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पंचायत चुनाव में बदइंतजामियों पर पूछ रहा है बिहार- क्या यही है तैयारियों की सच्चाई ?

अररिया में मतदानकर्मियों ने जमीन पर बैठकर मतदान कराया, गया में खेत में मतदान केंद्र बना दिया, जमुई में लोग पानी और कीचड़ को पार कर वोट डालने गए, नवादा में नाव की सवारी कर मतदान केंद्र तक पहुंचना पड़ा. यह नजारा बिहार पंचायत चुनाव की व्यवस्था की पोल खोल चुका है. हद तो तब हो गई, जब इन्हें दुरुस्त करने की जिम्मेवारी उठानेवाले डीएम-एसपी को भी इसका शिकार होना पड़ा. खगड़िया में मतदान केंद्र के सामने पानी जम गया तो पगडंडी बनाई गई. लेकिन अधिकारियों के जूते गीले हो गए. इसके बावजूद सरकार चीख रही है कि यह गांव की सरकार है.

पंचायत चुनाव
पंचायत चुनाव

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Published : Oct 10, 2021, 8:46 PM IST

पटनाः बिहार में पंचायत चुनाव (Bihar Panchayat Election) चल रहा है. पंचायत चुनाव को लेकर सरकार की सभी तैयारियां भी पूरी हैं. तीन चरण (Third Phase Voting) के मतदान की प्रक्रिया पूरी हो गई है. मतगणना भी हो गई है. अब चौथे चरण की तैयारी शुरू हुई है. लेकिन तीन चरणों के चुनाव में पंचायत चुनाव के लिए मुद्दों के साथ सरकारी तैयारी का जो रंग दिखा है, उससे एक बात तो साफ है कि जिस पंचायत की अवधारणा बापू ने रखी थी और जिस पंचायत को पूरा करने के लिए सरकारों ने कसम खाई थी, उसकी अभी बहुत सारी कहानी पूरी होनी बाकी है.

अभी बाकी है 'तीसरी कसम'

तीन चरणों के चुनाव में पंचायतों में जो लिखा है, उसमें जनता दरबार में आने वाली शिकायतें और पंचायत के लिए होने वाली तैयारी सब कुछ जनता के सामने है. एक बात तो साफ है कि इस पंचायत चुनाव के बाद जिन 24 सीटों पर विधान परिषद के चुनाव होने हैं, उस पर नजर तो सबकी है लेकिन पंचायत का सब कुछ बदल जाए, इसको लेकर नजरिया अभी तक सरकार का लगभग वैसा ही पड़ा हुआ है. सरकार ने निश्चय दो बार तो कर लिए सात निश्चय-1, सात निश्चय-2, अब सिर्फ तीसरी कसम बाकी है.

खगड़िया में डीएम-एसपी को ही बदहाली झेलनी पड़ी.

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बिहार पंचायत के चुनाव में जिस तरह से लोकतांत्रिक व्यवस्था चल रही है, उसमें कानून व्यवस्था कैसी है, इसे लेकर पुलिस की तैयारी पुख्ता है. लोग मतदान कर रहे हैं. अपने गांव की सरकार बना रहे हैं. लोग जीत रहे हैं, मिठाई बांट रहे हैं. पंचायत को 5 सालों में बदल देंगे, इसका दावा भी हो रहा है, वादा भी किया जा रहा है. 5 साल पहले कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने दावा करके मुखिया का पद जीता था, उन पर जनता ने भरोसा किया है, वह जीत कर लौट भी रहे हैं.

जमुई में सदर प्रखंड के कुंदरी सनकुरहा पंचायत की तस्वीर.

कौन देगा मतदाताओं के सवालों के जवाब

लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि पंचायत में जो चीजें बदल ली थी, वह अभी तक नहीं बदल पाई. यह किसी राजनीतिक दल या सियासी पार्टी के लिए नहीं बल्कि बिहार के बदलते गांव की वह हकीकत है, जो अभी भी जमीनी हकीकत से काफी दूर है. इसकी तस्वीरें ईटीवी भारत के पास आई हैं. अब सवाल यह है कि जो हकीकत चुनाव के समय में दिख रहा है. अगर गांव में अभी भी स्थिति यही है, तो उस गांव का विकास पहुंचा कहां तक है, सूचना सरकार को होगी.

मुजफ्फरपुर में सकरा प्रखंड के बेरुआडीह गांव में बाढ़ के पानी में डूबे स्कूल को मतदान केंद्र बना दिया गया.

गांव की सरकार बन रही है, जिसके लिए सिर्फ एक सवाल जो कुछ लोगों ने ईटीवी भारत को भेजा भी है, वह यह है कि जहां पर मतगणना केंद्र बनाए गए हैं, वह तो जिले का है. क्योंकि पहली बार बहुत कुछ बदल गया है. मतदान ईवीएम से हो रहा है, तो मतगणना जिले में हो रही है, लेकिन जिस तरह से स्थिति मतदान केंद्रों की है, उसे देखने के लिए किसी के पास फुर्सत नहीं है.

