नीति आयोग की रिपोर्ट पर सियासत पटना: नीती आयोग की रिपोर्ट में बिहार गरीबी हटाने में अव्वल आया है. इसको लेकर बिहार में सियासी दावे शुरू हो गए हैं. हालांकि जब 2 साल पहले बिहार की लगभग 52 फ़ीसदी आबादी को गरीब बताया गया था, उस वक्त नीतीश सरकार ने आपत्ति दर्ज कराई थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू के नेताओं ने भी सवाल खड़े किए थे, लेकिन अब वही नीति आयोग उन्हीं मापदंडों पर रिपोर्ट तैयार की है. इसके बाद नीतीश सरकार के सुर बदल गए हैं.
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देश में बिहार अव्वलः आयोग ने बहुआयामी गरीबी सूचकांक पिछले सप्ताह जारी किया है. वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019 21 की अवधि में पूरे भारत में ऐसे तो 13.51 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं, लेकिन पूरे देश में बिहार में अकेले 2.25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं. जो 16.6 5% के करीब है. इसके बाद भी बिहार में गरीबी 33.7% है जो पूरे देश में सबसे अधिक है. जिन प्रमुख राज्यों में गरीबी कम हुई है उसमें बिहार टॉप पर है.
'कोई आपत्ति नहीं':बिहार सरकार में योजना विकास मंत्री विजेंद्र यादव का कहना है कि इस बार नीति आयोग की रिपोर्ट पर कोई आपत्ति नहीं है. हम लोगों ने बैठक में अपनी बात कही थी और रिपोर्ट पूरे देश के लिए लागू किया गया है. इसलिए हम लोग कैसे आपत्ति दर्ज करा सकते हैं. बिहार पूरे देश में गरीबी हटाने में टॉप आया है.
'अन्य राज्यों में गरीबी कम क्यों नहीं हुई?': वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी का कहना है कि केंद्र सरकार ही नीति आयोग के माध्यम से रिपोर्ट दी है कि यहां गरीबी कम हुई है. लेकिन बीजेपी के लोगों को यह अच्छा नहीं लग रहा है. विजय चौधरी का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार की योजनाएं बीजेपी शासित दूसरे राज्यों को भी मिली है. आखिर बिहार जैसी गरीबी उन राज्यों में कम क्यों नहीं हुई.
'केंद्र की योजना से गरीबी कम हुई है': बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल का कहना है कि अपने हिसाब से रिपोर्ट की तारीफ और विरोध करते हैं. जब इन्हें लगता है कि रिपोर्ट इन के पक्ष में है तो रिपोर्ट की तारीफ करते हैं, लेकिन जब रिपोर्ट इनके विरोध में लगता है तब विरोध करना शुरू कर देते हैं. आज बिहार में नीतीश कुमार जिनके साथ सरकार चला रहे हैं, बिहार को गरीब बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. यहां से पलायन कराने में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है. केंद्र सरकार की योजना ऐसी है, जिसके कारण बिहार में गरीबी कम हुई है.
'राज्य और केंद्र सरकार की उपलब्धि': इधर, नीति आयोग की जारी रिपोर्ट पर विशेषज्ञ की भी नजर टिकी है. विशेषज्ञ इसे राज्य और केंद्र सरकार की उपलब्धि मान रहे हैं. एएन सिन्हा शोध संस्थान के विशेषज्ञ विद्यार्थी विकास का कहना है कि देश में किसी राज्य में गरीबी घटती है तो निश्चित रूप से केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की योजना का उस पर असर होता है.
नीति आयोग की रिपोर्ट बहुआयामीःगरीबी सूचकांक का प्रगति प्रतिवेदन, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं बेहतर जीवन स्तर से संबंधित सुविधाओं या संसाधनों के वंचितों की संख्या पर आधारित है. गरीबी की गणना के लिए राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 2019-21 के आंकड़ों को लिया गया है. विद्युत, संपर्कता, स्वच्छता, रसोई इंधन , बैंक खाता खोले जाने के सूचकांकों पर बिहार की उपलब्धि देश के अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है. स्वच्छता, पेयजल, पोषण, प्रसवोत्तर देखभाल, आवास, संपत्ति के मामले में भी बिहार में वंचितों की कमी का प्रतिशत क्रमशः 46.74% 42.41% 35.47% से 30.42% एवं 31.49% है.
सात निश्चय योजना असरदारः बिहार में शिक्षा स्वास्थ्य, पेयजल, विद्युत, संपर्क, महिला विकास, संरचना निर्माण, पशु संसाधन, बैंक में खाता खोलने में अच्छी प्रगति हुई है. बिहार सरकार इसके लिए सात निश्चय पार्ट वन और सात निश्चय पार्ट टू योजनाएं कृषि, रोड, शिक्षा के नवाचार योजनाएं, स्वास्थ्य के गुणवत्तापूर्ण कार्यक्रमों के कारण संभव हो पाया है. यही वजह है कि 2014-15 के प्रति व्यक्ति घरेलू आय 39341 से बढ़कर 2021-22 में 54383 रुपए हो गया है.
संसाधनों के बूते गरीबी कमःपिछले डेढ़ दशक से बिहार का विकास डबल डिजिट रहा है. 2010-11 में 15.03%, 2011-12 में 10.29%, 2018-19 में 10.86%, 2019-20 में 10.5% और 2021-22 में 10.98% इसका उदाहरण है. देश में राष्ट्रीय वृद्धि दर डबल डिजिट में नहीं रहा है. इसलिए बिहार के विकास में केंद्र का बहुत ज्यादा योगदान नहीं है. बिहार अपने संसाधनों के बूते गरीबी कम की है.