पटना: बिहार के सबसे बड़े शोध संस्थान को लेकर इन दिनों सरकारी उदासीनता का शिकार हो गई है. अब ना तो इसमें नियमित बहाली हो रही है और ना ही फैकेल्टी मेंबर की कमी पूरी हो पा रही है. नतीजा यह कि सामाजिक शोध संस्थान के रूप में विश्व भर में चर्चित के संस्थान में शोध कार्य प्रभावित हो रहा है.
बिहार के सबसे बड़े सामाजिक शोध संस्थान की स्थिति दिनों दिन बदतर होती जा रही है. इस संस्थान में ना सिर्फ अध्यक्ष और डायरेक्टर समेत तमाम पद खाली पड़े हैं, बल्कि बड़ी संख्या में फैकल्टी के पद भी खाली हैं. जिसके कारण शोध कार्य प्रभावित हो रहा है. सूत्रों के मुताबिक साल 2015 में बिहार के मुख्य सचिव के साथ बैठक में कई मुख्य मुद्दों पर चर्चा हुई थी. संस्थान की ग्रांट बढ़ाने को लेकर बिहार सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखने का वादा किया था. लेकिन वह वादा भी अब तक अधूरा है.
क्या कहती है 2017-18 की रिपोर्ट?
इसके अलावा शिक्षा विभाग को संस्थान में सैंक्शंड पदों के बारे में अधिसूचना जारी करनी थी. जिसके बाद केंद्र से मिलने वाला फंड भी बढ़ जाता. लेकिन 5 साल बाद भी उन पर अमल नहीं हो पाया है. जिसके कारण यह संस्थान हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान झेल रहा है. साल 2017-18 तक की संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक कुल खर्च लगभग 8 करोड़ रुपये हुए और नुकसान लगभग 4.28 करोड़ रुपये हुए. एएन सिन्हा संस्थान को फिलहाल आईसीएसएसआर से पंचम वेतन ग्रांट मिलता है. जबकि सातवां वेतनमान सब जगह पर लागू हो चुका है. इस कारण हर साल करोड़ों का नुकसान होता है. बता दें कि संस्थान में कुल 27 फैकल्टी मेंबर्स की जगह सिर्फ 16 से ही काम चल रहा है.