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Chaturmas 2022: आज से चातुर्मास शुरू, चार महीनों में ये 4 काम करने से मिलेंगे अद्भुत फायदे - ETV Bihar

आज से चातुर्मास आरंभ हो रहा है, शास्त्र में चातुर्मास में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, ग्रह प्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, सभी त्याज्य होते हैं. यह समय बहुत सावधानी का होता है. इस काल में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है. हालांकि जप-तप, ध्यान, नदी स्नान, व्रत और तीर्थयात्रा पर कोई रोक (worship in Chaturmas) नहीं होती है. इस दौरान किसी गरीब या जरूरतमंद को दान जरूर दें.

चातुर्मास का आरंभ
चातुर्मास का आरंभ

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Published : Jul 10, 2022, 9:24 AM IST

पटना:आज से चातुर्मास (Chaturmas 2022) की शुरुआत हो रही है. चातुर्मास पूरे चार महीने तक चलेगा. शास्त्रों में इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है. कहा जाता है कि चातुमार्स शुरू होते ही भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और फिर देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi 2022) के लिए निद्रा से बाहर आते हैं, तभी चातुर्मास का समापन होता है. चातुर्मास अवधि में विविध प्रकार के कीटाणु और रोगकारक जंतु उत्पन्न हो जाते हैं.

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आज से चातुर्मास का आरंभ:ज्योतिष के जानकारों के मुताबिक चातुर्मास के दिन से भगवान विष्णु शयन मुद्रा में चले जाते हैं. भगवान विष्णु 4 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर अपने क्षीर निद्रा से जागेंगे. उसी दिन तक शादी विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेउ संस्कार और अन्य शुभ काम नहीं होते हैं. सूर्यदेव को प्रत्यक्ष देवता माना गया है, वो दक्षिण की ओर झुकाव के साथ गति करते हैं. यहीं वजह है कि इन चार माह में किसी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं होता है.

कौन-कौन से हैं चातुर्मास के चार माह? चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरु होती है और कार्तिक शुक्ल एकादशी को खत्म होती है. इसमें कुल 5 माह होते हैं, लेकिन तिथियों के हिसाब से देखा जाए, तो चार माह ही होते हैं. आषाढ़ शुक्ल एकादशी से श्रावण शुक्ल एकादशी एक माह, श्रावण शुक्ल एकादशी से भाद्रपद शुक्ल एकादशी दो माह, भाद्रपद शुक्ल एकादशी से अश्विन शुक्ल एकादशी तीन माह और अश्विन शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी चार माह. इस तरह से चातुर्मास में हिन्दू कैलेंडर के आषाढ़, सावन, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक माह आते हैं.

चातुर्मास में क्या नहीं करना चाहिए?:इस दौरान शादी-विवाह, मुंडन, तिलक, गृह प्रवेश और नामकरण जैसे सभी 16 संस्कार नहीं किए जाते। इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं माना जाता. चातुर्मास में पूरे चार महीने के लिए तामसिक या राजसिक भोजन का त्याग करना चाहिए. चातुर्मास में बाल-दाढ़ी बनवाने पर भी मनाही होती है. कहा जाता है कि चातुर्मास में नीले वस्त्र को नहीं देखना चाहिए. साथ ही इस समय काले वस्त्र को भी धारण नहीं करना चाहिए. चातुर्मास में यात्रा से भी बचना चाहिए. अगर बहुत जरूरी न हो तो इस दौरान यात्रा न करें. चातुर्मास में पड़ने वाले महीनों में जैसे सावन माह में मांसाहार भोजन, पालक और बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए. भाद्रपद में दही का त्याग करना चाहिए. आश्विन माह में तामसिक भोजन और दूध का सेवन नहीं करना चाहिए. कार्तिक माह में मांस-मदिरा , प्याज-लहसुन और उड़द की दाल का त्याग करना चाहए.

चातुर्मास में पूजा पाठ:चातुर्मास में भले ही शुभ-मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं लेकिन जप-तप, ध्यान, नदी स्नान, व्रत और तीर्थयात्रा पर कोई रोक नहीं होती है चातुर्मास में दान का भी विशेष महत्व होता है. इस माह में आपको भगवान शिव और भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करनी चाहिए. चातुर्मास भगवान शिव का प्रिय माह सावन भी शामिल है. इसमें आप भगवान शिव की आराधना करके अपनी मनोकामनाएं पूरी कर सकते हैं. घर के पूजन स्थल पर विष्णु जी की अष्टधातु या सोने, चांदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें. इसके बाद उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं. विष्णु जी को प्रसन्न करने और आर्थिक समस्याओं से बचने के लिए आज सरसों के तेल और ज्वार का दान करना अच्छा होगा. धन प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करें. ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का वास होगा. साथ ही घर में रहने वालों की तरक्की होगी.

ये है कथा:धार्मिक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर बलि से तीन पग भूमि मांगी, तब दो पग में पृथ्वी और स्वर्ग को श्री हरि ने नाप दिया और जब तीसरा पग रखने लगे तब बलि ने अपना सिर आगे रख दिया. भगवान विष्णु ने राजा बलि से प्रसन्न होकर उनको पाताल लोक दे दिया और उनकी दानभक्ति को देखते हुए वर मांगने को कहा. बलि ने कहा -प्रभु आप सभी देवी-देवताओं के साथ मेरे लोक पाताल में निवास करें, और इस तरह श्री हरि समस्त देवी-देवताओं के साथ पाताल चले गए, यह दिन एकादशी (देवशयनी) का था.

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वहीं, ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक अन्य प्रसंग में एक बार योगनिद्रा ने बड़ी कठिन तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और उनसे प्रार्थना की कि भगवान आप मुझे अपने अंगों में स्थान दीजिए. लेकिन श्री हरि ने देखा कि उनका अपना शरीर तो लक्ष्मी के द्वारा अधिष्ठित है. इस तरह का विचार कर श्री विष्णु ने अपने नेत्रों में योगनिद्रा को स्थान दे दिया और योगनिद्रा को आश्वासन देते हुए कहा कि तुम वर्ष में चार मास मेरे आश्रित रहोगी.

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