पटना: बागी उम्मीदवार महागठबंधन के लिए मुश्किलों का सबब बन चुके हैं. कुछ सीटों पर महागठबंधन के नेताओं को सीट जीतने से ज्यादा चिंता किसी खास उम्मीदवार को हराने की है. जिस सीट को पार्टी भविष्य में अपने खाते में लेना चाहती है. उस सीट पर अगर विपक्षी दल के उम्मीदवार हैं. तो हराने का खेल शुरू हो जाता है और बाकी नेताओं के खिलाफ पार्टी का रवैया भी नरम दिखाई पड़ता है. महागठबंधन के नेता स्वार्थ की राजनीति से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं.
दिनेश यादव रंजीता रंजन के खिलाफ
सुपौल लोकसभा सीट पर कांग्रेस की ओर से रंजीता रंजन उम्मीदवार थीं. लेकिन तेजस्वी यादव ना तो उनके प्रचार में गए ना ही अपने बागी उम्मीदवार को बैठाने का काम किया राजद के वरिष्ठ नेता दिनेश यादव बागी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में अंत तक डटे रहे.
बागी नेता ने मधुबनी में बढ़ाई मुश्किलें
बागी नेता मधुबनी लोकसभा सीट पर भी महागठबंधन को मुश्किलों में डाल चुके हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद ने निर्दलीय नामांकन कर दिया है और मधुबनी लोकसभा सीट पर महा गठबंधन की ओर से वीआईपी के नेता बद्री पूर्वे मैदान में हैं.