पटना: केंद्र की मोदी सरकार 34 साल बाद देश में नई शिक्षा नीति लायी है. नई शिक्षा नीति लागू होते ही स्कूल के अलावा हायर एजुकेशन को लेकर बड़ी बातें सामने आ रही हैं. इनमें से एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि डिग्री कॉलेजों को एक निश्चित समय में स्वायत्तता हासिल करनी होगी. इसे लेकर बिहार में शिक्षाविद् और छात्र भी सवाल खड़े कर रहे हैं कि इसके बाद तो सिर्फ साधन संपन्न निजी कॉलेज और यूनिवर्सिटी का बोलबाला हो जाएगा.
नई शिक्षा नीति के लागू करने के दौरान केंद्रीय मानव संसाधन विकास (अब शिक्षा मंत्रालय) के मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि एक विश्वविद्यालय 300 से अधिक महाविद्यालयों को मान्यता नहीं दे सकता. उसके लिए हमें विश्वविद्यालय बढ़ाने होंगे और नई शिक्षा नीति में चरणबद्ध तरीके से इस पर काम करेंगे. यानी कि कॉलेजों को स्वायत्त बनाए जाएंगे.
पटना से अमित वर्मा की रिपोर्ट नई शिक्षा नीति के तहत
- नई शिक्षा नीति में अधिक से अधिक कॉलेजों को ऑटोनोमस करने की योजना है.
- इसके चलते महाविद्यालयों की संबद्धता 15 वर्षों में समाप्त हो जाएगी.
- कॉलेजों को क्रमिक स्वायत्तता (ग्रेडिड ऑटोनोमी) प्रदान करने के लिए मैकेनिज्म तैयार किया जाएगा.
- इससे कुछ समय के बाद सभी महाविद्यालय या तो ऑटोनोमस डिग्री देने वाले कॉलेज में विकसित हो जाएंगे या किसी विश्वविद्यालय के संघटक महाविद्यालय बन जाएंगे.
क्या कहते हैं छात्र?
इसपर छात्रों का कहना है कि बिहार में स्वायत्तता का एक सबसे बड़ा उदाहरण पटना वीमेंस कॉलेज है. पटना यूनिवर्सिटी से इसे जब से स्वायत्तता हासिल हुई है. इसके बाद यहां गरीब छात्र-छात्राओं का पढ़ना मुश्किल हो गया है क्योंकि स्कूल की फीस इतनी ज्यादा है कि वह कोई गरीब छात्र देने में सक्षम नहीं है. ऐसी शिक्षा का क्या फायदा जो आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाए.
वहीं, छात्र संघ नेता निशांत ने कहा कि वाणिज्य महाविद्यालय हो या पटना कॉलेज क्लासरूम की कमी है. पर्याप्त संख्या में टीचर्स भी नहीं हैं. जब तक कॉलेजों को सरकारी सहायता मिल रही है तभी तक सरकारी कॉलेज जिंदा हैं.
'प्रतिस्पर्धा पड़ेगा असर'
इस बारे में हमने बात की पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर रास बिहारी सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री ने पटना यूनिवर्सिटी के शताब्दी समारोह में यह घोषणा की थी कि कॉलेजों और यूनिवर्सिटी को खुद इस लायक बनना होगा कि वे ग्लोबल स्तर पर कंपीट कर सकें. लेकिन सरकार ने नई शिक्षा नीति बनाते समय इस बात को स्पष्ट नहीं किया है कि सरकारी कॉलेज और यूनिवर्सिटी जिनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं है. वह किस तरह निजी सुविधा संपन्न कॉलेज और यूनिवर्सिटी से कंपीट कर सकेंगे. प्रतिस्पर्धा के दौर में सरकारी कॉलेज और विश्वविद्यालय पिछड़ जाएंगे क्योंकि उनके पास पर्याप्त आर्थिक संसाधन और अन्य संसाधन नहीं हैं.
प्रो. रास बिहारी सिंह, पूर्व कुलपति, पटना विवि मकसद ये है कि कॉलेज को उतना स्वावलंबी बना दिया जाए कि वो सक्षम हो जाएं और ज्यादा काम करने में, नई शिक्षा नीति में इसकी चर्चा हुई है. ये अच्छी बात है.- कृष्ण नंदन वर्मा, शिक्षा मंत्री, बिहार सरकार
शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन वर्मा
सिर्फ डिग्री देने तक सीमित रह जाएंगे कॉलेज- विशेषज्ञ
इस बारे में सामाजिक आर्थिक विश्लेषक डॉ. डीएम दिवाकर ने कहा की नई शिक्षा नीति से भविष्य में सिर्फ निजी क्षेत्र को फायदा होने वाला है. हायर एजुकेशन का निजीकरण हो जाएगा, जिनके पास पैसे होंगे. वही पढ़ाई कर पाएंगे. अगर सरकारी कॉलेजों को स्वायत्तता दी जाएगी, तो पढ़ाई महंगी हो जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि कॉलेजों को सिर्फ डिग्री देने के लिए और यूनिवर्सिटी में सिर्फ रिसर्च का काम होगा, यह भी सही नहीं है. कॉलेज सिर्फ डिग्री देने तक सीमित होकर रह जाएंगे.
प्रो. डीएम दिवाकर, सामाजिक एवं आर्थिक विश्लेषक गौरतलब हो कि कुछ साल पहले जब पीएम मोदी पटना यूनिवर्सिटी के शताब्दी समारोह में आए थे. उस दौरान उन्होंने इस बात के संकेत दिए थे कि कॉलेज को ऑटोनोमस होना पड़ेगा. खुद को सक्षम बनाना पड़ेगा. लेकिन शिक्षाविद और एक्सपर्ट ने जो कुछ कहा है, उससे लगता नहीं कि सरकारी कॉलेज ऑटोनोमस होने के बाद प्रतिस्पर्धा में आगे हो पाएंगे.