पटना:देश में इन दिनों लाउडस्पीकर विवाद (Loudspeaker Controversy in Bihar) को लेकर जमकर सियासत (Bihar politics) हो रही है. कई बार ऐसे भी हालात बने जब हिंदू-मुस्लिम को लेकर संप्रदायिक तनाव भी फैलाने की कोशश की गई. इन सबके बीच राजधानी पटना से एक सुकून देने वाली तस्वीर सामने आई है. यहां अजान भी सुनाई देती है और मंदिर के घंटे की आवाज भी. हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करने वाले इस शख्स की चर्चा हर किसी की जुबान पर है.
मंदिर और मस्जिद के बीच मजार: देश में कई मौकों पर हिंदू-मुस्लिम के बीच सांप्रदायिक तनाव की स्थिति देखने और सुनने को मिलती है. फिलहाल अजान और लाउडस्पीकर का मुद्दा गरमाया हुआ है. राजनीतिक दल इसपर अपनी राजनीतिक रोटियां भी सेंकने में लगे हुए हैं. लेकिन राजधानी पटना में अल्पसंख्यक समुदाय के एक शख्स (Badrul Hasan of Patna) ने इसलिए मंदिर और मस्जिद के बीच अपना मजार (Temple-Tomb In Middle Of Mosque In Patna) बनवाया है ताकि उनको मंदिर के घंटे की आवाज और मस्जिद से पढ़ा जाने वाला अजान दोनों सुनाई दे.
बदरुल हसन ने मंदिर-मस्जिद के लिए दान की थी जमीन: पटना के बदरुल हसन साहब खाजपुरा इलाके के जमींदार थे. सभी धर्मों के लोगों को बड़े ही आदर भाव से देखते थे. सब का सम्मान करते थे. बदरुल हसन की मौत 1934 में हो गई थी. लेकिन उससे पहले उन्होंने मंदिर और मस्जिद दोनों के लिए जमीन दान में दिए. उन्होंने अपने परिजनों से कहा था कि मंदिर और मस्जिद के बीच मेरे मजार का निर्माण होना चाहिए. जिंदा रहते हुए उन्होंने मजार के लिए जगह भी सुनिश्चित कर दी थी.
खाजपुरा शिव मंदिर के लिए दी थी जमीन: आज की तारीख में बदरुल हसन साहब की मजार ऐसी जगह पर है जहां मस्जिद की अजान भी सुनाई देती है और घंटे की गूंज भी लोग सुन सकते हैं. मजार से लगभग 500 मीटर की दूरी पर जहां मस्जिद है, वहीं लगभग 500 मीटर की दूरी पर मंदिर भी अवस्थित है. आपको बता दें कि राजधानी पटना के खाजपुरा स्थित शिव मंदिर की भव्यता लोगों को खूब आकर्षित करती है. सवा एकड़ में फैले मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया रोचक रही. अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने भी मंदिर निर्माण में अपनी जमीन दी थी.
खाजपुरा में मिलकर रहते हैं हिंदू मुसलमान:खाजपुरा इलाके के मौलाना मसूद रजा कहते हैं कि बदरुल हसन साहब खाजपुरा इलाके के जमींदार थे और उनकी सोच सर्वधर्म समभाव वाली थी. बदरुल हसन साहब सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक भी थे. एक ओर उन्होंने मंदिर के लिए जमीन दी तो दूसरी तरफ मस्जिद भी बनवाई. दोनों धर्मों के लोगों को वह समान नजर से देखते थे.