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Navratri 2023: शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा, जानें पूजन विधि और मंत्र..

आज शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन है. इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा (Maa Chandraghanta) होती है. मान्यता है कि जो भक्त आज माता रानी के तीसरे स्वरूप की पूरे विधि-विधान से आराधना करता है, उसे माता की कृपा अवश्य प्राप्त होती है. जानें उनकी पूजा विधि, मंत्र और आरती के बारे में..

मां चंद्रघंटा
मां चंद्रघंटा

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 17, 2023, 6:02 AM IST

आचार्य रामशंकर दुबे

पटना: नवरात्र में 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजाकी जाती है. नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है. मां चंद्रघंटा राक्षसों का वध करने के लिए जानी जाती है. पापों का विनाश करती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां चंद्रघंटा इस संसार में न्याय और अनुशासन स्थापित करती हैं. चंद्रघंटा देवी मां पार्वती का विवाहित रूप हैं. भगवान शिव से विवाह करने के बाद देवी ने अपने माते को अर्धचंद्र से सजाना शुरू कर दिया. इसीलिए उनको चंद्रघंटा भी कहा जाने लगा.

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मां चंद्रघंटा देवी शेर पर सवार:आचार्य रामशंकर दुबे कहते हैं कि माता की सवारी सिंह है. माथे पर अर्धचंद्र नजर आता है, जिसे चंद्रघंटा कहा जाता है. माता के हाथ में धनुष-तीर, तलवार और गदा रहता है. उन्होंने बताया कि माता का यह रूप बेहद ही सुंदर अलौकिक और मोहक है. माता का यह रूप काफी शांति दायक और कल्याणकारी है.

कैसे करें मां चंद्रघंटा की पूजा?:भक्तों को सुबह उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर माता का पूजा प्रारंभ करना चाहिए. सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा अर्चना करके शुरुआत करनी चाहिए. उसके बाद माता रानी को जल से स्नान करवाएं. माता को रोली अक्षत फूल पान का पत्ता लौंग इलायची अर्पित करें पीला फूल या उजाला कमल का फूल हो तो अवश्य चढ़ाएं. इसके बाद धूप से पूजा करें. माता रानी को केला से और दूध से बनी मिठाई चढ़ाना चाहिए जो माता को अति प्रिय है. भक्तों को दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए. उसके बाद माता रानी का आरती उतारें, माता का आशीर्वाद लें. क्षमा प्रार्थना करें इस तरह से पूजा करने से सब दुखों से छूट करके सर्व संपत्ति से प्राप्त होती है.

माता रानी से जुड़ी एक कथा:आचार्य रामशंकर दुबे ने बताया कि मां चंद्रघंटा धर्म की रक्षा और अंधकार को दूर करने वाली है. वह कहते हैं कि माता रानी से एक कथा भी जुड़ा हुआ है. वह इस प्रकार है. 'एक बार असुरों के स्वामी महिषासुर ने स्वर्गलोक पर कब्जा करने के लिए देवताओं पर हमला किया. सभी देवता इससे परेशान होकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे. तीनों भगवान को असुरों के अत्याचारों के बारे में बताए. यह सुनकर तीनों भगवान को क्रोध आया और उनके मुख एक ऊर्जा उत्पन्न हुई. इस ऊर्जा से एक देवी का जन्म हुआ, जिसे मां चंद्रघंटा कहा जाता है.'

'चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार किया':आचार्य रामशंकर दुबे आगे बताते हैं कि असुरों का सर्वनाश करने के लिए भगवान शिव ने मां चंद्रघंटा को अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया. इसी अन्य देवी-देवताओं ने भी मां चंद्रघंटा को अपने-अपने अस्त्र सौपे थे देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया था. इसके बाद मां चंद्रघंटा असुरों के स्वामी महिषासुर के पास पहुंची. मां चंद्रघंटा को देखकर ही महिषासुर को आभास हो गया था कि आज उसका विनाश निश्चित है. हालांकि इसके बाद भी उसने मां चंद्रघंटा पर हमला किया. मां चंद्रघंटा और महिषासुर के बीच भीषण युद्ध चला और अंत में मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर दिया. इस तरह से मां चंद्रघंटा ने असुरों से देवताओं की रक्षा की.तब से मां चंद्रघंटा का असुरों का विनाश और धर्म की रक्षा करने के रूप में माना जाता है.

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