पटना :मंकीपॉक्स को लेकर डब्ल्यूएचओ द्वारा ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित किए जाने के बाद देश के राज्य भी अब इसको लेकर अलर्ट मोड पर आने लगे हैं. भारत में अब तक इस वायरस के तीन मामले आ चुके हैं. दिल्ली में जो मामला मिला है उसका कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं मिला है. ऐसे में बिहार में स्वास्थ्य विभाग ने पटना जिले को मंकीपॉक्स को लेकर अलर्ट (Alert For Monkeypox) किया है. स्वास्थ्य विभाग की तरफ से पटना जिला सिविल सर्जन को मंकीपॉक्स को लेकर के अलर्ट भेजा गया है.
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''विभाग के निर्देशानुसार सभी स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारियों को मंकीपॉक्स के पहचान और उसके लक्षण के बारे में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ट्रेनिंग दिए हैं. सभी चिकित्सा पदाधिकारियों को निर्देशित किया है कि वह अपने यहां आशा और एएनएम को भी इस बीमारी के बारे में अवगत कराएं. यदि इसके सिम्टम्स का कोई व्यक्ति नजर आता है तो तुरंत विभाग को जानकारी दें. उसका सैंपल कलेक्ट किया जाएगा और नेशनल वायरोलॉजी लैब पुणे भेजा जाएगा.''- डॉ कमल किशोर रॉय, सिविल सर्जन, पटना
मंकीपॉक्स के लक्षण :बताते चलें कि मंकीपॉक्स भी चेचक परिवार के वायरसओं का हिस्सा है. हालांकि मंकीपॉक्स के लक्षण (symptoms of monkeypox) चेचक यानी कि स्मॉल पॉक्स की तरह गंभीर नहीं बल्कि हल्के होते हैं. लेकिन इसका चिकन पॉक्स से लेना देना नहीं है. यह बीमारी संक्रमण की चपेट में आने के 20 दिनों के बाद शरीर में असर दिखाना शुरू करता है. इसमें शरीर पर पॉक्स जैसी मवाद भरे दाने होने के साथ सिर दर्द, बुखार, थकान, मांसपेशियों में दर्द, कपकपी छूटना, पीठ और कमर में दर्द महसूस होते हैं.
विश्वभर में 16 हजार से अधिक मामले : वैश्विक स्तर पर, 75 देशों में मंकीपॉक्स के 16,000 से अधिक मामले सामने आए हैं. डब्ल्यूएचओ दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में, मंकीपॉक्स के चार मामले सामने आए हैं, जिनमें से तीन भारत में और एक थाईलैंड में पाया गया है. हालांकि अब तक इस बीमारी के बारे में जो बात सामने उसमें समलैंगिकों में यह बीमारी अधिक तेजी से फैलते हुए देखा जा रहा है. इसको देखते हुए कई स्वास्थ्य एजेंसियों ने समलैंगिक पुरुषों को आगाह भी किया है.
मंकीपॉक्स क्या है? (What is monkeypox?) :मंकीपॉक्स एक वायरस है, जो रोडेन्ट और प्राइमेट जैसे जंगली जानवरों में पैदा होता है. इससे कभी-कभी मानव भी संक्रमित हो जाता है. मानवों में अधिकतक मामले मध्य और पश्चिम अफ्रीका में देखे गए है, जहां यह इन्डेमिक बन चुका है. इस बीमारी की पहचान सबसे पहले वैज्ञानिकों ने 1958 में की थी, जब शोध करने वाले बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के दो प्रकोप हुए थे, इसलिए इसे मंकीपॉक्स कहा जाता है. मानव में मंकीपॉक्स का पहला मामला 1970 में मिला था, जब कांगो में रहने वाला 9 साल बच्चा इसकी चपेट में आया था. मंकीपॉक्स का मनुष्य से मनुष्य संचरण मुख्य रूप से सांस के जरिए होता है. इसके लिए लंबे समय तक निकट संपर्क की आवश्यकता होती है. यह शरीर के तरल पदार्थ या घाव सामग्री के सीधे संपर्क के माध्यम से और घाव सामग्री के साथ अप्रत्यक्ष संपर्क के माध्यम से भी फैल सकता है.