पटना:बिहार विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में बागी नेताओं की भूमिका ने चुनाव को दिलचस्प बना दिया था. उनकी वजह से बाजी किसी की भी ओर पलटी जा सकती थी. बात साफ है कि बागी नेता अधिक संख्या में चुनाव नहीं जीत सके, लेकिन उनकी वजह से बीजेपी (BJP) और जदयू (JDU) के कई उम्मीदवार चुनाव हार गए. बागी नेताओं को लेकर बीजेपी जहां सख्त है, वहीं जदयू ने ढुलमुल रवैया अपनाया हुआ है.
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विधानसभा चुनाव के दौरान जदयू के 8 बागी उम्मीदवार बीजेपी प्रत्याशियों के खिलाफ दो-दो हाथ कर रहे थे. बैकुंठपुर से मिथिलेश तिवारी के खिलाफ मंजीत सिंह, औरंगाबाद के गोह से मनोज शर्मा के खिलाफ रणविजय सिंह, भभुआ से रिंकी पांडे के खिलाफ प्रमोद पटेल बागी होकर चुनाव लड़े थे. बागी नेताओं के खिलाफ नरम रुख के चलते बीजेपी के प्रत्याशी चुनाव हार गए और महज 6 महीने में ही तीनों नेताओं को जदयू ने तामझाम के साथ पार्टी में शामिल कराया और उपाध्यक्ष भी बना दिया.
तीनों नेताओं को जदयू में शामिल कराए जाने के बाद से बीजेपी नेताओं का गुस्सा सातवें आसमान पर है. बीजेपी उपाध्यक्ष और बैकुंठपुर के प्रत्याशी मिथिलेश तिवारी ने कहा है कि ''मंजीत सिंह को जदयू ने ना ही चुनाव के दौरान पार्टी से निकाला था और ना ही उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दिया था. जदयू की पूरी इकाई बैकुंठपुर में उनके लिए काम कर रही थी. यहां तक कि मुख्यमंत्री बार-बार अनुरोध करने के बाद भी हमारे लिए चुनाव प्रचार में नहीं आए.''
गोह से बीजेपी प्रत्याशी मनोज शर्मा ने भी जदयू के मंशा पर सवाल खड़े किए हैं. मनोज शर्मा ने कहा कि ''विधानसभा चुनाव के दौरान हमें सिर्फ बीजेपी कार्यकर्ता और नेताओं का समर्थन मिला और उसी के बदौलत हम चुनाव लड़े, जिसके चलते हमारी हार हुई.''