले दो दिनों से एईएस से पीड़ित मरीजों की संख्या में कमी आई है. उन्होंने हालांकि यह भी कहा, 'दो दिन पहले बारिश हुई थी, जिस कारण तापमान में गिरावट दर्ज की गई थी. सोमवार को फिर से तेज धूप निकली है.'

अस्पताल का हाल

मृतकों में अधिकांश की आयु एक से सात वर्ष के बीच
सिंह ने बताया, 'पूरे जिले में लोगों को एईएस के प्रति जागरूक करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. पूरे क्षेत्र में ओआरएस के पैकेट बांटे जा रहे हैं तथा बच्चों को सुबह-शाम स्नान करवाने के लिए जागरूक किया जा रहा है.' उन्होंने लोगों से बच्चों को गर्मी से बचाने के साथ ही समय-समय पर तरल पदार्थो का सेवन करवाते रहने की अपील की है. इस बीमारी का शिकार आमतौर पर गरीब परिवार के बच्चे होते हैं, और वह भी 15 वर्ष तक की उम्र के। इस कारण मृतकों में अधिकांश की आयु एक से सात वर्ष के बीच है.

बता दें कि पूर्व के वर्षो में दिल्ली के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के विशेषज्ञों की टीम तथा पुणे के नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) की टीम भी यहां इस बीमारी की अध्ययन कर चुकी है.

लोगों को जागरूक करने की जरूरत : सीपी ठाकुर
बीजेपी के नेता और चिकित्सक डॉ. सीपी ठाकुर कहते हैं, 'यह बीमारी 80 के दशक से प्रत्येक वर्ष गर्मी के मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में पांव पसारती है. इस बीमारी से लोगों को जागरूक करने की जरूरत है.'

पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी
ठाकुर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है और इस बीमारी से संबंधित एक संस्थान खोलने की मांग की है. ठाकुर ने अपने पत्र में मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से लगातार मर रहे बच्चों का जिक्र करते हुए कहा है, 'यहां केंद्र सरकार द्वारा बहु विशेषता सुविधा वाली जैव रसायन प्रयोगशाला स्थापित की जानी चाहिए, ताकि इस प्रकार के बुखार से निपटने में मदद मिल सके.'

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