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मतदान केंद्रों का बुरा हाल

निर्वाचन आयोग ने तैयारी जरूर कर ली है. लेकिन अगर दूसरे चरण की बात करें तो तैयारी का आलम यह था कि ईवीएम रखने तक के लिए जगह नहीं थी. जमीन पर रखकर मतदान करवाया गया. कई स्थान ऐसे हैं, जहां तक जाने की व्यवस्था नहीं थी. पैदल डीएम और एसपी वहां तक पहुंचे. लोगों से मतदान की अपील की. कई ऐसे मतदान केंद्र हैं जहां जाने के लिए लोगों को पानी में जाना पड़ा और उसके बाद वह मतदान केंद्र तक पहुंचे वह भी कीचड़ से होकर बोट से भी लोग मतदान करने पहुंचे थे नदी पार करके गांव की सरकार बनाने का जज्बा जो उनके दिल में था

अररिया जिले के भरगामा प्रखंड के बूथ संख्या 87 पर चुनाव कर्मियों को जमीन पर बैठकर मतदान कराना पड़ा.

पंचायत चुनाव को लेकर सिर्फ एक सवाल पंचायत के लोगों ने भेजा है कि जिन स्थानों पर मतदान केंद्र बनाए गए हैं, वह सरकारी भवन हैं. चाहे वह स्कूल है या फिर स्वास्थ्य केंद्र है. इन्हीं स्थानों पर मतदान केंद्र बनाए गए हैं. लेकिन यहां तक पहुंचने की व्यवस्था नहीं है. यह हम नहीं कह रहे हैं, तस्वीरों में है. डीएम-एसपी पैदल पहुंचे हैं, जो लोग मतदान करने गए हैं, उनके पैर में चप्पल नहीं है. क्योंकि कीचड़ में चप्पल धंस जाते. यहां तक कि मतदान केंद्र में धरती पर बैठकर मतदान कराना पड़ा. अगर यी हकीकत है तो सरकार को यह सोचना पड़ेगा कि क्या इसी गांव को बनाने के लिए इतने बड़े दावे किए गए. सात निश्चय की बातें की गई और सात निश्चय को लेकर दुहाई भी खूब दी गई.

दावा-वादा सब फेल

यह अलग बात है कि जनता दरबार में गांव में सड़क नहीं होने के जब मामले आते हैं, तो बिहार के मुख्यमंत्री फोन लगा कर तुरंत कहते हैं, 'जरा इसे दिखा लीजिए'. लेकिन देखने वाला कोई नहीं है. क्योंकि जिन्हें देखना है, उन्हें खुद उस हालात से रूबरू होना पड़ा. कलेक्टर साहब को रास्ता नहीं मिला, तो खेत से ही होकर जाने लगे. शायद कलेक्टर साहब को समझ आया हो कि यहां रास्ता देने की जरूरत है. ऐसे एक नहीं कई कलेक्टर हैं, जिनके सामने इस बार पंचायत चुनाव में कई सवाल खड़े किए गए हैं.

नवादा में लोग 15 किमी पैदल चले, फिर नाव की सवारी की तब वोट देने मतदान केंद्र पहुंचे.

जवाब बिहार इसलिए भी खोज रहा है कि सरकार की तमाम तैयारी बड़ी आधुनिक हो गई है. हमारा सवाल इसलिए उठ रहा है कि जब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से वोटिंग कराने की जिम्मेदारी और जवाबदेही सरकार ने तय की तो फिर उस स्थान तक पहुंचने के लिए रास्ते का इंतजाम क्यों नहीं हुआ. यह बदलते बिहार की वह तस्वीर है, जो मुंह चिढ़ा रही है. बिहार के लोगों को भी यह बता तो रही है कि आपके पैसे से सरकार चल जाएगी. आपके विधायक बन जाएंगे तो एक बार जीतेंगे, पूरे जीवन खाएंगे. अधिकारी बन जाएंगे तो लौटकर आएंगे ही नहीं. लेकिन आप इसी में जिएंगे. हां जरूर आपको वोट करने के लिए एहसास होगा कि बिहार में अब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन जुड़ गई है. तैयारी निर्वाचन आयोग को भी कर लेना चाहिए और जरा सोच लेना चाहिए कि बिहार की यही तस्वीर भारत के सामने जा रही है. अब इसे यह मान लीजिए कि बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है.

गया के अतरी प्रखण्ड के डीहुरी पंचायत के डीहुरी गांव में बूथ संख्या तीन को धान के खेत में बनाया गया.

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