पटना: पूरा देश बिहारी प्रतिभा का लोहा मानता है. बिहार के छात्रों ने हर क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि बिहार में उच्च शिक्षा(Higher Education) बदहाल है. पिछले तीन दशक से शिक्षा व्यवस्था में लगातार गिरावट आ रही है. विडंबना यह है कि छात्रों को पीएचडी (PHD) करने के लिए गाइड नहीं मिल रहे.
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बिहार में उच्च शिक्षा दम तोड़ रही है. विश्वविद्यालयों में शिक्षकों का घोर अभाव है. 20 फीसदी शिक्षकों के बदौलत पठन-पाठन का कार्य चल रहा है. शिक्षकों के अभाव में छात्र पलायन को मजबूर हैं. कोरोना संक्रमण (Corona Infection) में कमी आने के बाद बिहार में पठन-पाठन का काम शुरू हो रहा है. विश्वविद्यालय और कॉलेज खोलने का निर्णय लिया गया है.
बिहार में लगभग 20 हजार छात्र नेट की परीक्षा पास कर चुके हैं. तमाम छात्र पीएचडी करना चाहते हैं. इनमें 3500 से 4000 छात्र ऐसे हैं, जिन्हें पीएचडी के लिए गाइड नहीं मिल रहे हैं. वे दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. अकेले इतिहास विभाग में 300 छात्रों का इनरोलमेंट पीएचडी के लिए नहीं हो सका है. दरअसल बिहार के विश्वविद्यालयों में व्याख्याताओं की कमी है. कई विभाग एक शिक्षक के बदौलत चल रहे हैं. एक शिक्षक 5 छात्रों को पीएचडी करा सकते हैं और रिटायर शिक्षक 3 छात्रों को पीएचडी करा सकते हैं.
पटना विश्वविद्यालय में कई ऐसे विभाग हैं जहां या तो शिक्षक नहीं हैं या फिर एक शिक्षक के बदौलत विभाग चल रहा है. कई ऐसे भी विभाग हैं जहां छात्र एमए तो पास कर लेते हैं, लेकिन पीएचडी नहीं कर सकते. क्योंकि उस विषय के विशेषज्ञ शिक्षक वहां नहीं हैं. मिसाल के तौर पर पत्रकारिता, पीएमआईआर, सोशल वर्क और रूरल डेवलपमेंट जैसे विषय से छात्र पीएचडी नहीं कर सकते.