पटना: बिहार की शिक्षा व्यवस्था का हाल बेहाल है. नीतीश सरकार के दावों के बाद भी शिक्षा के मामले में बिहार निचले ( Poor condition of Bihar education system) पायदान पर है. नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र है. सूबे शिक्षा में गुणात्मक सुधार की बजाय पापुलिस्ट योजना सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है. ऐसे में छात्रों के सामने निजी शिक्षण संस्थान ही विकल्प रह गया है.
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नीति आयोग की रिपोर्ट में शिक्षा व्यवस्था की खुली पोल :बिहार में नीतीश सरकार ने 15 साल पूरे कर लिए हैं. जदयू नेता 15 साल को बेमिसाल बता रहे हैं. दावों से इतर हकीकत कुछ और है. शिक्षा के मामले में बिहार लगातार निचले पायदान पर है. नीति आयोग की रिपोर्ट में सरकार (Niti Aayog Report On bihar Education) के दावों की पोल खोल कर रख दी है. शिक्षा के मामले में भी बिहार फिसड्डी साबित हुआ है।.नीति आयोग की रिपोर्ट में स्कूलिंग के मामले में बिहार फिसड्डी साबित हुआ है. बिहार में 26% ऐसे लोग हैं जो 10 साल से अधिक उम्र के हैं और लगातार 6 साल स्कूल नहीं गए. मतलब 100 में 26 लोग ऐसे हैं जो 6 साल तक लगातार स्कूल गए ही नहीं. इस मामले में बिहार निचले पायदान पर है. मतलब साफ है कि ड्रॉपआउट के मामले में बिहार अव्वल स्थान पर है.
शिक्षक-छात्र अनुपात में बिहार फिसड्डी :शिक्षक छात्र अनुपात में राष्ट्रीय स्तर से बिहार काफी पीछे है. एक लाख से अधिक शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं. बिहार में सबसे ज्यादा शिक्षकों की कमी है बिहार के सरकारी स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर 60 बच्चों पर एक शिक्षक है. जबकि माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर यह अनुपात बढ़कर 70 हो गया है. पूरे देश में बिहार एकमात्र ऐसा राज्य जहां औसतन 70 बच्चों को पढ़ाने के लिए सिर्फ एक शिक्षक हैं. बिहार में सरकार ने सभी पंचायतों में सेकेंडरी स्कूल खोलने का दावा किया था. बता दें कि बिहार में 8406 पंचायत है. अब तक सिर्फ 5000 पंचायतों में ही सेकेंडरी स्कूल खोले जा सके हैं.
शिक्षकों कमी से पठन-पाठन प्रभावित :सरकार द्वारा तय पैमाने के मुताबिक प्राथमिक स्तर पर छात्र शिक्षक अनुपात 27:1 होनी चाहिए. यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफॉरमेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन के मुताबिक सरकारी स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर छात्र शिक्षक अनुपात 26:1 उच्च प्राथमिक स्तर पर 21:1 माध्यमिक स्तर पर 19:1और उच्च माध्यमिक स्तर पर 24:1 होना चाहिए. इसके अलावा बिहार में गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों का घोर अभाव है. स्थानीय निकाय के द्वारा बहाल ज्यादातर शिक्षक शिक्षा व्यवस्था में फिट नहीं बैठते हैं. शिक्षकों को मिड डे मील में लगा दिए जाने से पठन-पाठन का कार्य प्रभावित होता है.