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बिहार में बीएड घोटाला: ढाई-ढाई लाख में डिग्री बांटने का आरोप, शिक्षा मंत्री को जाना पड़ा था जेल - ढाई लाख रुपये में बीएड की डिग्रियां

देश में सबसे ज्यादा आईएएस और आईपीएस देने वाले बिहार का एक सुनहरा पहलू यह है कि यहां की प्रतिभा को पूरा देश मानता है. लेकिन, इसी बिहार के साथ स्याह पक्ष यह भी है कि यहां एक से बढ़कर एक शिक्षा घोटाले भी हुए. कैट पेपर लीक, टीईटी पेपर लीक, इंटर मेधा घोटाला, बीपीएससी पेपर लीक जैसे मामले लंबे वक्त तक सुर्खियों में रहा. इन्हीं में से एक घोटाला था B.Ed डिग्री घोटाला (BEd degree scam in Bihar). आइये जानते हैं, क्या था मामला.

बिहार में बीएड घोटाला:
बिहार में बीएड घोटाला:

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Published : Nov 12, 2022, 8:17 PM IST

पटना: साल 1995 में बिहार मेंबीएड डिग्री घोटाला सामने आया (BEd degree scam in 1995) था. मगध और दरभंगा विश्वविद्यालय के माध्यम से यूपी और राजस्‍थान के कई कालेजों को बीएड की मान्यता दी गई थी. जिसके बाद कालेजों ने कथित रूप से ढाई-ढाई लाख रुपये में बीएड की डिग्रियां बांटी थीं. मामले में बिहार निगरानी ब्यूरो ने साल 1999 में मुकदमा दर्ज किया था. जिसके बाद वर्ष 2000 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री जयप्रकाश यादव को जेल जाना पड़ा था. उस वक्त शिक्षा राज्यमंत्री रहे जीतन राम मांझी को जमानत मिल गयी थी.

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घोटाले की जानकारी देते अधिवक्ता.



1999 में दर्ज हुई थी प्राथमिकीः घोटाले की खबर सामने आने के बाद सरकार हरकत में आई और निगरानी अन्वेषण ब्यूरो को इसकी जांच सौंप दी गई. 1999 में निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने एफआईआर दर्ज कर अनुसंधान शुरू किया. आरोपितों के खिलाफ निगरानी की विशेष अदालत में चार्जशीट दायर की गई. मामले में राजबल्लभ तिवारी, विश्वनाथ पासवान, निरंजन कुमार घोष, डॉक्टर एसए याहिया, विष्णु कांत झा, रत्नेश्वर मिश्रा, रामजी, चंद्रमोहन, केके सुमन, एसएम जफर इमाम, एस एम अली इमाम और नैयर आजम के खिलाफ ट्रायल चला.

बीएड घोटाला की क्रोनोलॉजी



कटिहार में था कॉलेजः सुर्खियों में रहे इस चर्चित घोटाले की जब अदालत में सुनवाई हो रही थी तब वरिष्ठ पत्रकार और सरकारी वकील अरविंद उज्ज्वल ने अदालत की कार्यवाही को देखा था. अरविंद बताते हैं कि यह घोटाला अपनी तरह का अलग घोटाला था. कटिहार में मुस्लिम अल्पसंख्यक कॉलेज था. उसे मान्यता देने की बात थी. तब जयप्रकाश नारायण यादव राज्य के शिक्षा मंत्री थे. उन्होंने कटिहार के तत्कालीन डीएम को फाइल पर यह लिखा था कि जांच करके पूरी रिपोर्ट दी जाए. तब तक उस सत्र के लिए उस कॉलेज को मान्यता दे दी जाए. आरोप लगा था कि गलत तरीके से मान्यता दी गई है.

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नहीं मिली थी जयप्रकाश को राहतः अरविंद बताते हैं कि इसके बाद यह मामला निगरानी अन्वेषण ब्यूरो में चला गया. फिर इस मामले में केस दर्ज हुआ. शुरू में जयप्रकाश नारायण यादव अग्रिम जमानत के लिए पटना हाई कोर्ट की तरफ रुख किया. पटना हाई कोर्ट के द्वारा उनको तीन-चार महीने के लिए अंतरिम जमानत भी मिली, लेकिन बाद में उनकी अंतरिम जमानत खारिज कर दी गयी. इसके बाद जयप्रकाश नारायण यादव ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली. लेकिन उनको वहां से भी राहत नहीं मिली.

जाना पड़ा था जेलः अरविंद कहते हैं, जब इन दोनों जगहों से उन्हें राहत नहीं मिली तो जयप्रकाश निचली अदालत में गए. वहां जाकर उन्होंने सरेंडर किया. उनको जेल भेज दिया गया. करीब एक माह तक जयप्रकाश नारायण जेल में रहे, जिसके बाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई. बाद में ट्रायल कोर्ट की तरफ से उनका Acquittal हो गया. उनको क्लीन चिट मिल गई कि इस मामले में उनके उनकी सहभागिता नहीं थी.


जयप्रकाश पर ये थे आरोपः अरविंद कहते हैं कि जयप्रकाश नारायण यादव पर पैसे लेकर डिग्री देने का आरोप नहीं था. इनके ऊपर जो आरोप था, वह यह था कि इन्होंने जो संबद्धता प्रदान की थी. उस फाइल पर इन्होंने इतना ही लिखा था कि इसको दो सत्र के लिए संबद्धता प्रदान की जाती है. उन्होंने बाद में यह भी दिखाया कि एक पटना हाई कोर्ट का ऑर्डर था, जिसमें कहा गया था कि कंसीडर करके दीजिए. उसी के संदर्भ में हम ने डीएम को यह कहा कि आप जांच करके रिपोर्ट दीजिए. तब तक हमने उनको संबद्धता प्रदान कर दी थी कि छात्र Appear होंगे. इसी पर यह बात सामने आई कि गलत तरीके से पैसे लेकर नामांकन कराया गया.


मांझी ने ली थी अग्रिम जमानतः तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री जीतन राम मांझी की अग्रिम जमानत लेने की बात पर अरविंद बताते हैं कि उसमें उनको लगा था कि विभाग में वह भी हैं. हाई कोर्ट से उनको बेल मिल गयी थी. बाद में कुछ सामने नहीं आया तो वह बरी हो गए. अरविंद कहते हैं कि केस में अब कोई दम नहीं है. यह खत्म हो चुका है. जो भी लोग जिनके ऊपर आरोप था वह बरी हो गए. बाद में कुछ पदाधिकारी ही बचे थे और उसके बाद कुछ ऐसा आया नहीं. ऐसा आरोप लग था कि b.Ed घोटाला करोड़ों रुपए लेकर के इधर से उधर हुआ.







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