पटना:बिहार में वर्ष 2006 से ही नियोजित शिक्षकों का नियोजन हो रहा है. लाखों की संख्या में नियोजित शिक्षक बिहार में काम कर रहे हैं. लेकिन अब तक इनकी सेवा शर्त नियमावली नहीं बन पाई है. इसे लेकर कई बार शिक्षकों ने हंगामा किया. विपक्ष के सदस्यों ने भी इस मुद्दे को कई बार उठाया.
अब तो सरकार यानी बीजेपी और जदयू से जुड़े नेता भी इस मामले को प्रमुखता से उठा रहे हैं. लेकिन, अब भी सरकार इस मामले पर कुछ भी बोलने से बचती दिख रही है. ऐसे में लोगों का यही सवाल है कि आखिर क्यों सेवा शर्त मामले पर सरकार कुंडली मारकर बैठी है?
ईटीवी भारत संवाददाता अमित वर्मा की रिपोर्ट लगभग 2 महीने पहले आया था SC का फैसला
'समान काम, समान वेतन' पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आए लगभग 2 महीने हो चुके हैं. बीते 10 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने नियोजित शिक्षकों के खिलाफ फैसला दिया था. इसके बाद सरकार चाहती तो नियोजित शिक्षकों का सेवा शर्त लागू कर सकती थी. लेकिन, अब तक इस बात को लेकर कोई चर्चा नहीं है. सेवा शर्त लागू नहीं होने के कारण नियोजित शिक्षकों को ना तो ट्रांसफर की फैसिलिटी मिल रही है, ना ही उनका प्रमोशन हो रहा है. ऐसे में वह अन्य तमाम सुविधाएं से भी वंचित होते जा रहे हैं.
क्या कहते हैं नेता?
बता दें कि इस बारे में सदन में भी कई बार सवाल उठ चुके हैं. सदन में सवाल उठाने वाले बीजेपी के विधान पार्षद और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने कहा कि यह बहुत पुराना मामला है. वर्ष 2015 में बिहार सरकार ने 3 सदस्यों की कमेटी बनाई थी, जिसे सेवा शर्त लागू करना था. लेकिन 4 साल के बाद भी सरकार अब तक इसे लेकर स्पष्ट उत्तर नहीं दे रही है.
बीजेपी नेता ने कहा कि अगर शिक्षा मंत्री अपने बूते यह काम नहीं करा सकते तो मुख्यमंत्री को खुद इस मामले को देखना चाहिए. इधर शिक्षा मंत्री का हर बार की तरह फिर वही रटा-रटाया जवाब दे रहें हैं. उनका कहना है कि बहुत जल्द इस पर काम पूरा होगा और इसे लागू कर दिया जाएगा.