पटना: बैंकों के निजीकरण के मुद्दे पर एक बार फिर से बैंककर्मी लामबंद हो रहे हैं. कर्मियों में बैंकों के निजीकरण को लेकर आक्रोश देखा जा रहा है. उनका कहना है कि देश का हित सिर्फ राष्ट्रीय बैंक से ही हो सकता है. 1 फरवरी 2021 को पेश हुए आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि सावर्जनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण किया जाएगा. हालांकि उन्होंने बैंकों का नाम नहीं बताया था. ऐसे में अब बिहार बैंक इंप्लाइज फेडरेशन ने 15-16 मार्च को बैंक हड़ताल के साथ ही आंदोलन की घोषणा कर दी है.
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15-16 मार्च को बैंक हड़ताल
हालांकि निर्मला सीतारमण ने निजीकरण किये जाने वाले बैंकों का नाम नहीं बताया था. ऐसे में ग्राहक को और बैंकों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि वे कौन से बैंक होंगे जो आने वाले दिनों में निजी बैंक हो जाएंगे.
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4 बैंकों का हो सकता है निजीकरण
केंद्र सरकार ने बजट में 2 बैंकों के निजीकरण की घोषणा की. लेकिन अब सूत्रों के मुताबिक पता चला है कि सरकार जिन 4 बैंकों का निजीकरण करने जा रही है उनमें से बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र , इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया शामिल है.
क्या कहा गया था
1 फरवरी को पेश किए गए बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार अपने स्वामित्व वाले दो छोटे बैंकों और एक बीमा कंपनी का निजीकरण करने का लक्ष्य रख रही है.
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'बैंकों के निजीकरण को लेकर बाजार और निवेशकों का मूड भांपने के लिए निजीकरण के पहले दौर में सरकार मंझोले और छोटे बैंकों का सेलेक्शन कर रही. अगर निवेशकों का रुझान सही रहता है तो आने वाले समय में सरकार अपेक्षाकृत कुछ बड़े बैंकों के निजीकरण पर विचार भी कर सकती है. जिसका बैंक इंप्लाइज फेडरेशन विरोध करती है.'- जेपी दीक्षित, जनरल सेक्रेटरी, बिहार बैंक इंप्लाइज फेडरेशन
बैंक इंप्लाइज फेडरेशन का बयान
- इस समय केंद्र सरकार विनिवेश पर ज्यादा ध्यान दे रही है.
- सरकारी बैंकों में हिस्सेदारी बेचकर सरकार राजस्व को बढ़ाना चाहती है.
- और उस पैसे का इस्तेमाल सरकारी योजना पर करना चाहती है.
- सरकार ने 2021 -22 में विनिवेश से 1. 75 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है.
पिछले साल रघुराम राजन कमेटी द्वारा कहा गया था कि कुछ संकटग्रस्त सरकारी बैंकों का निजीकरण बेहद जरूरी है ताकि बैड लोन का बोझ घटाया जा सके.
आंदोलन को सीपीआईएम का समर्थन
केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीयकृत बैंकों के निजीकरण की नीति का विरोध किया जा रहा है. इसी कड़ी में यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन द्वारा निजीकरण के विरोध में आगामी 15 और16 मार्च को होने वाले बैंक के हड़ताल को सीपीआईएम भी समर्थन कर रही है. यह भी पढ़ें-सुप्रीम कोर्ट ने 'ओवरएज' छात्रों को यूपीएससी में अतिरिक्त मौका देने से किया इंकार
'देश का हर तबका केंद्र सरकार की कॉर्पोरेट पस्त नीतियों से तबाह है. अपने अपने ढंग से उसका प्रतिरोध भी किया जा रहा है. संगठित और एकजुट संघर्ष से ही खेती से लेकर बैंक तक को निजी हाथों से बचाया जा सकता है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो बैंक कर्मचारी और किसानों की स्थिति दयनीय हो जाएगी और महंगाई अपने चरम पर पहुंच जाएगी.'-अरुण कुमार मिश्रा, नेता, सीपीआईएम
2 या 4 बैंकों के निजीकरण का मसला नहीं है. हम निजीकरण की समस्या को लेकर चिंतित हैं. 9 फरवरी को हैदराबाद में यूनाइटेड फोरम के सेंट्रल यूनिट के बैठक में निर्णय लिया गया था कि आगामी 15 और 16 मार्च को देशव्यापी बैंकों का आंदोलन किया जाएगा. इसके बावजूद भी सरकार हमारी मांगों को अगर नहीं मानती है तो अनिश्चितकालीन हड़ताल बैंकों के निजीकरण को लेकर बैंकों के इंप्लाइज द्वारा किया जाएगा.-संजय सिंह, यूनाइटेड फोरम बैंक यूनियन बिहार के कन्वेनर
बैंकों का एकमात्र लक्ष्य लाभ कमाना नहीं
भारत जैसे देश में जो आर्थिक दृष्टि से, शैक्षणिक दृष्टि से, सामाजिक दृष्टि से और इंफ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता की दृष्टि से काफी पीछे है, उसमें ये सोचना कि लाभ ही बैंकों का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है. 1991 में भारत में प्राइवेट बैंक आए जिनका एकमात्र उद्देश्य था लाभ कमाना. इन बैंकों में खातों के लिए बड़े मिनिमम बैलेंस की आवश्यकता थी और अब भी है जो आम आदमी के लिए संभव नहीं है. ऐसे में सरकार की ओर से आम लोगों के लिए बैंकिंग सेवाएं आसान बनायी गई है. जनधन योजना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.
बैंकों के निजीकरण से क्या होगा?
कहा जा रहा है कि बैंकों के निजीकरण से ग्राहकों को कोई नुकसान नहीं होगा. बैंकों के निजीकरण से ग्राहकों को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि जिन बैंकों का निजीकरण होने जा रहा है उनके खाताधारकों को कोई नुकसान नहीं होगा. ग्राहकों को पहले की तरह ही बैंकिंग सेवाएं मिलती रहेंगी. हालांकि यूनियन इससे इतर अपना पक्ष रख रहा है. और निजीकरण को देश के विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बता रहा है. आपको बता दें कि जिन 4 बैंकों का निजीकरण करना है उनमें फिलहाल 2.22 लाख कर्मचारी काम करते हैं.
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- वर्तमान में बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारी की संख्या देशभर में करीब 50,000 है.
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के 33000 कर्मचारी हैं.
- इंडियन ओवरसीज बैंक में भी करीब 26000 कर्मचारी हैं.
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र में सिर्फ 13000 कर्मचारी काम करते हैं.
- देशभर में सभी बैंकों को मिलाकर लगभग 13 लाख कर्मचारी काम कर रहे हैं.