पटना: कोरोना के कहर से पूरा बिहार कराह रहा है. सरकारी व्यवस्था के नाम पर बात तो बड़ी-बड़ी की जा रही है लेकिन इन बातों की एक भी बानगी जमीन पर नहीं उतर रही है. अब तो आलम यह है कि अगर आप के किसी परिचित को कोरोना हो जाये तो बस यह मान लीजिए की अब जो करेंगे भगवान ही करेंगे, क्योकि इंसानों वाली हर व्यवस्था सरकारी बदइंतजामी की भेंट चढ़ गयी है.
15 साल बनाम 15 साल का राज
सबसे बड़ी त्रासदी राजनीति के इस पहलू की है कि नीतीश कुमार 15 साल बनाम 15 साल के जिस राग को गा रहे थे, अब उस राग का हर सरगम बिहार के सीने को छलनी कर रहा है. साथ ही बिहार के लोगों को अथाह दर्द और गम दे रहा है. अब तो बिहार को यह समझ ही नहीं आ रहा है कि वह अपने किस गौरव पर इतराए और अथाह दर्द को कैसे विसराए.
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दरअसल, बिहार यह सवाल भी नहीं उठा सकता है क्योंकि जवाब देने वाले कह देंगे 15 साल पहले क्या था हम न्याय के साथ विकास कर रहे हैं. बिहार का मन अब यह कराह कर पूछ रहा है कि हे 15 साल के तुलनाधारी सत्ताधीश, ऑक्सीजन की कमी त्रासदी जनित हो सकती है, जिस पर आप कुछ कर ही नहीं सकते, लेकिन यह बताइए डॉक्टर कहां हैं, नर्स कहां हैं, अस्पताल कहां हैं? 15 साल में बिहार जितना आगे बढ़ा, जरूरत बढ़ी उसे लेकर क्या हुआ. अब बता दीजिए सरकार क्योंकि लोग पूछ रहे हैं आखिर क्यों बोले बिहार.
डॉक्टर कहां हैं?
बिहार की व्यवस्था पर डॉक्टर कहां है यह सवाल नया नहीं है. पटना के सबसे बड़े अस्पताल कहे जाने वाले पीएमसीएच में 15 साल में शायद ही कोई दिन रहा हो साहब, जब बिहार की जनता ने यह सवाल न किया हो. ऐसा नहीं है कि यह एक बार की बात है, जब-जब बिहार को जरूरत पड़ी है, हालात और व्यवस्था पर बिहार खूब रोया है. शायद आप के जेहन से बात उतर गयी हो. आपके स्वास्थ्य विभाग की तैयारी गंडामन की घटना को लेकर क्या कमाल की थी कि बच्चों के लेकर आ रही एम्बुलेंस का तेल गांधी सेतु पर खत्म हो गया था. उसके बाद क्या हुआ आप के खास लोग बताए होंगे. पीएमसीएच पहुंच रहे बच्चों के लिए आप की तैयारी कमाल की थी.
"गांधी मैदान से पतंगबाजी तक कराहा बिहार"
गांधी मैदान में रावण को मारने गयी पटना की जनता जिस तरह से मारी गयी और उसके बाद इलाज के लिए अस्पताल में जो इंतजाम था वह भी बिहार ने देखा था और पूरा बिहार रोया भी था. पटना की पतंगबाजी भी कमाल की ही थी, जिनके लोगों की जान गयी वे आज तक नहीं समझे की आखिर उसमें हुआ क्या. हां, राजभवन के सामने बने लालफीताशाही का कारनामा जरूर बिहार की रोती जनता ने भोगा था.
जांच करने वाले साहब कहां हैं? जांच का क्या हुआ किसी खास को पता हो सकता है बिहार नहीं जानता. यह बिहार की जनता पूछ रही है, बिहार की हर बीमारी जब आप को पता है तो आखिर इलाज करने वाले कहां हैं?15 साल पहले क्या था, 15 साल में क्या है और 15 साल बाद क्या होगा तो ये हालात क्यों है- इसका क्या जवाब दे बिहार.
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बिहारी कहां हैं?
बिहारी हुनरमंद हैं और अपनी मेहनत से जहां रहते हैं कमाते हैं. देश में रोटी कहीं कमा कर खाई जा सकती है. लेकिन कितना बिहार बाहर है, और ये बिहारी आज किस हाल में हैं जानने वाला कोई नहीं है. बिहारी कहां हैं किस हाल में है इसकी जानकारी का कोई इंतजाम नहीं है. कोरोना ने सांस रोकने की जिस रणनीति को जिस मुकम्मल तैयारी के साथ अंजाम दे रहा है, उससे एक बात साफ है कि जो तैयारी बिहार सरकार की है उसमें बिहारी कहां हैं किस हाल में है जानने वाला कोई नहीं है.
कोरोना के पहले वेव में यह कह दिया गया था कि कोई शौक से कहीं जा सकता है, लेकिन बिहार में हम हर बिहारी को काम दे सकते हैं. आखिर इस दावे को अगर बिहार की जनता हकीकत मान लेती तो हालात क्या होते? लोग बाहर हैं यह आप को पता है, लेकिन किस हाल में है जाने कौन? संख्या भी कम नहीं है, सरकारी आंकड़ों के अनुसार 20 लाख से ज्यादा हैं. आखिर बिहार क्या बोले कि इनकी हाल और सुध लेने वाला कौन है?
'8 किलो राशन, बिहार में है सुशासन'
बिहार सहित देश में जब पहली बार लॉक डाउन लगा था तो सरकार ने 'वन नेशन वन राशन कार्ड' का नारा दिया. बिहार में भी योजना को रूप देने के लिए काम शुरू हुआ, जो चल रहा होगा लेकिन जिसके भरोसे बिहार की जनता को नीतीश कुमार बुला रहे हैं उसमें बिहार के लोगे के लिए महत्वाकांक्षी योजना 8 किलो राशन का है. बिहार के जो लोग बाहर हैं उनके वापस आने पर उनको 8 किलो राशन मिलेगा और इसका कारण है कि बिहार में सुशासन की सरकार है. 8 किलो राशन से यह सरकार आप को हर सुविधा दे दे रही.